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खाना खाने के बाद हम घूमे फिरें फिर उसने मुझे घर छोड़।
इन्हीं तैयारियों के बीच दिवाली भी आ गई। उस दिन मै सुबह के वक्त शारिक से मिलने आ गई। हम दोनों घूमे फिरे, फिल्म देखी, खाना-खाया, पिज्जा खाया और खूब मौज-मस्ती की। इस बीच हमेशा की तरह नोंक-झोंक भी हुई लेकिन दिन बहुत अच्छा गुजरा। शाम होते ही शारिक ने मुझे घर छोड़, उसने मां के लिए एक गिफ्ट भी लिया थो जो गाड़ी से उतरने के बाद उसने मुझे दिया। मुझे भी ये देखकर अच्छा लगा। गाड़ी से उतरने के बाद मैने फिर याद दिलाया कि घर में दिए जरूर जलाना देखो चारों ओर कितनी रोशनी है, वो मुस्कुराया और चला गया।
खूब अच्छी रही वो दिवाली भी घर में मौज मस्ती हुई, मेहमानों का आना-जाना हुआ। खुश भी बहुत थी उस दिन मै। अगले दिन ऑफिस से लौटते हुए शारिक मुझे ऑफिस से लेने आया। मैने पूछा क्या तुमने घर में दिए जलाए थे, पहले उसने बात टाली फिर बोला नहीं माही, हम लोगों में ऐसा करना मना है, मै ये नहीं कर सकता। मै थोड़ी देर चुप रही। मैने कहा शारिक जब मै तुम्हारे साथ ईद मना सकती हूं तो तुम दिवाली क्यों नहीं? कोई भी त्योहार खुशियों का होता है घर में दिए जलाने का मतलब ये तो नहीं कि तुम्हारा धर्म परिवर्तन हो गया। उस दिन का दिन था और आज का दिन है मै गलती से भी किसी त्योहार के बारे में उससे कोई जिक्र नहीं करती। बुरा जरूर लगा था इसलिए शायद वो बात आज तक दिल के किसी कोने में है।