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Jaipur road view from volvo |
शारिक के साथ लम्बे समय से बहुत झगडा चल रहा था . झगडा ऐसा कि उसका कोई हल नहीं. लेकिन इतना ज्यादा तनाव अब बर्दाश्त के बहार हो रहा था. ऊपर से साहब का उखाड़ा मिजाज़. समझ ही नहीं आ रहा था कि किस तरह सब ठीक हो. ऑफिस से निकलते ही मेरा पहला काम होता है शारिक
को फ़ोन करना. लेकिन इतने लड़ाई झगडे के बीच वो मुझसे बात तक नहीं कर रहा था. इस सिलसिले को अब बहुत दिन हो गए थे. अगर भूले भटके किसी भी तरह हम फ़ोन पर आते भी तो मिनट नहीं लगता झगडा शुरू होने में. बस फिर तो फ़ोन पर रोने और चिल्लाने के अलावा कोई बात ही नहीं होती. कुछ देर बात दोनों ही फोन रख देते. बात इतनी बिगड़ने लगी थी कि शारिक
के साथ ही रहने वाले उसके बचपन के दोस्त काशिफ के साथ भी अब ख़राब बर्ताव कर रहा था. इससे उन दोनों के बीच मनमुटाव बढ़ रहा था, चीज़ें लगातार ख़राब हो रही थी.जब कभी मै फ़ोन में इस बारे में कुछ पूछती तो उसे अच्छा नहीं लगता, काशिफ
से पूछती तो उसे भी इस बारे में कोई बात नहीं करनी होती. मैंने 24 मार्च 2011 को सोचा कि अब जयपुर जाकर ही दोनों से बात करनी होगी. इस बारे में मैंने शारिक को कुछ नहीं बताया. लेकिन काशिफ
ज़रूर जनता था कि मै शनिवार को आ रही हूँ. घर में माँ के सामने भूमिका बनायी कि किसी सेमिनार के लिए गुडगाँव जाना है और लौटना सोमवार 28 मार्च को होगा. बस जिस तरह से मैंने प्लान बनाया उसी के मुताबिक मैंने शुक्रवार को अपना बैग तैयार किया. दो दिन के मुताबिक कपडे और ज़रूरी सामान रख लिया. ऑफिस के काम कि वजह से शनिवार को घर से भी जल्दी निकलना पड़ा. ऑफिस का काम भी इतना हो गया था कि शाम के साढ़े सात बज गए और मै निकल ही नहीं पा रही थी. काशिफ
का फ़ोन आया तो उसे बताया कि 8 बजे ऑफिस से निकलूंगी. मेरा ऑफिस दिल्ली के दिल यानि कनाट प्लेस में है. हालाँकि वहां से जयपुर कि बस के लिए बीकानेर हाउस पहुँचने में भी ज्यादा समय नहीं लगता, लेकिन उस दिन मानो घडी कि सुइयां उड़ान भर रही हो. 8 बजे मै ऑफिस से निकली, जयपुर पहुँचने कि जल्दी में उस दिन मुझे न तो कनाट प्लेस कि सडकें अच्छी लग रही थी, न सेंट्रल पार्क की रौनक, न उस दिन का अच्छा मौसम . परेशानियाँ यहीं कम नहीं हुयी थी, ऑफिस से बाहर निकलने के बाद ऑटो ही नहीं मिल रहा था, देर पर देर हो रही थी. दिमाग में बस एक ही बात थी कि कैसे भी जल्द से जल्द जयपुर पहुंचना है. ये जानते हुए भी कि बस को जितना टाइम लेना है उतना वो लेगी ही. खैर मैंने इसी उधेड़ बुन में एक ऑटो किया और सीधा जाकर बीकानेर हाउस उतरी. सबसे पहली जो बस थी उसका टिकेट लिया और बस में बैठ गयी. अजीब भूत सवार था मेरे दिमाग में, लग रहा था की 6 घंटे का सफ़र कुछ ही देर में पूरा हो जाये. बस चलने के बाद मैंने काशिफ
को बता दिया. उस वक़्त तक भी साहब का मेरे पास कोई फ़ोन नहीं आया था, वो भी जिद में था और मै भी अपनी जिद में. किताब पढ़ते हुए और गाने सुनते सुनते मेरे जयपुर का सफ़र शुरू हुआ. लेकिन न तो किताब में मन लग रहा था और न ही गानों में.
