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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Tuesday, May 29, 2012

मुझे एक परियों की कहानी दे दो ना


माही परियों की कहानी से बाहर आओ...हकीकत को थोड़ा समझो, सब तुम्हारी परियों की कहानी की तरह हुआ, हम एकदूसरे से मिले, साथ रहे, इतना अच्छा वक्त बिताया, हमने बड़ी कार ली, इतना बड़ा घर लिया लेकिन कुछ चीजें तुम्हारी कहानी के हिसाब से नहीं होंगी। हम दोनों ने इसके लिए भरपूर कोशिश कर ली है, नतीजा तुम देख चुकी हो....कुछ फैसले हमारे हाथ में नहीं होते, कुछ अनचाही बातें जिंदगीभर साथ चलती है...मै खामोशी से उसकी बात सुन रही थी, वो परेशान था, हर दिन मुझे नए तरीके से ना जाने क्या समझाने की कोशिश करता है जो कि मुझे समझना ही नहीं है। मैने चुपचाप सब सुना फोन रख दिया...
उसकी कही एक-एक बात मेरे जहन से नहीं उतर रही थी, ऐसा लग रहा था मानो कह रही हो इस बारे में सोचने को। मुझे बस याद आ रहा था जब गाड़ी छोटी थी, पास में अपना घर नहीं था लेकिन उन दिनों हमारे पास खुशियां बड़ी-बड़ी थी। बारिश की बूंदों में एक दूसरे का इंतजार करने में भी खुशी थी, रूठना-मनाना भी जैसे कितना खास कुछ होता था लेकिन अब...मै पता नहीं क्या सोच रही थी, बाहर तेज धूप थी, गर्म हवाएं चल रही थी, मै अपनी धुन में चल रही थी, उसी सीसीडी की तरफ जहां मै अक्सर जाती हूं, अकेले...थोड़ी देर बाद फोन बजा, शारिक था...तुम बात करो माही, तुम्हारी खामोशी से डर लगता है, तुम चिल्लाओ लेकिन फोन मत रखो। लेकिन मुझे कुछ बात नहीं करनी थी, गुस्सा भी नहीं आ रहा था, मैने फोन नहीं काटा।
वो समझ गया था कि उसकी बात से मेरा मन उदास हो गया है। लेकिन अब वो हंसाने की कोशिश कर रहा था, हमेशा की तरह, पर मेरा मन अब उदास हो गया था। उसकी बातें मेरे दिमाग में चल रही थीं, अचानक शारिक मुझसे पूछा अच्छा माही बताओ मै वीकएंड में आ रहा हूं बोलो तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊं? मै पहले बहुत देर चुप थी लेकिन फिर मै बोली मुझे एक परियों की कहानी दे दो ना!!!

Friday, May 11, 2012

वो दिन...


तेज हवा चल रही थी, हम दोनों अपनी पुराने सोसायटी शिप्रा सनसिटी में गाड़ी लगाकर वॉक कर रहे थे। मुझे लगा उसने गाड़ी सोसायटी में लगाई मॉल जाने के लिए क्योंकि उससे पहले बहुत झगड़ा हुआ था। लेकिन उसने गाड़ी सोसायटी में लगाने के बाद मुझे साथ लेकर उसी बिल्डिंग की तरफ चलने लगा जहां हमारा फ्लैट था। दोनों चुपचाप चल रहे थे...खामोशी से... जैसे-जैसे हम सोसायटी में बढ़ रहे थे मेरी आंखों में आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। शारिक बोला जब हम यहां थे तो वक्त कितना अच्छा था, दोनों एक दूसरे से मिलने का इंतजार करते थे, घूमते थे, हंसते थे और आज वक्त कितना बदल गया... आज एक-दूसरे की ओर देखते ही लग जाता है कि फिर एक घंटा झगड़ेंगे। मै चुप थी...कुछ नहीं बोल रही थी...बाहर तेज आंधी थी, तेज हवा चल रही थी, वैसा ही तूफान मेरे अंदर भी  चल रहा था।
दोनों चलते हुए अपने में ही खोए थे, दोनों ही उसके हर कोने को देखकर पुराने दिन याद कर रहे थे, अचानक वो ठिठका, मेरी नजर बिल्डिंग पर पड़ी मौलसिरी 6.... अंदर की हलचल मानो बाहर निकलने के लिए और बढ़ रही थी। हम दोनों ऊपर जाने लगे, ठीक अपने पुराने फ्लैट के पास आकर रूके...उसके दरवाजे को छुआ, फिर छत की तरफ बढऩे लगे। छत पर पहुंचकर उस कोने को देखकर मै खुद को नहीं रोक पाई... वो वही कोना था जहां हम शाम की चाय पीया करते थे, सर्दियों में धूप सेंका करते थे। मै रो रही थी, बुरी तरह से, जैसे पता नहीं मेरी जिंदगी से क्या गया हो...शायद सब कुछ...शारिक भी वहीं था, जब खुद को संभाला तो देखा आंखे उसकी भी नम थी...