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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Tuesday, October 18, 2011

मुझे आज भी याद है...

Just wanted to let you know... You're in my thoughts... all the time!
 ऐसी ही गुनगुनी धूप, अचानक बदलता मौसम और ठंड की आहट के बीच हम दोनों शिप्रा सनसिटी के पास बने टंडे कबाब में खाना खाना गए थे। वैसे तो बात बहुत साल पहले की है लेकिन इस दिवाली की तैयारियों के बीच अचानक मुझे वो दिन याद आ गया।  वो भी दिवाली के आस-पास के ही दिन थे। दिवाली की तैयारियों को लेकर शारिक हमेशा ही मुझसे अपडेट लिया करता था। मै भी उत्साहित रहती थी। खुले आसमान के नीचे बैठकर जब हम खाना खा रहे थे अचानक मैने चहकते हुए बोला शारिक दिवाली वाले दिन शिप्रा वाले फ्लैट में भी दिए जलाना, बहुत खूबसूरत दिखेगा घर। शारिक ने हामी भरी, लेकिन बहुत ज्यादा कुछ नहीं बोला।
खाना खाने के बाद हम घूमे फिरें फिर उसने मुझे घर छोड़।
इन्हीं तैयारियों के बीच दिवाली भी आ गई। उस दिन मै सुबह के वक्त शारिक से मिलने आ गई। हम दोनों घूमे फिरे, फिल्म देखी, खाना-खाया, पिज्जा खाया और खूब मौज-मस्ती की। इस बीच हमेशा की तरह नोंक-झोंक भी हुई लेकिन दिन बहुत अच्छा गुजरा। शाम होते ही शारिक ने मुझे घर छोड़, उसने मां के लिए एक गिफ्ट भी लिया थो जो गाड़ी से उतरने के बाद उसने मुझे दिया। मुझे भी ये देखकर अच्छा लगा। गाड़ी से उतरने के बाद मैने फिर याद दिलाया कि घर में दिए जरूर जलाना देखो चारों ओर कितनी रोशनी है, वो मुस्कुराया और चला गया।
खूब अच्छी रही वो दिवाली भी घर में मौज मस्ती हुई, मेहमानों का आना-जाना हुआ। खुश भी बहुत थी उस दिन मै। अगले दिन ऑफिस से लौटते हुए शारिक मुझे ऑफिस से लेने आया। मैने पूछा क्या तुमने घर में दिए जलाए थे, पहले उसने बात टाली फिर बोला नहीं माही, हम लोगों में ऐसा करना मना है, मै ये नहीं कर सकता। मै थोड़ी देर चुप रही। मैने कहा शारिक जब मै तुम्हारे साथ ईद मना सकती हूं तो तुम दिवाली क्यों नहीं? कोई भी त्योहार खुशियों का होता है घर में दिए जलाने का मतलब ये तो नहीं कि तुम्हारा धर्म परिवर्तन हो गया। उस दिन का दिन था और आज का दिन है मै गलती से भी किसी त्योहार के बारे में उससे कोई जिक्र नहीं करती। बुरा जरूर लगा था इसलिए शायद वो बात आज तक दिल के किसी कोने में है।

5 comments:

  1. अपने अनुभव को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है.. उम्मीद करती हूं अबकी दिवाली वो खुद आपसे कहे की दिये जलाए हैं आ जाओ रौशनी देखने

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  2. शुक्रिया सुहानी...

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