About Me

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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Sunday, December 23, 2012

आखिर नहीं लड़ पाई मै...


jodhpur, clicked by Mahi S
रास्‍ते शायद अगल हो चुके थे अब....दिल का पता नहीं...तुम्‍हारे दिल का!  कभी कुछ था भी या नहीं इस बात पर भी शक होता है. सब हिम्‍मत जुटाकर सिर्फ इतना बोल पाई कि ज्‍यादा से ज्‍यादा वक्‍त मेरे साथ रहो..क्‍या तुम इतना कर सकते हो मेरे लिए? हमेशा की तरह तुम्‍हारे पास मेरे लिए खामोशी ही थी...इस बार तुम्‍हारा जवाब जानना मुझे जरूरी नहीं लगा क्‍योंकि मेरा दिल मान चुका था मै अब जो कर रही हूं वो अपने लिए कर रही हूं. 
खराब तो था ही सब, लंबे समय से....साथ होकर भी अलग ही थे. लेकिन इस बार तुम्‍हें बताकर जयपुर आई थी मै. बोला था मैने इस बार बाहर चलेंगे कहीं. पता नहीं कितने समय बाद तुमने बात नहीं काटी थी मेरी. एक बार में ही कहा ठीक है, जोधपुर ले चलूंगा तुम्‍हें. मै हमेशा की तरह ऑफिस के बाद जयपुर के लिए निकली. रास्‍ते में तुमसे बात भी हुई लेकिन पता नहीं क्‍यों खालीपन लग रहा था मुझे....शायद मेरे मन का खलल था. तुमने कहा, 'मै तुम्‍हारे पहुंचने से पहले ही सिंधी कैंप पहुंच जाऊंगा.' मै अब भी सिर्फ तुम्‍हें स सुनना ही चाह रही थी, देखना चाहती थी क्‍या-क्‍या बोल सकते हो तुम.... 
मै सिंधी कैंप पहुंच गई थी, रात के साढ़े ग्‍यारह बजे थे. तुम पहले ही वहां थे, हाथ में जोधपुर की दो वॉल्‍वो की टिकट के साथ. तुम मेरी ओर बढ़े...मेरे हाथ में एक किताब थी...रविंदर सिंह की 'कैन लव हैपन ट्वाइस'... तुम पास आए...मुझे देखा, किताब को देखा...फिर बोले...'तुम्‍हे नहीं हो सकता'...तुम्‍हारी इस बात से मेरे चेहरे पर मुस्‍कुराहट तो आई लेकिन वो एक सवाल था, फिर भी तुमने मुझे.... 

clicked by Mahi S
तुम्‍हारे हाथ में कप नूडल था, तुमने मुझे दिया और बोले मुझे पता है तुमने रास्‍ते में कुछ नहीं खाया होगा..ये नूडल खा लो... तुम्‍हारी ये फिक्र देखकर मुझे अजीब लग रहा था. हम दोनों वॉल्‍वो में बैठ गए. पहली बार मै घर में जाने से पहले जयपुर से कहीं और के लिए निकली थी....छह घंटे के बाद जब आंख खुली तो एक और नया शहर हम दोनों का स्‍वागत कर रहा था.... जोधपुर की वो सुबह बहुत खास थी और मै तुम्‍हारे साथ....शायद और कुछ दिन के लिए...होटल के कमरे की खिड़की से जब पर्दा हटाया तो आंखों को एक सुकून मिला, नीला खुला आसमान और ऊंची पहाड़ी....मै अकेले खड़ी थी, हमेशा के लिए अकेले...सोच रही थी जिंदगी कैसी होगी तुम्‍हारे बिना...आखिर नहीं लड़ पाई ना नियति से ना ही तुमसे..... 

