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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Wednesday, October 16, 2013

...चंद आखिरी पन्‍ने लिख रही हूं

वॉल्‍वो से ली हुई एक पुरानी तस्‍वीर Delhi-jaipur highway
लग रहा है जैसे कुछ आखिरी पन्‍ने लिख रही हूं, जिंदगी के आखिरी पन्‍ने. हां, अधूरे, बेतरतीब से, सच्‍चे, झूठे...टूटे ख्‍वाबों को समेटते हुए लंबा वक्‍त गुजर गया, लेकिन कसक है कि जाती ही नहीं.
आज सुबह से नजरें फोन पर थी, मुबारकबाद सुनने के लिए, एक सलाम के लिए, एक सलाम का जवाब सुनने के लिए. ईद जो थी, इंतजार अब खत्‍म हुआ, लेकिन मायूसी के साथ क्‍योंकि ना फोन बजा, ना मुबारकबाद आई.

कॉफी का कप लेकर जब शाम को खिड़की के पास बैठी तो कुछ महीने पहले तुमसे हुई मुलाकात याद आई. वो मुलाकात जो आठ महीने बाद हुई, वो मुलाकात जो ना कभी दिल से जाएगी और ना नजरों से. 25 अगस्‍त रात को तुम्‍हारा एक मैसेज आया. 'कल दिल्‍ली आ रहा हूं और तुम्‍हे मुझसे थोड़ी देर के लिए मिलने आना होगा. तुम्‍हारा ज्‍यादा वक्‍त नहीं लूंगा, जरूरी काम है प्‍लीज आ जाना.'

ये मैसेज पढ़कर कुछ देर के लिए सांस ही नहीं आई, हाथ-पैर भी ऐसे कांपे जैसे ना जाने क्‍या सुन लिया. दिल फफक-फफक कर रो रहा था, कह रहा था, 'बिना सोचे समझे चली जा.' लेकिन दिमाग ने मना कर दिया. मैने मैसेज लिखा, नहीं आ पाऊंगी, एक बार फिर तुम्‍हे जाते नहीं देख सकती. माफ कर दो, मै नहीं आऊंगी.' ऊधर से तुम्‍हारा मैसेज आया, मीटिंग के लिए आ रहा हूं, गुड़गांव में है, एमजी रोड मेट्रो स्‍टेशन में शाम 5 बजे.'
तुम जानते थे मै आऊंगी, हमेशा की तरह, बिना सोचे समझे, दौड़कर आऊंगी. दिल और दिमाग की कश्‍मकश में रात आंखों में ही गुजर गई. सुबह 6 बजे ऑफिस के लिए भी निकल गई, मॉर्निंग शिफ्ट थी. पूरा दिन तुम्‍हारा कोई फोन नहीं आया था. शायद तुम जानते थे कि मै जरूर पहुंची.

ऑफिस से निकल गई थी, लेकिन घर का रास्‍ता पकड़ने की बजाय मेट्रो लिया. दिल, दिमाग से जीत चुका था, मै तुम्‍हारे पास आने के लिए निकल पड़ी थी. कुछ देर बाद मै एमजी रोड के मेट्रो स्‍टेशन में थी, तुम्‍हारा फोन आया, 'मुझे आने में थोड़ी देर हो जाएगी. तुम थोड़ा इंतजार करना.' मैने धीरे से पूछा, 'तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह रहे हो कि मै पहुंच गई हूं?' तुमने जवाब दिया, 'क्‍योंकि तुम माही हो.' इतना कहकर तुमने फोन काट दिया.

थोड़ी देर बाद फिर फोन आया, 'किस गेट पर हो?' इतना सुनकर अब मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, क्‍योंकि आठ महीने बाद तुम्‍हारा चेहरा देखूंगी. मैने कहा, 'गेट नंबर 2. मै वहीं ऊपर सीढि़यों पर खड़ी थी, तुम सामने से पैदल चलकर आ रहे थे, अब आखिरी सीढ़ी पर तुम थे और पहली सीढ़ी पर मै. उन चंद सीढि़यों के बीच से गुजरे इतने साल सरसराकर निकल रहे थे. ना तुम ऊपर आ रहे थे और ना मै नीचे. वहीं से हम दोनों एकदूसरे को देख रहे थे, थाड़ी देर बाद मै नीचे आई. दिल कर रहा था एक बार गले लग जाऊं, बिल्‍कुल पहले की तरह पर शायद बहुत कुछ बदल चुका था या शायद मुझे लग रहा था.

तुम्‍हारी आंखों में नमी थी, पूछा तुमने मुझसे, 'कैसी हो माही?' मै देखा नहीं तुम्‍हारी ओर क्‍योंकि जानती थी मै कि नहीं संभाल पाऊंगी खुदको. हम मेट्रो स्‍टेशन पर ही बने कॉफी कैफे डे में गए. तुमने कॉफी ऑर्डर की, मेरी पसंद की कॉफी, ब्‍लैक कॉफी, लेकिन सिर्फ एक कप. तुमने ही कॉफी में शक्‍कर मिलाई, बिल्‍कुल थोड़ी, जैसा मै पीती हूं. फिर कप उठाकर मुझे दिया. मै चाह कर भी खुद को नहीं रोक पाई, मै रो रही थी और आंसू इतने थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

थोड़ी देर बाद तुमने मुझसे कहा, 'माही, मै तुम्‍हारा गुनहगार हूं. मै जानता हूं मैने क्‍या किया है और मुझे जिंदगीभर इस बात का अफसोस रहेगा, लेकिन तुम्‍हे आज देखकर मुझे अपने आप से आज और नफरत हो गई है. क्‍योंकि तुम्‍हारी आंखों में मै वहीं देख रहा हूं जो आठ महीने पहले आखिरी बार मिलते हुए देखा था. मुझे दिल से माफ कर दो माही.' गलती तो हो गई तुमसे, ना अब हम एकदूसरे की जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो सकते.

हम दोनों के दर्मियां सिर्फ खामोशी थी. तुमने मुझसे पूछा, 'क्‍या मै एक सिप कॉफी इससे पी सकता हूं?' मैने हामी में सिर हिलाया, तुमने कॉफी का एक सिप पीया. मै बिना तुम्‍हारी ओर देखे, उठकर चली गई.