वक़्त तो तेज़ी से बढ़ रहा है लेकिन समझ ही नहीं आता है की वक़्त बदलता है या लोग? इस बात को लेकर मेरे और शारिक के बीच न जाने कितनी ही बहस होती है, उसका कहना होता है की वक़्त के साथ रिश्ते गंभीर होते हैं तो मुझे लगता है लोग बदलते हैं. बदलाव चाहे जिमेदारियों की वजह से आये या फिर काम की वजह से बदलाव तो आते ही हैं. अब मै आपको 2 अगस्त का किस्सा सुनाती हूँ. यह हमारी एनिवेर्सेरी है, हर साल की तरह मुझे इंतज़ार की साहब मुझे फ़ोन करेंगे, हम लोग बात करेंगे और एक बार फिर पुराने दिन को याद करेंगे. इन सब बातों के साथ मेरे दिन की शुरुआत हुई. सुबह मै तैयार हुयी और मैंने वही कपडे पहने जो कभी मै उससे पहली बार मिलने पर पहने थे. अच्छा लग रहा था, सुबह से मई बहुत कुश भी थी. लेकिन मेरी ख़ुशी दोपहर तक गायब हो रही थी. मेरी नज़रें सिर्फ और सिर्फ फ़ोन पर थी. लेकिन 2 बजे तक भी शारिक ने कोई फ़ोन नहीं किया तो मैंने ही हार कर उसे एक sms किया..sms में लिखा " happy 2 august..love u n thnx for not remembering the day" थोड़ी देर बाद उसका भी जवाब आया; लेकिन अब भी उसके पास इतनी फुर्सत नहीं थी की वो एक फ़ोन करे. गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर उससे भी ज्यादा वो सब बातें याद आ रही थी जहाँ से सब कुछ शुरू हुआ था.
अब मेरा ऑफिस भी नॉएडा हो गया है. मेरी और शारिक की कहानी भी यहीं आस पास से शुरू हुई थी. शारिक शिप्रा सनसिटी में रहता था. बस काम में मन ही नहीं लग रहा था. थोड़ी देर सीट में बैठने के बाद मै ऑफिस की छतपर चली जाती. इस ऑफिस की छत से सनसिटी साफ़ नज़र आता है. बस चाय की चुस्की और हलकी बारिश में मै मनो फ्लाश्बैक में चली गयी थी. ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत वक़्त मनो उन कुछ घंटो में मैंने देखा. मन कर रहा था वक़्त एक बार फिर पीछे चले जाये और मै उस ज़िन्दगी को एक बार फिर से जे लूँ. सनसिटी के वो दिन बहुत याद आते हैं आज भी. वो इत्मीनान, वो सुकून, वो ख़ुशी, वो पल आज चाह कर भी नहीं मिल सकते हैं. खैर जैसे तैसे शाम तोह गुज़री लेकिन उदास होने के साथ ही गुस्सा भी बहुत आ रहा था. लग रहा था फ़ोन करके खूब झगडा करूँ फ़ोन भी किया, झगडा शुरू भी हुआ लेकिन रोज़ा चलने की वजह से ज्यादा नहीं झगड़ी.
परेशान मै बस सुकून ढून्ढ रही थी, मैंने ऑफिस से ऑटो किया और सीधा आनंद विहार आ गयी. पहले सोचा घर जून, फिर मन में आया क्या हुआ अगर शारिक साथ नहीं है तो, मै तोह उस जगह जा ही सकती हूँ जहाँ हम मिले. मै ऑटो से उतरकर सीधा edm mall आ गयी. मैंने वहां straberry crush icecream लिया और जाकर उस्सी जगह में बैठ गयी जहाँ मै और शारिक जाया करते थे. एक बार फिर वही सब आँखों के सामने से गुज़र रहा था. मैंने शारिक को फ़ोन किया, और पूछा सिर्फ एक बात बता दो शायद यही सुनकर थोडा ठीक लगे, सिर्फ इतना बता दो की वक़्त बदलता है लोग ? लेकिन उसकी तरफ से कुछ जवाब नहीं आया, अक्सर ऐसे जवाब शारिक हमेशा देने से बचता है. लेकिन मेरे सच में कोई बताये वक़्त बदलता है या लोग???
जीए गए पल को फिर से जी लेने की मासूम चाह... आह! वाह!
ReplyDeleteवक़्त तो बदलता ही है, लोग भी बदलते हैं... ये कुछ सापेक्षिक सत्य हैं! कभी कुछ सच्चा लगता है तो कभी कुछ पर कुछ ऐसा भी है जो कभी नहीं बदलता... और ऐसे ही शाश्वत अंश जीवन को बस चलाये चलते हैं!