Wednesday, November 28, 2012

चल पड़ी थी फिर दूर कहीं...


clicked by Mr. S
अजीब खबर सुनने को मिली उस दिन, सुनकर अनसुना करना चाहा लेकिन शायद खबर सच थी.
तुम्‍हें फोन लगाना चाहती थी पर मैने नहीं किया. दोपहर को ही ऑफिस से निकल गई थी...दूर कहीं....कश्‍मकश थी मन में क्‍या बात करूं...क्‍या पूछूं तुमसे...अजीब सी दूरी महसूस हो रही थी तुमसे...पता नहीं कैसा अजनबी एहसास था तुम्‍हें लेकर...इतने सालों में पहली बार...
शाम को मैने फोन मिलाया तुम्‍हें, फोन उठाया तुमने लेकिन आवाज भी अपनी सी नहीं लग रही थी मुझे. पता नहीं क्‍या था...आखिर तुमसे पूछ ही लिया मैने...खामोशी थी फोन में...हम दोनों के दर्मियां भी था अजनबी एहसास और खामोशी. काफी देर बाद बस एक आवाज आई...'अब समझो माही'. तुम्‍हारा इतना कहना ही मेरा जवाब था..
कुछ नहीं बोली मै तुमसे...फोन रख दिया मैने. तुम वो थे ही नहीं जिसने मुझे माही बनाया...मै तो किसी अजनबी से बात कर रही थी. तुम अपना ले चुके थे, तुम्‍हारा फैसला था, मै कहीं नहीं थी उस फैसले में...अंगुलियों में दिन गिनने लगी थी, जेहन में एक ही बात आई 'ना जाने तुम्‍हारे साथ बिताने के लिए कितने दिन हैं मेरे पास'.
फोन लगातार बज रहा था....नहीं उठाना चाहती थी फोन...क्‍या सुनने के लिए उठाती कि अब रास्‍ते अलग होंगे...चल पड़ी थी फिर दूर कहीं...

Friday, November 16, 2012

खो गया अक्स, खो गए अलफ़ाज़

@ Bhangarh
मुझे याद आ रहा है, उस दिन जब तुम शाम को ऑफिस से लौटे थे और मै तुम्हे पानी देने के बाद दिन भर की साडी बातें तुम्हे एक ही सांस में बता रही थी। बिना तुम्हारी तरफ देखे, मै सिर्फ बोली जा रही थी। शौपिंग में आज इतना डिस्काउंट मिला, घर की साडी ग्रोसरी ललकार आई, एक लाल रंग का दुप्पटा लिया, ड्राईवर देर से आया, नीचे के फ्लैट में नयी फॅमिली आई है उनसे दोस्ती हुयी, उन्हें मैंने शाम को चाय पर बुलाया...तुम हमेशा की तरह मेरी बातें सुन रहे थे।
 मेरी बातों को बीच में रोकर तुमने मुझे एक कप चाय बनाने को कहा। मै चाय बनाने चली गयी, चाय लेकर आई तो तुम अख़बार लेकर बैठे थे, मै छह रही थी तुम मुझसे बात करो। मैंने तुम्हे बोला भी "क्या तुम चाय और अख़बार लेकर बैठ गए, मुझसे बात करो, सुनो न ठीक से मैंने पुरे दिन क्या किया।" पर तुम तो बस सिर हिलाकर जवाब दिया। मुझे अच्छा नही लगा, मै उठकर चली गयी। आईने के सामने मई तैयार हो रही थी, काजल उठाकर अभी लगा ही रही थी की आईने में तुम नज़र आये। मैंने भी तुम्हे अनदेखा किया और अपनी आँखों में काजल लगाने लगी। तुम मेरे करीब आये, मुझे धीरे से अपने पास खींचा, मैंने तुम्हारी तरफ नाराज़गी से देखा, फिर तुमने धीरे से मेरे कान में कहा "माही, तुम जब अपनी इन काजल वाली आँखों से मेरी तरफ देखती हो ना तो मुझे साडी बातें समझ आ जाती है...तुम्हारी बातें समझने के लिए मुझे अल्फाजों की ज़रूरत नहीं है। 


