About Me

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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Monday, December 26, 2011

ऊफ! कब तक बेलूं पापड़ :) :)

on my way to moon!
घर में एक कहानी बनाना, ऑफिस में छुट्टी के लिए एप्लाई करना, उसके बाद तैयारी करना, शारिक से लडऩा..वगैरह..वगैरह..वगैरह। घर में तो बता दिया, ऑफिस में भी हजार सोचने के बाद बॉस से बात हो ही गई। अब जब आखिरकार बॉस से छुट्टी अप्रूव हो गई तो सीट में आकर बैठी, थोड़ा पानी पिया, रिलैक्स करने की कोशिश ही कर रही थी कि दिमाग में घंटी बजी....इस लड़के के लिए पता नहीं कब तक बेलने पड़ेंगे मुझे ऐसे ही पापड? खैर चाहे पापड़ बेलने पड़े या परांठे -- उसके लिए तो कुछ भी... :-)
लेकिन ये क्या अभी लिखते-लिखते उसे ये बताने के लिए फोन किया तो ऊधर से भारी आवाज में साहब बोले माही मीटिंग में हूं बाद में बात करता हूं। ऊफ !! अब मै पापड़ नहीं रोटियां बेलना चाहती हूं :P :P
खैर, मै तो चली तैयारी करने, एक बार फिर जयुपर का सफर, सुबह उठकर शारिक के साथ चाय, शाम का नाश्ता, रात का एक साथ खाना, उस बीच गंदे घर को साफ करते हुए चिल्लाना, बिस्तर पर पड़े गीले टॉवल को देखर उसपर गुर्राना, जूते लेकर पूरे कमरे में घूमता देख आंख दिखाना.....मै चली एक बार फिर अपनी दुनिया में....
अगला अपडेट जयपुर से...

Saturday, December 24, 2011

मैंने टूटता तारा देखा

God has a big plan for me. Just not in this life
 नहीं बात करनी मतलब नहीं करनी, मत करो मुझे बार-बार फ़ोन. मन नहीं माना फिर फ़ोन घुमाया लेकिन शारिक ने भी बात ना करने की थान ली थी. थक कर मैंने भी फिर फ़ोन नहीं किया. बहुत देर बस स्टॉप पर बैठी रही, सोचा एक बार और कोशिश करती हूँ पर मन जानता था की कोशिश बेकार ही होगी. एकाएक पुराना वक़्त याद आया जब रूठना मनाना चलता था लेकिन उसमें कडवाहट नहीं होती थी. बहुत बुरा लग रहा था, वहां अकेले बैठकर और ख़राब लग रहा था. अचानक काशिफ का फ़ोन आया, फ़ोन उठाकर कुछ बोल ही नहीं पाई, पलकें ऐसी भरी थी कि ना चाहते हुए भी आंसू निकल पड़े. मेरे कुछ बोलने से पहले ही वोह समझ गया. मैंने उससे कहा मै बाद में बात करती हूँ.
अब बस स्टॉप, ठंडा मौसम, हवा, आस-पास कि चहल-पहल सब मुझे चुभने लगा था. मैंने उसे डायल करने क लिए फिर फ़ोन निकला लेकिन फ़ोन नहीं किया. सब-कुछ बिखरा-बिखरा लग रहा था, मै अब थक गयी थी और सोना चाहती थी. बस लिया, हर थोड़ी-थोड़ी देर में फ़ोन चेक करती कि कहीं उसने फ़ोन किया हो लेकिन मैंने नहीं उठाया. इसी सब में मेरा बस स्टॉप आ गया, मै घर कि तरफ बढे लगी. बहुत ज्यादा किसी से बात नहीं कि, उखाड़ा मिज़ाज देखकर माँ कुछ देर बद्बदायी. लेकिन मैंने सब अनसुना कर दिया. 
बालकोनी में जाकर बैठ गयी, माँ चिल्ला भी रही थी कि इतनी ठण्ड में बहार बैठी है, दिमाग ही ख़राब हो गया है इस लड़की का. मै कुछ नहीं सुनना चाहती थी, किसी से बात करने का भी मन नहीं था. अपने ही ख्यालों में इतनी उलझी थी कि तभी मुझे आसमान में एक टूटता तारा उटज आया, छोटे बच्चों कि तरह आँख बंद किया, "मन से  निकला अब मैं थक गयी हूँ, मुझे ज़िन्दगी अच्छी नहीं लग रही, मै इसे और नहीं चाहती... ये क्या माँगा मैंने टूटते तारे से? मै ऐसी तो नहीं थी? इतनी नेगेटिविटी कब से आ गयी मेरे अन्दर? ज़िन्दगी को हर पल जीने कि ख्वाहिश वाली माही अब ज़िन्दगी से थक गयी है.....

Thursday, December 8, 2011

जायका दिल्ली का

गुलाबी ठंड में बाहर टहलते हुए अचानक मेरे मिस्टर परफेक्ट
जायका इंडिया के विनोद दुआ के स्टाइल में बोले चलो आज किसी बड़े रेस्टोरेंट में ना जाकर चखते हैं जायका दिल्ली का...बस फिर क्या था, मै भी पूरी एक्साइटमेंट के साथ कैलोरी और मेमोरी उठाने के लिए झट से तैयार हो गई। वैसे बात तो है ठंड के दिनों में दिल्ली के स्ट्रीट फूड की बात ही कुछ और होती है।
मिस्टर नौटंकी के सिर पर जब कोई बात सवार हो जाए तो वो पूरी होकर ही रहती है।
कैलोरी और मेमोरी की शुरुआत मोमोस से हुई, फिर तो न जाने क्या-क्या खाया। पटना का एग रोल, दाल की पकौड़ी, मिर्च पकौड़ी, सूप, शकरकंद, पाइनएप्पल वगैरह..वगैरह...इधर कैलोरी की चिंता होती ऊधर उसका एक्साइटमेंट देखकर लगता कि कोई बात नहीं...कल एक घंटा वॉक ज्यादा कर लूंगी। वैसे इस बार दिल्ली में ठंड अभी तक शुरू नहीं हुई है लेकिन मंगलवार रात मौसम बहुत ही अच्छा था, ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। खाने और घूमने दोनो में ही मजा आ रहा था। फिर हमने आमिर को भी बुला लिया। और रात के करीब आठ बजे हमने रात के खाने का प्लान पुरानी दिल्ली के करीम में बनाया। वैसे भी कितना भी खाने-पीने के बाद रात के खाने के लिए हम लोग मुगलई खाना की चुनते हैं और अब तो इतने सालों में मेरी भी पसंद वही हो गई है। फिर मेट्रो लेकर हम लोग पुरानी दिल्ली पहुंचे। मोहर्रम के कारण पुरानी दिल्ली का बाजार बंद था। इससे थोड़ी भीड़-भाड़ भी कम थी। मेट्रो स्टेशन से रिक्शा लिया, कितनी भी रात हो पुरानी दिल्ली की रौनक वैसी ही रहती है। करीम पहुंचने के बाद हम लोगों ने अपना मुगलई खाना खाया। फिर वापस घर की ओर, इस तरह एक ठंड की एक खूबसूरत शाम बाइक की सवारी के सात रात के 11 बजे पूरी हुई। और इस तरह ये मंगलवार कैलोरी और मेमोरी के नाम रहा।