29 दिसंबर 2011 से 1 जनवरी 2012
प्लानिंग के मुताबिक मै न्यू मनाने के लिए 29 तारीख को ही जयपुर के लिए निकल गई। शारिक को बताया भी नहीं था कि मै आ रही हूं। इस बार सफर में थोड़ा एक्साइटमेंट देने के लिए मैने वॉल्वो नहीं रोडवेज की बस में सफर किया। इस बस का भी एक्सपीरियंस हुआ और पैसे भी बचे :P
बस फिर क्या बस में एक बार नए तरीके से जयपुर के लिए निकल पड़ी। रोडवेज की बस का सफर पर बहुत नहीं सुहाया। खैर...सफर जैसा भी हो मै अपनी मंजिल में शाम के छह बजे पहुंच ही गई। इस बीच शारिक का दो बार फोन आया लेकिन मैने उसे बताया नहीं कि मै रास्ते में हूं। अचानक जयपुर उतरने के बाद उसे फोन किया थोड़ा गुस्सा होने के बाद बोला, क्रिस्टल पाम मॉल के पास आओ, मै वहीं से लेता हूं तुमको। बस मैने ऑटो किया और पहुंच गई क्रिस्टल पाम, शारिक आया और हम घर चले गए। :)
अगले दिन सुबह नींद खुली तो देखा दोनों ही ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे। शारिक के लिए टिफिन तैयार किया। जनाब को मटर-आलू बहुत पसंद है तो सोचा सुबह मटर-आलू ही बना देते हैं। चाय पीने के बाद दोनों निकल गए और मै हमेशा की तरह बड़े से मकान को घर बनाने में लग गई। पूरा दिन निकल गया घर ठीक करते-करते। इस बीच दोनों को फोन भी किया, लेकिन काशिफ साहब अपनी मीटिंग में और ये साहब अपनी मीटिंग में। :(
मै भी अकेले कहीं बाहर जाने के मूड में नहीं थी। शाम में देखा तो शारिक का भाई भी पहुंचा। फिर सब मिलकर शनिवार को सरिसका जाने का प्लान बनाने लगे। शारिक और काशिफ के भाई भी शनिवार को जयपुर पहुंचने वाले थे और सबका मिलकर घूमने जाने का प्लान बना। इस बीच रात को खाना बनाने के बाद मै और शारिक घर के पास ही टहलने के लिए निकल पड़े, थोड़ा झगड़ा भी किया और खूब सारी आइसक्रीम भी खाई जिसके बाद आज तक गला खराब है।
my journey on roadways bus |
बस फिर क्या बस में एक बार नए तरीके से जयपुर के लिए निकल पड़ी। रोडवेज की बस का सफर पर बहुत नहीं सुहाया। खैर...सफर जैसा भी हो मै अपनी मंजिल में शाम के छह बजे पहुंच ही गई। इस बीच शारिक का दो बार फोन आया लेकिन मैने उसे बताया नहीं कि मै रास्ते में हूं। अचानक जयपुर उतरने के बाद उसे फोन किया थोड़ा गुस्सा होने के बाद बोला, क्रिस्टल पाम मॉल के पास आओ, मै वहीं से लेता हूं तुमको। बस मैने ऑटो किया और पहुंच गई क्रिस्टल पाम, शारिक आया और हम घर चले गए। :)
अगले दिन सुबह नींद खुली तो देखा दोनों ही ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे। शारिक के लिए टिफिन तैयार किया। जनाब को मटर-आलू बहुत पसंद है तो सोचा सुबह मटर-आलू ही बना देते हैं। चाय पीने के बाद दोनों निकल गए और मै हमेशा की तरह बड़े से मकान को घर बनाने में लग गई। पूरा दिन निकल गया घर ठीक करते-करते। इस बीच दोनों को फोन भी किया, लेकिन काशिफ साहब अपनी मीटिंग में और ये साहब अपनी मीटिंग में। :(
मै भी अकेले कहीं बाहर जाने के मूड में नहीं थी। शाम में देखा तो शारिक का भाई भी पहुंचा। फिर सब मिलकर शनिवार को सरिसका जाने का प्लान बनाने लगे। शारिक और काशिफ के भाई भी शनिवार को जयपुर पहुंचने वाले थे और सबका मिलकर घूमने जाने का प्लान बना। इस बीच रात को खाना बनाने के बाद मै और शारिक घर के पास ही टहलने के लिए निकल पड़े, थोड़ा झगड़ा भी किया और खूब सारी आइसक्रीम भी खाई जिसके बाद आज तक गला खराब है।
Way to moon is a lovely series!
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