आज 
आज मै आईने के सामने हूँ, काजल लगा रही हूँ लेकिन आज मेरी आँखों की तारीफ करने के लिए ढूँढने पर भी तुम्हारा अक्स आईने में नज़र नहीं आ रहा है। काजल आज भी लगा रही हूँ.... क्यूंकि तुम्हे पसंद है मेरी काजल लगी आँखें....तारीफ करने के लिए तुम नहीं हो, लेकिन काजल से कह रही हूँ "मेरी आँखों में ऐसे रहना की किसी को मेरी सूजी आँखें ना दिखे। आज ना तुम्हारा अक्स है ना तुम्हारे अलफ़ाज़। 

Monday, September 10, 2012

वो टुकड़ा धूप का...


मैने सुबह उठते ही घर के सारे दरवाजे खिड़की खोल दिए थे, कुछ देर बाद ही तेज हवा घर से आर पार हो रही थी। हवा का पर्र्दों के साथ लुका-छिपी का खेल चल रहा था पूरे घर में, खिड़की और बॉलकोनी में लगे विंड चाइम भी हवा के साथ अठखेलियां कर रहे थे। तुम्हारा मूड उस दिन बहुत अच्छा था और मेरा खराब, पता नहीं उदासी लग रही थी उस सुबह में मुझे। तुम ऑफिस चले गए, मैने भी कुछ नहीं कहा था, ज्यादा बात भी नहीं की।
बेचैनी को समझ नहीं पा रही थी..किताबों के साथ बैठ गई दिल बहलाने सोफे पर ही बैठे आंख लग गई। उस दिन तुम जल्दी आ गए थे घर, मै चुप थी, तुमने भी मुझसे कुछ खास बात करने की कोशिश नहीं की। काफी देर हो गई थी अब, तुम्हे देखने बेडरूम की तरफ गई, खिड़की खुली थी, धूप का एक टुकड़ा अंदर झांक रहा था, लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर में टुकड़ा छोटा हो रहा था। तुम वहीं बेड पर खामोशी से बैठे थे, मै वहीं पास जाकर बैठ गई तुम्हारे...थोड़ी देर बैठे रहे दोनों...चुपचाप... तुम थोड़ी देर बाद उठे, तुमने अपना हाथ दिया और मुझे डांस के लिए बुलाया मै कुछ समझ नहीं पाई। तुम उसी धूप के टुकड़े पास ले गए मुझे जो धीरे-धीरे छोटा हो रहा था। अचानक मेरे कान में तुमने धीरे से कहा, हमें इसी टुकड़े पर डांस करना है ये जितना छोटा होगा, हम उतने ही पास होंगे। मै सिर्फ तुम्हें देख रही थी और उस धूप के टुकड़े को भी, लग रहा था मानों दोनों ने साथ में तैयारी की थी। अब टुकड़ा बहुत छोटा हो गया था और हम दोनों बहुत पास थे, एक-दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे पहले कभी नहीं देखा हो। तुम अचानक बोले मुस्कुरा के जल्दी से बॉय बोलो इस धूप के टुकड़े को नहीं तो नाराज होकर कल आएगा नहीं....मैने देखा सच में एक लकीर भर थी अब जो किसी भी वक्त ओझल हो जाती...दोनों मुस्कुराए...वो टुकड़ा हमें साथ में छोड़कर चला गया था...

