clicked by: Mahi S |
उन पांच दिनों की हर रात न जाने कैसी लग रही थी.....कभी ज़हन से नहीं जाएगी.....और क्यूँ नहीं रहेगी मेरी यादों में, आखिरी कुछ दिन जो थे तुम्हारे साथ, उस घर में, उसकी बालकनी में. मै बदहवास सी होकर पूरे घर में घूम रही थी. उसके हर कोने को छू रही थी. दोनों रो रोकर बेजार थे लेकिन कोई साथ में नहीं था, वक़्त ने तो साथ ना जाने कब से छोड़ दिया था. तुमने कहा माही यही वक़्त है, चलो सब भूल जाते हैं, किस्मत अपना फैसला सुना चुकी है पर ये कुछ वक्त हमारा है. इस पर तो खुदा का भी जोर नहीं....मेरे मन में आया खुदा? जाने कौन है ये खुदा?
हम दोनों हाल में बैठ गए, तुमने फिल्म बर्फी लगायी....हम दोनों फिल्म देखने लगे. खूबसूरत फिल्म, एक खूबसूरत संदेश लिए हुए. मोहब्बत का कोई मजहब, कोई भाषा नहीं होती. वो तो मोहब्बत है जिससे होती है बेलौस हो जाती है. लेकिन हम अलग हो रहे थे इसी मजहब के लिए....आखिरी कुछ पल एक दूसरे के साथ...
हम दोनों सिर्फ वो गाना सुनने के लिए पूरी फिल्म देख रहे थे.....सच बेहद खूबसूरत गाना.... 'इतनी सी हंसी..इतनी सी खुशी..इतना सा टुकड़ा चांद का.......वो गाना आया स्क्रीन पर, नहीं रोक पाई अपने आंसू, तुमने भी नहीं पोंछा आंसूओं को. तुम बोले जितना हो सके रो लो...मत रोको खुद को....
मैने तुमसे एक सवाल किया....जिस खुदा की तुम बात करते हो क्यों उन्होंने मेरी छोटी सी दुनिया को मुक्कमल नहीं किया? मैने तो एक दुनिया बनाई, मेरी दुनिया लेकिन क्यों आज मै तिनके भी समेट नहीं पा रही हूं, क्यों? क्यों मुमकिन नहीं हुआ जिंदगीभर एक दूसरे का साथ?
पता नहीं माही....
ReplyDeleteमगर मुझे नहीं लगता कि मजहब मोहब्बत करने वालों को अलग कर सकता है..वो भी आज के इस बदलते वक्त में.
थोडा और शिद्दत से प्यार करो दोस्त....मंजिल मिल जायेगी.
<3
अनु
मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteकुछ चीजों के मुमकिन न होने का मतलब ही जिन्दगी है .. हाँ .. कुछ वक़्त का कतरा तो आपका होता है ..इतनी सी ख़ुशी और इतनी सी हंसी में सब कुछ है
ReplyDelete----------------------------------------------------
माही. आपने कम लिखा, मगर एकदम लिखा ....
apke likhne mai kuch baat hai jo dil ko chhu gyi...
ReplyDeletekeep wrting um following.
ओह..
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील...
ReplyDeleteभावपूर्ण और संवेदनशील .. बहुत ही साधारण शब्दों में स्वयं को व्यक्त करने की कोशिश अच्छी लगी.
ReplyDeletekeep writing Mahi! this one was a good one :)
ReplyDeleteवो साथ ही क्या जो साथ तो चले पर मिठास न दे ... पर कुछ साथ ऐसे भी होते हैं भले ही एक दो पल के हों वो इतने मधुर होते हैं...कि उन यादों के सहारे ज़िंदगी चल पड़े 'जुदा हों तो इस तरह ,कि कैसी मोड पे मिल भी जाएँ तो अजनबी न लगें... :)
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !
समाज .. मजबूरियाँ ... धर्म ... मजहब ... वैसे तो सब एक दूजे के पूरक हैं, एक दूजे से ही हैं पर मुहब्बत पे ही जाने क्यों प्रहार करते हैं ...
ReplyDeleteजाने क्यूँ कुछ प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रह जाते हैं जीवन में:(
ReplyDelete