इस वीकेंड शारिक साहब दिल्ली में थे। छुट्टि के दिन देर से सोकर उठने के बाद बातों-बातों में ही समय निकल गया। जब बहुत दिन चढ़ा तो दोपहर के खाने के सुद हुई, आमिर के घर (जहां शारिक आकर ठहरता है) के किचन की हालत देख खाना बनाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। भूख तेज लग आई थी, इतमें में आमिर को फोन करके बुलाया गया। अब तय हुआ कि बाहर खाना-खाकर आते हैं, जब बाहर खाने की बात हुई तो बिरयानी खाने के लिए पुरानी दिल्ली के करीम में जाए बिना रहा नहीं गया। बहुत बार नहीं जाने की बात करके भी हम तीनों पुरानी दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गए।
अब दूसरी परेशानी बिना कार के वहां तक जाया कैसे जाए। फिर आमिर की नई एवेंजर बाइक में तीनों लदे और मानसरोवर मेट्रो स्टेशन तक पहुंचे। वहां से मेट्रो लिया फिर चांदनी चौक उतरे, स्टेशन से बाहर आकर चांदनी चौक की तंग गलियों और जाम लगी सड़कों पर बहुत देर पैदल चलने के बाद एहसास हुआ कि हमें चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन उतरना चाहिए था। फिर उन गाडिय़ों की चिलपौं के बीच रिक्शा किया, रिक्शा लाल किले से ही जाम में फंस गया, धूप की तपिश में पुरानी दिल्ली के ऊंचे बने रिक्शे में तीनों बैठे यही सोच रहे थे कि क्या सूझी कि पुरानी दिल्ली आने का मन बना। आधा घंटा जाम में फंसे रिक्शे के बाद रिक्शा छोडऩा बेहतर समझा, फिर पैदल उतरकर मीना बाजार के रास्ते करीम तक चलकर जाने लगे।
चारों तरफ शोर, लोगों की भीड़, सजे बाजार और नॉनवेज की खुशबू से तो मानो भूख और बढ़ रही थी लेकिन रास्ता था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। यही बाइक, मेट्रो, रिक्शा और पैदल रास्ता तय करने में ही साढ़ तीन बज गए थे। लग तो रहा था जैस करीम में खाना मिलेगा ही नही। जैसे-तैसे करके हम तीनों आखिरकार करीम पहुंच ही गए। बस फिर क्या था खूब सारा मुगलई खाना ऑर्डर किया गया। इसमें चिकन बिरयानी, मटन बिरयानी, मीठी रोटी और भी कई तरह की चीजें मंगवाई, खाना आते ही हम तीनों खाने पर ऐसे टूटे जैसे कितने महीनों से भूखे हों, जमकर खाना खाया। खाना खाने के बाद लगा जैसे पुरानी दिल्ली में करीम का स्वाद का कोई जवाब ही नहीं। इतनी मेहनत करने के बाद जैसे खाने का स्वाद और दिनों से ज्यादा बढ़ गया था। खाना के जामा मसजिद घूमते हुए तीनों बात करने लगे कि क्या तलब थी बिरयानी खाने की कि हमने बाइक चलाई, हम मेट्रो पर चढ़, हमने रिक्शा लिया, हम रिक्शे से जाम में फंसे, हम पैदल चले लेकिन बिरयानी हमने पुरानी दिल्ली के करीम में ही खाई.....
अब दूसरी परेशानी बिना कार के वहां तक जाया कैसे जाए। फिर आमिर की नई एवेंजर बाइक में तीनों लदे और मानसरोवर मेट्रो स्टेशन तक पहुंचे। वहां से मेट्रो लिया फिर चांदनी चौक उतरे, स्टेशन से बाहर आकर चांदनी चौक की तंग गलियों और जाम लगी सड़कों पर बहुत देर पैदल चलने के बाद एहसास हुआ कि हमें चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन उतरना चाहिए था। फिर उन गाडिय़ों की चिलपौं के बीच रिक्शा किया, रिक्शा लाल किले से ही जाम में फंस गया, धूप की तपिश में पुरानी दिल्ली के ऊंचे बने रिक्शे में तीनों बैठे यही सोच रहे थे कि क्या सूझी कि पुरानी दिल्ली आने का मन बना। आधा घंटा जाम में फंसे रिक्शे के बाद रिक्शा छोडऩा बेहतर समझा, फिर पैदल उतरकर मीना बाजार के रास्ते करीम तक चलकर जाने लगे।
चारों तरफ शोर, लोगों की भीड़, सजे बाजार और नॉनवेज की खुशबू से तो मानो भूख और बढ़ रही थी लेकिन रास्ता था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। यही बाइक, मेट्रो, रिक्शा और पैदल रास्ता तय करने में ही साढ़ तीन बज गए थे। लग तो रहा था जैस करीम में खाना मिलेगा ही नही। जैसे-तैसे करके हम तीनों आखिरकार करीम पहुंच ही गए। बस फिर क्या था खूब सारा मुगलई खाना ऑर्डर किया गया। इसमें चिकन बिरयानी, मटन बिरयानी, मीठी रोटी और भी कई तरह की चीजें मंगवाई, खाना आते ही हम तीनों खाने पर ऐसे टूटे जैसे कितने महीनों से भूखे हों, जमकर खाना खाया। खाना खाने के बाद लगा जैसे पुरानी दिल्ली में करीम का स्वाद का कोई जवाब ही नहीं। इतनी मेहनत करने के बाद जैसे खाने का स्वाद और दिनों से ज्यादा बढ़ गया था। खाना के जामा मसजिद घूमते हुए तीनों बात करने लगे कि क्या तलब थी बिरयानी खाने की कि हमने बाइक चलाई, हम मेट्रो पर चढ़, हमने रिक्शा लिया, हम रिक्शे से जाम में फंसे, हम पैदल चले लेकिन बिरयानी हमने पुरानी दिल्ली के करीम में ही खाई.....
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