Tuesday, September 4, 2012

यही है सुकून

clicked by Mahi S, Jaipur flat
पता है सब उलझा हुआ है, कुछ ठीक भी नहीं होगा शायद अब लेकिन मै शायद बाद के लिए कोई अफ़सोस नहीं छोड़ना चाहती...समझती मै भी सब हूँ लेकिन फिर भी बस इतना जानती हूँ की एक ही ज़िन्दगी है, जो करना है बस कर गुज़ारना है। तभी तो सब इतना ख़राब चलने के बाद भी पहुँच गयी तुम्हारे पास पता था अच्छा कुछ भी नहीं होगा लेकिन दिल को सुकून रहेगा साथ तो थी...तुम्हारा जन्मदिन जो था कैसे नहीं होती साथ...
बुरा गुज़रा दिन....अब तक का सबसे बुरा शायद...कुछ यही सोचकर दिन गुज़र गया था....मै माफ़ी मांगने के लिए जैसे ही कमरे में गयी देखा तुम्हे सुकून से सोते हुए...कमरे में अँधेरा था...मैंने बालकोनी का दरवाज़ा खोला, आसमान बादलों से घिर आया था...बारिश मानो बादलों के कैद से छूटकर बेपरवाह होकर बरसने को बेताब थी ...बहुत खूबसूरत दिख रहा था आसमान आज...मेरा था वो...मेरा आसमान...मैंने फिर कमरे में देखा, तुमने करवट ली...बहुत आराम से...शायद यही एहसास जिसे मै जी रही थी उसे सुकून कहते हैं...तमाम मुश्किलों के बाद भी मैंने जीया उस सुकून को...तुम्हे देखेने का सुकून, तुम्हारे पास होने का सुकून!!!

Tuesday, August 28, 2012

आईने ने कैद किया अक्स


दिन गुजर रहे हैं अपनी रफ्तार से, वक्त है कि मेरे लिए रूक ही नहीं रहा है। आसपास से सब गुजर रहा है लेकिन मेरे लिए सब कुछ जैसे ठहरा है। कुछ खोई चीजों को ढूंढ़ते हुए इतना दूर निकल आई हूं कि रास्ता ही नहीं मिल रहा है बाहर निकलने का । किस्से पूछूं रास्ता? दूर चली जा रही हूं एक रौशनी के पीछे, छलावा है शायद वो, जितना आगे बढ़ रही हूं वो रौशनी उतनी ही आगे जा रही है। हथेली फैलाओ तो हाथ में है और हथेली बंद करो तो बाहर। थक गई हूं अब, और ये रास्ता है तो तय होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दिन ढल रहा है, आज भी रास्ता नहीं मिला बाहर निकलने का! एक जगह लेकर बैठ गई हूं खामोशी से, एक उम्मीद के साथ। लेकिन थकी हुई आंखों को कुछ धुंधला अक्स दिख रहा है, हमारा-तुम्हारा अक्स, मुस्कुराते हुए आइने के सामने, कैद करते हुए कुछ खुश लम्हों को, खिलखिलाते हुए, एक दूसरे के साथ.... शायद आईने ने ही कैद कर लिया वो अक्स....बदमाश कहीं का...तभी तो आज आईने के सामने हूं तो थकी आंखे, खामोश चेहरा और आईने के भीतर वही रौशनी दिख रही है।

Tuesday, August 7, 2012

कहानी लिखने की एक कोशिश...


बन सकती थी मदीहा...

जनाजे के सामने जब वो पीले गुलाब लेकर पहुंचा और उसे रखने लगा तो मानो उसके कान में किसी ने आकर धीरे से कहा "तुम फिर फूल लेकर आए....मना किया था ना, तुम जब फूल लाते हो कुछ बुरा होता है।" कांप गया वो अंदर तक मानो मीहिका ने खुद उसके पास आकर ये शब्द दोहराए हो। वो खामोशी से वहां कुछ पल बैठना चाहता था, अकेले में, माफी मांगना चाहता था उससे, नहीं साथ दे पाया उसका।

 उसकी मां वहां बिलख-बिलखकर रो रही थी, पिताजी भी मां को संभाल रहे थे लेकिन उनके आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भाई पास में खड़े थे, सब उसे ले जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अंजान का दिल कह रहा था 'लौट आओ मीहिका, एक बार, इस बार आओगी तो जाने नहीं दूंगा तुम्हें।' इस गमगीन माहौल में उसका मन भारी हो गया था। रातभर सफर की थकान तो थी ही लेकिन मानसिक थकान उसे अंदर तक मार रही थी। मीहिका को अब उसके अंतिम सफर में ले जाने का वक्त आ गया था। सब उसे लेकर जा रहे थे, वो भी कहीं पीछे चल रहा था, बहुत दूर, सबसे अलग! कदम जैसे बढ़ नहीं रहे हो और आंखों के सामने पुराने दिन की तस्वीर! मीहिका का वही चहकता चेहरा, वही सपने देखती खूबसूरत आंखें, वो ही जिंदादिली...आज अंजान को मीहिका की हर छोटी बात याद आ रही थी, वो उसके हर रंग को थामना चाह रहा था लेकिन आज मीहिका आगे चल रही थी और वो उसके पीछे। वह जितना उसकी तरफ बढ़ रहा था मानो वो और आगे निकल रही थी। 

