तेज हवा चल रही थी, हम दोनों अपनी पुराने सोसायटी शिप्रा सनसिटी में गाड़ी लगाकर वॉक कर रहे थे। मुझे लगा उसने गाड़ी सोसायटी में लगाई मॉल जाने के लिए क्योंकि उससे पहले बहुत झगड़ा हुआ था। लेकिन उसने गाड़ी सोसायटी में लगाने के बाद मुझे साथ लेकर उसी बिल्डिंग की तरफ चलने लगा जहां हमारा फ्लैट था। दोनों चुपचाप चल रहे थे...खामोशी से... जैसे-जैसे हम सोसायटी में बढ़ रहे थे मेरी आंखों में आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। शारिक बोला जब हम यहां थे तो वक्त कितना अच्छा था, दोनों एक दूसरे से मिलने का इंतजार करते थे, घूमते थे, हंसते थे और आज वक्त कितना बदल गया... आज एक-दूसरे की ओर देखते ही लग जाता है कि फिर एक घंटा झगड़ेंगे। मै चुप थी...कुछ नहीं बोल रही थी...बाहर तेज आंधी थी, तेज हवा चल रही थी, वैसा ही तूफान मेरे अंदर भी चल रहा था।
दोनों चलते हुए अपने में ही खोए थे, दोनों ही उसके हर कोने को देखकर पुराने दिन याद कर रहे थे, अचानक वो ठिठका, मेरी नजर बिल्डिंग पर पड़ी मौलसिरी 6.... अंदर की हलचल मानो बाहर निकलने के लिए और बढ़ रही थी। हम दोनों ऊपर जाने लगे, ठीक अपने पुराने फ्लैट के पास आकर रूके...उसके दरवाजे को छुआ, फिर छत की तरफ बढऩे लगे। छत पर पहुंचकर उस कोने को देखकर मै खुद को नहीं रोक पाई... वो वही कोना था जहां हम शाम की चाय पीया करते थे, सर्दियों में धूप सेंका करते थे। मै रो रही थी, बुरी तरह से, जैसे पता नहीं मेरी जिंदगी से क्या गया हो...शायद सब कुछ...शारिक भी वहीं था, जब खुद को संभाला तो देखा आंखे उसकी भी नम थी...
कभी कभी पुरानी यादें करीब ले आतीं है और मकसद बन जातीं है एक नयी याद संजोने का.......
ReplyDeleteप्यार बना रहे...चाहे कितना भी झगडो.....
:-)
अनु
Wonderful post ....the words simply touches the soul...
ReplyDeletewould love to see in my new place :)
@ Expression and Sayani : thnx :)
ReplyDeletewrite more often..............
ReplyDelete....simply words Wonderful post
ReplyDeleteNice work... Keep blogging :)
ReplyDeleteआँखें हमारी भी नम हैं...
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