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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Sunday, January 8, 2012

वे टू मून : 4


1 जनवरी 2012
सरिसका टाइगर रिसर्व

way to Sariska 
नील गाय
साल के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर को रामगढ़ और भानगढ़ के एडवेंचर ट्रिप के बाद 1 जनवरी 2012 को हम सब सरिसका की सफारी के लिए चले। सरिसका राजस्थान के अलवर जिले में पड़ता है। सरिसका की दोबारा बुकिंग करवा ली गई थी। अब बस हमें समय से वहां पहुंचना था लेकिन इतने सारे एक जैसे लोगों के साथ सही समय में घर से निकलना और सही समय में वहां पहुंचना थोड़ा मुश्किल काम है। खैर सब तैयार होकर थोड़ा बहुत खाने का सामान गाड़ी में रखकर, अपने आईडी कार्ड रखकर हम लोग सरिसका के लिए चल पड़े। जयपुर से सरिसका पहुंचने में भी करीब ढाई घंटा लगना था। :)
बस सरिसका पहुंचने के कुछ दूर पहले हम लोगों ने ढाबे में खाना खाया। इतना लजीज ढाबे का खाना एक अर्से बाद खाया था। क्या स्वाद था, मसालेदार मटर पनीर, तड़का दाल, सेव टमाटर, रोटी, छाज और सलाद....एकदम लाजवाब स्वाद। सबने खूब छककर खाया। यहां से भी सरिसका तक थोड़ा वक्त लगता। खाकर दोबारा सब गाड़ी में बैठ और निकले। लेकिन अभी थोड़ी ही दूर चले थे कि आमिर की तबीयत खराब हो गई। उसे थोड़ा आराम देने के लिए गाड़ी को किनारे लगाया गया। इतने में शारिक ने आवाज दी, देखा जहां गाड़ी रूकी है उसकी दूसरी तरफ सरसों के लहलहाते खेत, शारिक बोला माही फोटो लेते हैं, बस फिर क्या था हम लोगों ने खूब फोटो शूट किया। सरसों के खेत में दिलवाले दुल्हनियां के पोज में खूब फोटो खिंचवाई। :) :) अभी फोटो सेशन में व्यस्त ही थे कि अचानक घड़ी पर नजर पड़ी देखा अब हमें बहुत देर हो गई है। फटाफट गाड़ी में बैठे और सरिसका के रास्ते चले, रास्ता इतना खराब कि लग्जरी कार में बैठकर भी कमर जवाब देने लगी थी। अब हमें सरिसका का बोर्ड नजर आया और हमने गाड़ी लगाई।
me and sharique 

kashif 
लेकिन इस न्यू ईयर शायद सबकुछ बहुत आसान नहीं था। पहले से बुकिंग कराने के बाद भी वहां से हमें जीप देने से इंकार कर दिया गया। मै भी सीधा ऑफिसर के पास गई और नियम कायदों की किताब खाल दी, उसने भी अपनी गलती मानते हुए हमें जीप देने के लिए रसीद दे दी। शारिक लोग भी ऑफिसर से मेरे बेहस के एपीसोड को देखर इंप्रेस हो गए। जीप में चढ़कर सबके चेहरे पर मुस्कार आ गई। लेकिन जीप हमें दोपहर 3 बजे मिली जो कि डेढ़ बजे ही मिलनी चाहिए थी। अब हम लोग सरिसका के जंगल के लिए चले। मुझे पहले लग रहा था कि जू के जैसे तैयार किया हुआ कोई जंगल होगा लेकिन जैसे ही जीप लेकर उबड़-खाबड़ रास्ते से ड्राइवर चला तो मेरे होश उड़ गए। कुछ ही देर बाद हम एक बीहड़ जंगल में थे, जीप के आस पास से जंगली जानवर निकल रहे थे, हिरण, नील गाय, जंगली सूअर और तमाम तरह के जानवर अपनी गतिविधियों में मशगूल थे। हम लोगों को जीप से नीचे उतरना एकदम मना था, यहां तक कि शोर मचाना भी मना था जिससे जानवर डर के छिप न जाए। इतनी खूबसूरती देखकर मन खुशी से भर गया। जंगल के संकरे रास्ते से जब जीप चल रही थी और दूसरी तरफ गहरी खाई तो रोमांच के साथ ही डर भी लग रहा था। अब हम लोग टाइगर को देखने के लिए बेताब हो रहे थे, ड्राइवर ने बताया कि सुबह से एक भी ट्रिप के लोगों को टाइगर नजर नहीं आया है। लेकिन टाइगर गया इसी रास्ते से है क्योंकि उसके पैरों के निशान देखने को मिले। उस बीहड़ जंगल में छोटे-छोटे गांव भी थे जहां रहने वाले लोग आज के इस जमाने में भी उसी जंगल में रहकर अपना गुजारा चलाते हैं। वहां रहने वाले लोग शिक्षित नहीं है यहां तक कि छोटे बच्चे भी नहीं पढ़ते हैं। पढऩे जाए भी तो कहां?
शाम तक जंगल में खूब घूमे, जैसे-जैसे शाम ढल रही थी टाइगर की एक झलक देखने को मन और बेताब हो रहा था। लग रहा था कि टाइगर देखने के लिए ही इतनी मुश्किल से पहुंचे हैं और टाइगर ही नहीं दिखे तो कैसा लगे। लेकिन जब एकदम शाम हुई तो ड्राइवर बोला कि अभी खबर आई है कि टाइगर का लोकेशन उस पहाड़ों के पीछे हैं जो कि अभी यहां नहीं उतरेंगे। हमारे पूछने पर कि उन लोगों को कैसे पता चला तो बोला टाइगर के पैरों में सेंसर लगा है जिसे उसके मूवमेंट पता चलती है। अब हम उस जंगल से बाहर निकल रहे थे लग रहा था कि एक दूसरी ही दुनिया से निकलकर फिर अपनी शोर-शराबे वाली दुनिया में जा रहे थे। जंगल कितना अच्छा लग रहा था, चिडिय़ों की आवाज, खेलते जानवर, अपने आप में मस्त हिरण, खेलते बंदर, सफारी और जू के इस बड़े अंतर को देखकर बहुत ही अच्छा लगा।
अब हम जंगल से बाहर थे और शहर की तरफ निकल पड़े। हम तीन लोग को दिल्ली के लिए निकला था और शारिक, काशिफ और जामी को जयपुर लौटना था। हमने पाओटा के पास से बस ली   और दिल्ली के लिए रवाना हुए। रात के तीन बजे आमिर, सुहेब और और मै दिल्ली पहुंचे और इस तरह साल का पहला दिन सब लोगों के साथ एक यादगार दिन बना।

2 comments:

  1. Reading this brought back memories of Bhangarh trip. Sahi kaha...raaste jaise koi cheez nhi wahaan...Abhi Sariska dekhna rehta hai...Jaldi hi. :

    Here's what I wrote: http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=276295. Please read and share your thoughts! :D

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