बहुत प्यार था दोनों के बीच में सब जानते थे। मीहिका तो इतना प्यार करती थी कि वो अंजान के लिए कुछ भी कर गुजरे। वक्त बहुत अच्छा चल रहा था। दोनों एक-दूसरे के साथ बहुत खुश भी थे। छोटी-छोटी खुशियों को दोनों ऐसे जीते थे मानो कल जिंदगी नहीं हो। आज अंजान को मीहिका की वो बात बार-बार याद आ रही थी जब वो कहती थी "कुछ मत छोड़ो करने के लिए कल का क्या भरोसा, वक्त से बड़ा धोखेबाज तो और कोई नहीं है। क्या पता आज हमारे पास अच्छे से है और कल वक्त का मन बदल जाए? तो अगर बारिश की बूंद भी आ रही है तो उसका जश्न ऐसे मनाओ जैसे करोड़ों की लौटरी लग गई हो। " उसका मन इन बातों को सोच-सोचकर और भारी हो रहा था। अब वो भी सबके साथ उस मैदान में पहुंच गया था जहां मीहिका को अंतिम विदाई दी जा रही थी। उसका दिल फट रहा था वो अब जोर-जोर से रो रहा था, उसके भाई ने अंजान को सहारा दिया और मीहिका के पास तक लेकर गया, उजले कपड़े में उसके चेहरे पर आज भी एक तेज नजर आ रहा था। अंजान उसे निहार रहा था, आखिरी बार, आज के बाद ना ही ये चेहरा दिखेगा ना ही वो चहक। अंतिम संस्कार की सारी विधि अब पूरी हो चुकी थी। सूरज ढल गया था, सब लौट रहे थे, वो उसके घरवालों के साथ नहीं गया। पैदल ही निकल लिया...बहुत दूर कहीं, अपनी मीहिका के यादों को लिए हुए।

देर रात तक इधर-उधर घूमा लेकिन उसे कहीं भी सुकून नहीं मिला। बेचैन मन पता नहीं क्या जानना चाह रहा था। आज उसे धूल के एक कण में भी मीहिका नजर आ रही थी, वही मीहिका जिसे छह महीने पहले छोड़कर वो दिल्ली छोड़कर चला गया था। आज उसे वो दिन भी याद आ रहा था जब उसने मीहिका को एक योजनाबद्घ तरीके से छोड़ा था, उसके घरवालों के साथ मिलकर। उसे याद है जब उसने मीहिका की मां, उसके भाई और पिताजी से बात की थी कि उसके घरवाले इस रिश्ते के लिए नहीं मान रहे हैं। कहीं न कहीं मीहिका के परिवार वाले भी इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे। लेकिन किसी के मन में किसी के लिए कड़वाहट नहीं थी। सब परेशानी समझ रहे थे, सिवाए मीहिका के। वो पहले उसे बहुत समझाने की कोशिश कर चुका था। लेकिन वो कोई बात मानने को तैयार नहीं थी। आखिर उसने मीहिका के घरवालों से बात करना ही ठीक समझा। उसने सबको बताया कि अब आखिरी तरीका है वो शहर छोड़ दे। वही बताने वो उस दिन मीहिका के घरवालों से मिलने गया था। उस दिन वो घर में नहीं थी, घर क्या शहर में ही नहीं थी। ऑफिस के काम के सिलसिले में चंडीगढ़ गई हुई थी। वो वहां पहुंचा और सबको बताया कि वह पुणे शिफ्ट हो रहा है। सबने आपस में बात भी की कि अचानक इस तरह से उसका चला जाना शायद मीहिका बर्दाश्त न कर पाए। लेकिन इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था। उसने कहा कि वो कुछ दिन परेशान होगी लेकिन धीरे-धीरे उसे उसके बगैर रहने की आदत हो जाएगी। वो चला गया था उस दिन हमेशा के लिए शहर छोड़कर, प्यार उसे भी था लेकिन मजबूरी ऐसी कि वो उसका हाथ थाम ही नहीं पाया। 