पहले सोचा कि काशिफ को बस स्टैंड लेने आने को कहूँ, फिर सोचा कि शारिक को ही एक घंटे पहले फ़ोन करके कहूँगी कि बस स्टैंड लेने आओ. अब जयपुर महज़ 74 किलोमीटर रह गया था मैंने शारिक को फ़ोन करना शुरू किया. उस वक़्त रात के सवा एक बज रहे थे. लेकिन हज़ार बार फ़ोन करने के बाद भी उसने फ़ोन नहीं उठाया. फिर मैंने काशिफ को कहा कि तुम ही आ जाओ. रात के नक्स बजे बस जयपुर के बस स्टॉप सिन्धी कैंप पहुंची. काशिफ वहीँ खड़ा था. हम गाडी में बैठे और रात के ढाई बजे घर आये. शारिक अपने कमरे में सो रहा था. काशिफ और मै सुबह के करीब साढ़े चार बजे तक बात करते रहे. अचानक देखा कि नींद शारिक अपने कमरे से बहार आया और फ्रिज खोलकर पानी पीने लगा. फिर बाथरूम कि तरफ चला गया. मैंने जल्दी से काशिफ को सोने के लिए कहा और बाहर के कमरे कि लाइट बंद करके साहब के कमरे में चली गयी. कमरे कि लाइट बंद थी, मै जाकर चुप चाप बिस्तर में जाकर बैठ गयी. थोड़ी देर बाद शारिक कमरे में आया नींद में अचानक अँधेरे कमरे में इस तरह एक लड़की को बैठा देख उसके चेहरे कि हवाइयां उड़ने लगी. आँख मलकर उसने दो बार ठीक से देखने की कोशिश की जब उसे सच में वहां किसी के होने का एहसास हुआ तो वो कमरे से बहार चला गया. उसके बाद मै उसके आने से पहले दरवाज़े के पीछे जाकर खड़ी हो गयी. फिर थोड़ी देर बाद वो कमरे में आया, बाहर से ही एक बार कमरे में झाँका, अन्दर आकर ठीक से बिस्तर को देखा और उसके बाद उल्टा होकर सो गया. ठीक इसके बाद मैंने कमरे का दरवाज़ा बंद किया, दरवाज़ा बंद करने की एक अजीब सी आवाज़ हुई, मै उसके पास गयी और उसके ऊपर जाकर सो गयी. डर से वो चीख कर उठा और बोलने लगा कौन है और यह बोलते हुए काशिफ को आवाज़ देने लगा. फिर अपने आप ही बडबडाने लगा की पता नहीं मुझे क्या हो रहा है, मुझे माही क्यूँ दिख रही है. अब मै समझ गयी थी की नींद में है और डर भी रहा है. वो परेशान था की शायद लम्बे समय से चल रहे झगडे की वजह से उसके साथ ऐसा हो रहा है. वो बार बार मुझे छुकर देखता, मुझसे पूछता माहि तुम ही हो क्या? अचानक लाइट जलने के लिए उठा तो मैंने उसके लिए भी उसे रोक दिया. अब उसे पूरा यकीन हो गया था की कमरे में कोई भूत है. वो फिर जोर से काशिफ को आवाज़ लगाने लगा. अब इस तरह बहुत देर हो गयी थी सुबह के साढ़े पांच बज चुके थे. मैंने लाइट जलायी और उसे कहा की मै ही हूँ. इस तरह अचानक मुझे देखकर वो हैरान हो रहा था, कुछ देर तो कुछ बोल ही नहीं पाया. एक साथ उसने मुझसे न जाने कितने सवाल पूछ लिए. शायद प्यार के भूत ने उसे इतना डरा दिया था की उसे समझ ही नहीं आ रहा था की वो क्या कह रहा है. दर से चेहरा पीला पड़ गया था और हाथ पैर ठन्डे हो गए थे. सिर्फ इतनाभर बोल पाया की माही मेरा दिल बैठने को है मुझे थोडा पानी लाकर दो.
hahahahaha...gud one... tumne toh sharique ko daara he diya tha...khair pyar aur darr dono saath he mai chalte hain.. :) :)
ReplyDeletethnx..Aap aur Hum...sach mein bahut buri tarah dar gaya tha woh..
ReplyDelete११ जुलाई २०१३ की पोस्ट से शुरू किया और यहाँ तक पहुँच गए...
ReplyDeleteआगे से पीछे की ओर आ रहे थे... सो आगे का घटनाक्रम से कुछ परिचित थे, फिर भी प्रार्थना चलती रही कि सब आपके मन मुताबिक हो!
प्यार बना रहे... जिंदगी हंसती रहे और एक पतली सी धूप की लकीर सदा आबद्ध रखे दो जुदा लोगों को एक ही डोर में!
ढेर सारी शुभकामनाएं!