कितना अच्छा होता ना अगर हमारी मन में छुपी हर छोटी-बड़ी ख्वाहिश पूरी हो जाती। दुनिया इतनी सुलझी होती जैसे की परियों की दुनिया हो, जिंदगी में मुश्किले कम होती और खुशियां ढेर सारी। ये सब सोचते हुए लगता है जैसे छोटे बच्चों को सुनानी वाली कहानी हो लेकिन मन में जब सच में ये बातें चलती है तो थोड़े समय के लिए सचमुच दुनिया खूबसूरत नजर आती है।
आज दिन के समय कुछ ऐसा ही हुआ। ऑफिस में काम करते-करते जब थक गई तो ऑफिस के टेरेस पर चली गई। गुनगुनी धूप और ठंडी हवा अच्छी लग रही थी। मन की बेचैनी समझ नहीं पा रही थी कि इतने में फोन बजा, फोन शारिक का था। फोन उठाकर अभी बात हो ही रही थी कि घूम-फिरकर बात शादी पर पहुंच गई जिससे शारिक साहब थोड़ा हिचकिचाते हैं। फिर शारिक को मैने शर्मिला टैगोर और नवाब पटौदी की कहानी सुनाई कि कैसे एक कट्टïर मुसलमान परिवार में शर्मिला ने न केवल शादी की बल्कि खुद उस माहौल में ढलकर अपने तीनों बच्चों को इस्लामिक माहौल में बड़ा किया।
एक बार फिर दोनों में शादी की बात शुरू हो गई, ये बात होते ही मेरे मन में आता है कि ऊपरवाला मेरी ये ख्वाहिश पूरी कर दें फिर मेरे हाथ दुआ के लिए कभी नहीं उठेंगे। मैने शारिक को बोला इस्लाम में भी गैर मुस्लिम लड़की से निकाह जायज बताया है अगर को इस्लाम कबूल करे। शारिक ने पूछा इस्लाम कबूल करने के लिए भी बहुत नियम होते हैं और अगर तुम्हें वो सब करने पड़े तो क्या तुम कर पाओगी? अपने रीति-रिवाज छोड़कर अपना पाओगी सब? जितना आसान तुम सोच रही हो सब उतना ही मुश्किल होगा और जाहीरन तौर पर कुछ भी संभव ही नहीं है। हालांकि मै शारिक के इन सवालों का बहुत सहज उत्तर दिया लेकिन मन में एक बात कही कि तुमसे शादी मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश है और तुम हमेशा मेरे साथ रहो तो मै हर मुश्किल को पार कर लूंगी।
आज दिन के समय कुछ ऐसा ही हुआ। ऑफिस में काम करते-करते जब थक गई तो ऑफिस के टेरेस पर चली गई। गुनगुनी धूप और ठंडी हवा अच्छी लग रही थी। मन की बेचैनी समझ नहीं पा रही थी कि इतने में फोन बजा, फोन शारिक का था। फोन उठाकर अभी बात हो ही रही थी कि घूम-फिरकर बात शादी पर पहुंच गई जिससे शारिक साहब थोड़ा हिचकिचाते हैं। फिर शारिक को मैने शर्मिला टैगोर और नवाब पटौदी की कहानी सुनाई कि कैसे एक कट्टïर मुसलमान परिवार में शर्मिला ने न केवल शादी की बल्कि खुद उस माहौल में ढलकर अपने तीनों बच्चों को इस्लामिक माहौल में बड़ा किया।
एक बार फिर दोनों में शादी की बात शुरू हो गई, ये बात होते ही मेरे मन में आता है कि ऊपरवाला मेरी ये ख्वाहिश पूरी कर दें फिर मेरे हाथ दुआ के लिए कभी नहीं उठेंगे। मैने शारिक को बोला इस्लाम में भी गैर मुस्लिम लड़की से निकाह जायज बताया है अगर को इस्लाम कबूल करे। शारिक ने पूछा इस्लाम कबूल करने के लिए भी बहुत नियम होते हैं और अगर तुम्हें वो सब करने पड़े तो क्या तुम कर पाओगी? अपने रीति-रिवाज छोड़कर अपना पाओगी सब? जितना आसान तुम सोच रही हो सब उतना ही मुश्किल होगा और जाहीरन तौर पर कुछ भी संभव ही नहीं है। हालांकि मै शारिक के इन सवालों का बहुत सहज उत्तर दिया लेकिन मन में एक बात कही कि तुमसे शादी मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश है और तुम हमेशा मेरे साथ रहो तो मै हर मुश्किल को पार कर लूंगी।
क्या कहें...
ReplyDeleteसारे तर्क वितर्क खो जाते हैं, नियति ने जाने क्या निश्चित कर रखा होता है हमारे लिए!