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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Tuesday, January 3, 2012

वे टू मून : 3

 भानगढ़ का भूतहा रास्ता
भानगढ़
bhangarh, me in centre with sharique n kashif

exploring cave
bhoot calling

Words just cant express what it is – three words, two people, one feeling.

रामगढ़ में फोटोग्राफी सेशन करने के बाद हम लोग वहां से करीब 70 कि.मी. दूर भानगढ़ के लिए निकल पड़े। भानगढ़ को भूतों का गांव कहा जाता है। सही में वहां के रास्तों को देखकर कुछ ऐसा ही लगा। सूनसान सड़कों पर कुछ नहीं, सिर्फ फैले खेत, पेड़ और बीच में पडऩे वाले कुछ गांव जहां बहुत थोड़े ही घर थे। रास्ता तो बहुत ही मस्त लग रहा था, नाम के मुताबिक ही हांटेड भी दिख रहा था। बीच-बीच में कुछ एक गांव के लोग नजर आते। रास्ते में ढेरों सरसों के खेत, एक छोटा गांव भी पड़ा जहां के लोग अपने ही काम में लगे हुए नजर आए। रास्ता पूछने पर गांव के लोग पूरे इत्मीनान से रास्ता भी बताते साथ ही ये भी कहते कि वो भूतों का गांव है, शाम होने से पहले लौट आना।
गांव के लोगों की इस तरह की बातें हमारे एक्साइटमेंट को और बढ़ा रही थी।जैसे-जैसे रास्ता कम हो रहा था लग रहा जल्द ही भूतों की नगरी वाले भानगढ़ पहुंचे।
आखिरी बहुत ड्राइव करने के बाद भानगढ़ आ ही गया। बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ इसका किला, दूर-दूर तक जंगल और बड़ी घाटियां। देखकर लग रहा था पता नहीं लोग इसे भूतहा क्यों कहते हैं? इतनी सुंदर जगह में अगर रहने को मिल जाए तो मजा आ जाए। लेकिन वहां कुछ बात तो थी, रानी रत्नावती की कहानी और उसके किस्से मुझे उस जगह के हर कोने में नजर आ रहे थे। यही नहीं लोग सही में वहां भूत-प्रेत की पूजा में लगे थे। एक जगह तो तांत्रिक लोग ऐसे भजन औ किर्तन कर रहे थे कि मानों सही में भूत अभी आकर यहां खड़ा हो जाएगा। एक-एक गुफा में लग रहा था जैसे कितनी ही कहानियां हैं, टूटी हुई दिवारों में आज भी उन कहानियों को देखा जा सकता है। पूरे किले में जगह बोर्ड में उस समय की बातें लिखी थी। एक जगह तो ऐसी बनी थी जो कि उस समय वहां का बाजार था। जो भी कुल मिलाकर जगह बहुत ही अच्छी थी, हां शाम के बाद डरावनी जरूर हो गई थी। सूरज ढलने के बाद वैसे भी वहां जाना मना है।
खैर हमें भूत तो कहीं नहीं मिला लेकिन राजस्थान की इस खूबसूरती हम सब को बहुत ही अच्छी लग रही थी। किले की सबसे ऊंची जगह पर जब मै और शारिक बैठे और वहां से पूरी घाटी और भानगढ़ दिखा तो लगा जैसे इसी तरह घंटों बैठे रहें। इस तरह कुछ देर के लिए जब हम दोनों अकेले बैठे तो 31 दिसंबर की शाम बहुत ही अच्छी लग रही थी। मन ही नहीं कर रहा था कि वहां से लौटकर दोबारा जयपुर के लिए निकलें। शारिक से मैने कहा आखिरकर हम 31 दिसंबर को साथ में ही है। हर बार की साथ न होने की लड़ाई से इस बार हम बच गए। :P दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्काराए, तभी पीछे से जामी की आवाज आई, सुनिए जैसे ही मै पीछे मुड़ी तो उसने ये फोटो खींची। इस तरह 31 दिसंबर का दिन एक्साइटमेंट और एडवेंचर के साथ पूरा हुआ। रात का वापस जयपुर पहुंचे तब तक उसके दोनों भाई भी पहुंच गए थे। सब लोग साथ में खाना खाने गए। फिर देर रात तक बाहर रहे, आकर सब अगले दिन सरिसका जाने के लिए सो गए।


2 comments:

  1. Adventures are always refreshing:)
    Pictures say it all!

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  2. Aapko Bhangarh bhotaaha nahi laga? I went with a friend, the place has some negative vibes about it. Sunsaan, veerana...

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