कुछ पुरानी चली आने वाली बात पर तब यकीन होता है जब ये खुद के साथ होती है। कुछ ऐसा ही हुआ इस सप्ताह.. जयपुर मकान की रजिस्ट्री होनी थी, शनिवार छुट्टी होती है तो दो दिन की और छुट्टी ले ली कि मकान की रजिस्ट्री में वहां मौजूद रहूंगी। शारिक के जिंदगी के सबसे बड़े दिन मै उसके पास होंगी।
शनिवार जयपुर पहुंची, रविवार, सोमवार छुट्टी थी तो रजिस्ट्री का काम मंगलवार के दिन होना था। इन छुट्टी के दो दिन नए घर का सारा फर्नीचर खरीदा, एक-एक छोटी-बड़ी चीज। बहुत ही ज्यादा खुशी और इंतजार मकान की रजिस्ट्री का। लेकिन कहते हैं वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। मंगलवार को सारा काम हो गया बस एसडीएम ऑफिस में जाकर होने वाला काम महज एक छोटी-सी बात के कारण बुधवार के लिए टल गया। इतनी मायूसी जिसकी कोई हद नहीं, इसी दिन के लिए छुट्टी ली सब किया और रजिस्ट्री की तारीख बुधवार हो गई। लाख चाहने पर भी मै रजिस्ट्री के वक्त वहां नहीं थी :( :(
आज बुधवार मै जयुपर से दिल्ली पहुंची, अपने डेस्क पर बैठकर ये लिख ही रही थी कि शारिक का फोन आया और बोला मुबारक हो...,.
शनिवार जयपुर पहुंची, रविवार, सोमवार छुट्टी थी तो रजिस्ट्री का काम मंगलवार के दिन होना था। इन छुट्टी के दो दिन नए घर का सारा फर्नीचर खरीदा, एक-एक छोटी-बड़ी चीज। बहुत ही ज्यादा खुशी और इंतजार मकान की रजिस्ट्री का। लेकिन कहते हैं वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। मंगलवार को सारा काम हो गया बस एसडीएम ऑफिस में जाकर होने वाला काम महज एक छोटी-सी बात के कारण बुधवार के लिए टल गया। इतनी मायूसी जिसकी कोई हद नहीं, इसी दिन के लिए छुट्टी ली सब किया और रजिस्ट्री की तारीख बुधवार हो गई। लाख चाहने पर भी मै रजिस्ट्री के वक्त वहां नहीं थी :( :(
आज बुधवार मै जयुपर से दिल्ली पहुंची, अपने डेस्क पर बैठकर ये लिख ही रही थी कि शारिक का फोन आया और बोला मुबारक हो...,.
अनुभूत सत्य चली आ रही सूक्तियों को यूँ ही पुष्ट करते हैं...
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