पुणे पहुंचकर उसने मीहिका से एक दो दिन बात की लेकिन बातचीत धीरे-धीरे कम होती गई। दूरियों का मतलब वो भी समझ रही थी। इस तरह से दिन बीतने लगे थे। अंजान मीहिका की खैर-खैरियत किसी न किसी से ले ही लेता लेकिन उसने उस तक पहुंचने के सारे दरवाजे बंद कर लिए थे। नेटवर्किंग साइट में भी अब वो नहीं था। इन्हीं सब बातों को अभी सोच कि झटके से उसकी टैक्सी रूकी। वो एकदम चौंक कर उठा और देखा घर आ गया है। टैक्सी वाले को पैसे देकर घर की ओर चला। घर की घंटी बजाई तो उसकी मां ने दरवाजा खोला, मां कुछ पूछती उसके पहले ही वो  तेजी से अपने कमरे की तरफ चला गया। कमरा भी आज उसे काट रहा था, कमरे के हर कोने में मीहिका थी, खिड़की खुली थी और वहां से आ रही हवा से खिड़की पर लगा विंडचाइम बज रहा था। उसकी हल्की झनकार से उसकी धड़कनें और तेज हो रही थी। वो थका हुआ था लेकिन नींद नहीं आ रही थी उसे। वो उन सब चीजों को निकालकर बैठा था जो उसे मीहिका ने दी थी। उसने अपना लैपटॉप खोला और फेसबुक में जाकर मीहिका का प्रोफाइल देखने लगा। उसने उसकी एल्बम देखी और सब तस्वरों को एक-एककर देखने लगा। इतनी तस्वीरें कि देखते-देखते सुबह हो आई थी। थकान के कारण अब उसकी आंख लग आई थी। नींद से तब जागा जब उसकी मां कॉफी लेकर पहुंची। उसने तुरंत घड़ी देखी, साढ़े दस बज चुके थे। मां फिर बात करना चाह रही थी लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और तैयार होकर मीहिका की घर की तरफ निकल गया। 

उसके घर में पैर रखते ही उसके हाथ-पैर फिर ठंडे पडऩे लगे, घर के बागीचे में लगे फूलों को देखकर सोचने लगा कि ये सभी फूल मीहिका के लगाए हुए हैं लेकिन मेरी उसकी वजह से मीहिका को फूलों से ही डर लगने लगा था। शहर छोड़कर जाने के दिन भी मैने कोरियर से मीहिका के लिए फूल ही भिजवाए थे, उस दिन भी बहुत नाराज हुई थी वो फूलों को देखकर। वो ये मान बैठी थी कि जब मै उसे फूल देता हूं तो कुछ बुरा होता है। उस दिन भी तो उसके लिए बुरा ही था फूल के साथ उसे संदेश मिला था कि मै पुणे चला गया हूं। वो अभी बाहर खड़ा होकर फूलों को देख ही रहा था कि मीहिका के भाई ने उससे अंदर आने का आग्रह किया। उसने पूछा आंटी कहां है तो भाई ने ऊपर कमरे की ओर इशारा किया। वो कमरे की तरफ बढऩे लगा। अंदर पहुंचा तो देखा मीहिका की मां उसकी एक हंसती हुई तस्वीर लेकर बैठी हुई है। उन्होंने उसे बैठने के लिए कहा। अजीब सी खामोशी थी कमरे में, वो रो रही थीं। उसने कहा "मुस्कुराना बहुत पसंद था उसे, खुद को स्माइलिंग एंजेल कहती थी।" अब दोनों ही रो रहे थे। अंजान बोला आंटी आपने मुझे उसकी तबीयत को लेकर पहले क्यों नहीं बताया? कब से हुआ ये सब? उन्होंने कहा तुम्हारे जाने के बाद से ही वो खामोश रहने लगी थी, हंसना चहकना तो जैसे भूल ही गई थी। लेकिन बहुत समझाने पर सब धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। हम उसकी शादी के लिए लड़का भी देख रहे थे, उसने भी शादी के लिए हां कर दी थी। लेकिन अचानक उसकी तबीयत बिगडऩे लगी। 

