दिल्ली से जयपुर जाने पर दो काम निश्चित तौर पर होते हैं एक शारिक साहब से झगड़ा और दूसरा जयपुर से शॉपिंग। इन दानों को किए बगैर मै वहां से लौटती ही नहीं हूं। इस बार भी यही हुआ। खैर ये अब आम बात हो गई है, हम दोनों शॉपिंग के लिए निकले घर के जरूरी सामान की खरीदारी करनी थी। सबकुछ लेने के बाद शारिक ने कहा तुम अपने लिए कुछ अच्छे सूट ले लो। सूट इतने ले चुकी थी कि कुछ खास मन नहीं था लेने का लेकिन उसकी रूचि को देखकर मैने मना नहीं किया। दो-चार दुकान घूमे लेकिन कुछ खास पसंद नहीं आया। शारिक का भी होता है लो तो बहुत अच्छा और एक साथ बहुत सारा। बहुत घूमने के बाद बापू बाजार के एक अच्छी दुकान में हम दोनों को सूट पसंद आ गए। हमने भी चार-पांच सूट ले लिए। बिल करवाया और पूरा बाजार खरीदने के बाद सामान गाड़ी में भरने लगे। सूट सभी बहुत खूबसूरत थे, हम रास्ते में भी इन्हें कैसे बनाएंगे यही बातचीत कर रहे थे।
रात घर पहुंचने के बाद शारिक बोला माही निकालना सारे सूट देखते हैं सब कैसे लिए हैं हमने, मै गई और सारे पैकेट निकाल लाई। अरे ये क्या... सारे सूट के कपड़े हरे रंग के, हल्का हरा, गहरा हरा, लाल के साथ हरा, भूरे के साथ हरा, हरा हरा हरा। दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और दोनों की ही हंसी छूट गई। :)
असल में शारिक को हरा रंग बहुत पसंद है और मै जब खरीदारी के लिए जाती हूं तो कुछ पसंद नहीं करती, सब उसी की पसंद का। इस बार भी खरीदते समय एक बार भी ध्यान नहीं गया कि हमने ढेर सारे कपड़े हरे रंग में ले लिए है। अब क्या, शारिक बोला कल जाकर बदल लाएंगे एक-दो सूट। फिर बोला माही मैने तुम्हे जो पहला कुर्ता दिलाया था वो भी शायद हरा था ना, मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कुराहट आ गई। :)
सही में शारिक ने मुझे जो पहला कुर्ता दिलाया था वो भी हरे रंग का ही था। मुझे आज भी याद है वो अपने ऑफिस से अचानक कनॉट प्लेस पहुंचा था। मुझे फोन किया और बोला ऑफिस के बाहर आओ। मै बाहर आई और हम दोनों सीपी के गलियारों में टहलने लगे। कुछ देर बाद बोला तुमने एकदम अच्छे कपड़े नहीं पहने हैं, चलो कुछ खरीदते हैं। मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माना। हम वहीं के फैब इंडिया चले गए जहां से मै कुर्ते खरीदती हूं। नए-नए रिश्ते में मुझे थोड़ी झिझक भी हो रही थी। लेकिन उसने दो कुर्ते पसंद किए उस वक्त भी दोनों कुर्ते हरे थे एक हल्का हरा और दूसरा गहरा हरा। आज भी उस कुर्ते को पहनने के लिए निकालती हूं तो पुरानी सारी बात रील की तरह आंखों के सामने चलने लगती है। आखिर में आकर यही लगता है कि वक्त के साथ या तो रिश्ता मैच्योर हो जाता है या फिर बिखरने लगता है।
पता नहीं इतने बदलाव को क्या कहना ठीक होगा। :(
खैर इस बार भी हरियाली से मैने अपनी पूरी अलमारी को भर लिया है। शारिक की पसंद जो थी कैसे कुछ और पसंद करके ले आती, उसकी जिद पर दोबारा गए हम कपड़े बदलने लेकिन मेरा मन नहीं था, फिर हमने एक नया सूट लिया और एक बदल लिया। लेकिन मै उन्हीं कपड़ो को चाहती थी इसलिए घर आकर मैने बदले हुए कपड़े को वहीं अलमारी में रख दिया, उसे अपने साथ घर नहीं लायी। मुझे सब वैसे ही चाहिए बदला हुआ कुछ भी नहीं...
ReplyDelete♥
मुझे सब वैसे ही चाहिए बदला हुआ कुछ भी नहीं।
पूरी पोस्ट का सार यही है ..
आदरणीया माही जी
सस्नेहाभिवादन !
पहली बार पहुंचा हूं आपके यहां , अच्छा लगा
:)
रोचक पोस्ट !
आपकी ज़िंदगी में हरियाली बनी रहे ... :)
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शुक्रिया राजेंद्र जी... आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग में
ReplyDeletebeautifulllllllllll
ReplyDeleteहरा-भरा रहे यूँ ही...आपका wardrobe...और दिल भी...
:-)
touch wood...
anu
दुआओं के लिए शुक्रिया अनु :)
ReplyDelete:-)
ReplyDeletethanks for dropping such kind comments...
following you...so hope to stay in touch..
anu
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteShuqriya sanjay ji...welcome here :)
ReplyDeleteGreen is soothing!
ReplyDelete