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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Thursday, August 25, 2011

एक और सफर


Nahargarh Jaipur
दिल्ली से जयपुर जाना अब मेरे लिए अपने घर से उत्तम नगर जाना जैसे हो गया है। कहने का मतलब है कि जयपुर जाने का सिलसिला अब बढ़ गया है। इस बार भी कुछ ऐसा हुआ, वीकेंड था और मेरी जयपुर जाने की तैयारी भी पक्की हो गई। अछी बात ये थी कि शारिक रक्षाबंधन की छुट्टिïयों से ही दिल्ली में था। अब उसे मैने अपनी जाने की बात बताई और कहा कि तुम बुधवार दिल्ली रूको तो गु़रुवार शाम हम कार से ही जयपुर के लिए रवाना हो जाएंगे। खैर शारिक ने पहले तो मना किया लेकिन मेरी जिद के आगे उसे हार माननी ही पड्ती है। कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी मै शारिक के साथ जयपुर जाने को लेकर। काशिफ भी दिल्ली में था लेकिन वो एक दिन पहले ही जयपुर के लिए निकल गया था। अब बस गुरुवार को ऑफिस के बाद हम दिल्ली से रवाना हुए। इस बार मेरा जयपुर जाने का मकसद रमजान था ताकि मै उनके तरीके से त्योहार को मना सकूं।
उस दिन मौसम का मिजाज भी बहुत अच्छा था। रात के करीब नौ बजे हमने निजामुद्दीन के करीम में खाना खाया। अक्सर खाने के लिए हम लोग यहीं आया करते हैं। उसके बाद के साढ़े दस बजे हमारी ड्राइव शुरू हुई जयपुर के लिए। रात का सन्नाटा, हल्की बारिश और रेडियो के पुराने गाने पूरी तरह से पिक्चर परफेक्ट थी। बहुत अच्छा लग रहा था शारिक के साथ। अक्सर इस तरह की लांग ड्राइव में शारिक मुझे गाने भी सुनाया करते है। और गाने ऐसे कि वो सिर्फ मै ही सुन सकती हूं। खैर शारिक के उन बेसुरे गानों से सफर और भी खूबसूरत लग रहा था। दिल्ली जयपुर हाईवे पहुंचते ही मानों हमारी गाड़ी हवा से बातें कर रही थी। बहुत ही खास एहसास था, लग रहा था मानो हमारा ये सफर ऐसा ही चलता रहे, ये जानते हुए भी कि मै और शारिक जिंदगी में कभी साथ नहीं चल  सकते। ये एक ऐसी हकीकत है जो मेरे साथ चलती है लेकिन इसके बाद भी मै अपनी जिंदगी शारिक के साथ ऐसे जीती हूं जैसे कल रहूंगी ही नहीं।
 इस खूबसूरत सफर में सिर्फ एक चीज बाधा लग रही थी, वो था गाड़ी का एसी। मुझे बाहर की ठंडी हवा अच्छी लग रही थी कि लेकिन हाईवे में खिड़की खोलकर गाड़ी चलाना संभव ही नहीं है। शारिक की बांहों में पुराने गानों के साथ रास्ते में कुछ जगहों में रूकते हुए हमारा सफर रात के साढ़े तीन बजे पूरा हुआ। साढ़े तीन बजे हम घर में थे और घर की हालत देखकर मुझे जयपुर पहुंचने की खुशी से ज्यादा चिंता हो रही थी कि पूरा अस्त-व्यस्त घर को कल सुबह से उठकर ही समेटना पडृेगा। मै अक्सर त्योहार के मौके पर कोशिश करती हूं कि एक दिन शारिक के साथ जरूर बिताऊं, खासतौर पर उनलोगों के त्योहार। इस बार भी दो दिन के लिए जयपुर जाने का मकसद रमजान ही था। मेरे मन में हमेशा रहता है कि मै शारिक के साथ नहीं रह पाऊंगी तो क्यों ना जितने दिन हम साथ में है मै अपनी पूरी जिंदगी जी लूं। बस इसी एहसास के साथ मेरा हर एक दिन गुजर जाता है। अगले दिन सुबह दोनों ही ऑफिस निकल गए। हर बार की तरह उनके जाने के बाद मै बाई के रोल में आ गई। दोपहर के दो बज गए घर साफ करते हुए। तभी शारिक का फोन आया, उसने पूछा मै क्या कर रही हूं, मै बताया अभी सफाई पूरी हुई है, इसके बाद नहाकर मै शाम के इफ्तार की तैयारी करूंगी। मै उससे कहा तुम टाइम से घर आना मै इंतजार कर रही हूं। बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे एक पल के लिए ऐसा एहसास हुआ जैसे सिर्फ माही नहीं माही शारिक अहमद हूं। शाम के इफ्तार के लिए मैने प्याज की पकौड़ी, आलू की पकौड़ी, साबूदाने का पुलाव, साबूदाने के पकौड़े और खीर बनाई उसे मैने अच्छे से डाइनिंग टेबल पर सजाया। तब तक शारिक भी घर आ गए थे और हम दोनों टीवी देख रहे थे। इफ्तार का समय हुआ और हम दोनों इफ्तार करने बैठे, मैने रोजा तो नहीं रखा था लेकिन इफ्तार के वक्त मैने यही दुआ कि हमदोनों हमेशा साथ रहे। कहते हैं इफ्तार के समय की जाने वाली दुआ अल्लाह कबूल कर लेते हैं। आमीन....

3 comments:

  1. एक दूसरे के एहसासों को जीते दो लोग... इससे सुन्दर कहीं कुछ भी नहीं!

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