उस दिन बारिश से भीग कर आई थी, बहुत देर रात को, रो भी रही थी। बस अगले दिन से जो बुखार ने पकड़ा 20 दिन के अंदर वो अपने साथ ही ले गया। बेटा लेकिन आखिरी वक्त में उसने तुम्हें बहुत याद किया, हम तुम्हें बुलवाना चाह रहे थे लेकिन उसके पिताजी ने मना कर दिया और जिस दिन तुम्हें खबर दी  तब तक बहुत देर हो गई थी। लेकिन तुम्हारे लिए कुछ छोड़कर गई है वो, उसने कहा था कि तुम जरूर आओगे। उसकी मां उठकर गई और किताबों की शेल्फ के पास रखे पीले गुलाबों का गुच्छा ले आई, पीले गुलाब अब मुरझा गए थे। मीहिका को पीले गुलाब बहुत पसंद थे, उनके हाथ में एक लिफाफा भी था उसमें लिखा था छोटी सी ये जिंदगी...(वो हमेशा कहती थी एक किताब लिखेगी और उसका नाम होगा "छोटी सी ये जिंदगी") लिफाफे में एक खत था और एक पेन ड्राइव। उसने पेन ड्राइव निकाली और वहां कंप्यूटर टेबल पर जाकर कंप्यूटर पर चलाकर देखने लगा। उसमें इतने सालों की सब तस्वीरें थीं, करीब दो-तीन हजार तस्वीरें। वो बहुत जोर-जोर से रोने लगा, वो अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। मीहिका की मां खड़ी थी, उसे हौसला दे रही थीं लेकिन दोनों के ही आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। आज फूल मीहिका ने दिए थे लेकिन खराब आज भी हुआ था, अब नहीं थी वो, हमेशा के लिए जा चुकी थी, बहुत दूर कहीं...अब वो मीहिका के डर को समझ पाया था क्यों फूलों से डरने लगी थी वो। उसने अब वो खत खोला उसमें लिखा था-

इसमें मेरी कोई गलती नहीं है कि मै एक मुस्लमान लड़की नहीं हूं। लेकिन मै सिर्फ तुम्हारे साथ एक खुशहाल जिंदगी चाहती थी, मै मीहिका से मदीहा भी बन सकती थी...लेकिन तुमने कोशिश नहीं की, जा रही हूं बहुत दूर....दुआ करूंगी अगले जन्म एक मुसलमान लड़की बनकर आऊं!


Sunday, August 5, 2012

इंशाल्लाह...

clicked by: Mahi S
Mahi : सुनो ना एक राइटिंग कॉम्पीटीशन है, उसमें लव स्टोरी लिखनी है, आखिरी तारीख अभी कुछ दिन में ही है प्लीज तुम लिखो ना हमारी कहानी...प्लीज...
S : हां हां ठीक है...मै कोशिश करूंगा...लेकिन अच्छा लिख पाऊंगा या नहीं ये नहीं पता।
Mahi :  तुम लिखो तो सही हमारी लव स्टोरी सबसे अच्छी होगी।
S : सबको ऐसा लगता है कि उनकी लव स्टोरी बेस्ट है। तुम भी ना...
Mahi :  मुझे नहीं पता तुम लिखकर जल्दी से मेल कर दो।
S : क्या लिखूं कि कहानी की हीरोइन ये मानने को ही तैयार नहीं है कि कुछ रिश्ते साथ रहने के लिए नहीं बनते??
Mahi : नहीं...वहीं से शुरू करो तुम्हारा ऑफिस..दीदी का डेस्क...उसकी शादी की तस्वीर और तस्वीर देखकर तुम्हारा मुझे एक अंजान बनकर फोन करना। :)
S : फिर परियों की दुनिया में दोनों का रहना और हकीकत सामने आने उसे न मानने की जिद करना...
Mahi : काश ऐसा हो कि जैसे-जैसे तुम्हारा पेन चले और कहानी सच में वैसी ही चले। और कहानी का अंत हो कबूल है..कबूल है...कबूल है... :) :)
बोलो ना अब इंशाल्लाह...अब तो तुम जल्दी से नहीं बोल रहे हो ;)

Thursday, August 2, 2012

Yes!! Its 2 August

I wish a bad life with you forever
 rather than a life like a queen with someone else 
So many beautiful years of togetherness

Sunday, July 29, 2012

क्या तुम्हें याद है?


मेरी हमेशा से समय से पहले पहुंचने की आदत और तुम्हारी हमेशा देर से आने की आदत...हर मुलाकात में तुम्हारे देरी की शिकायत और नाराजगी। तुम हमेशा कहते तुम देर से क्यों नहीं पहुंचती, लड़कियां तो हमेशा इंतजार करवाती है। तुम्हारे डांट के डर से कितना भी जल्दी करूं फिर भी तुमसे पीछे ही रह जाता हूं। ...लेकिन इतने सालों में भी मै तुम्हारी आदत नहीं सुधार पाई।
तम्हें याद है वो दिन जब हमें लंच के लिए मिलना था...और घर से निकलने से पहले मैने बार-बार कहा था कि आज देर मत करना वरना मै इस बार रेस्टोरेंट के अंदर नहीं बाहर ही इंतजार करूंगी चाहे कुछ हो जाए...और तुमने कहा था अरे जान फिक्र मत करो बस उड़कर पहुंचता हूं तुम्हारे पास...तय समय पर मै पहुंच गई...लेकिन तुम तो हमेशा की तरह गायब थे...मैने भी ठान ली थी आज अंदर तो जाना नहीं है चाहे कुछ हो जाए।
थोड़ी देर बाद आसमान में काली घटाएं छाने लगी तेज बारिश होने वाली थी...मुझे पहुंचे अब आधा घंटा हो चुका था...मैने फोन निकाला और मिलाया, सीधा पूछा कहां हो? अब मै निकल रही हूं। तुमने कहा बस पहुंच गया हूं तुम्हारे लिए कुछ लेने गया था। अब तेज बारिश शुरू हो गई थी...लेकिन जिद में मै बाहर ही खड़ी होकर भीग रही थी, इतने में तुम आए, और तुम्हारा रटा हुआ डायलॉग बहुत देर से इंतजार कर रही हो ना माही? गुस्सा तो बहुत आ रहा था, तुम भी इस बात को समझ रहे थे। मैने गुस्से में पूछा मेरे लिए कुछ लाने में देर हुई ना क्या लाए दो मुझे....तुम मेरा हाथ पकड़कर थोड़ा आगे चले मेरे बैग से छतरी निकालकर खोली और बोले देखो जितनी बारिश की बूंदें हैं ना इतनी खुशियां लाया हूं तुम्हारे लिए...अब गिन लो तुम...इतना सुनते ही मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई...क्या तुम्हें याद है अनगिनत बूंदों वाली खुशियां??

Wednesday, July 25, 2012

नीला आसमां सो गया...


सामान्य दिन से अलग थी कल की शाम, अजीब एकदम...खामोश! मै बार-बार उसका फोन मिला रही थी, एक बार भी कोई जवाब नहीं मिल रहा था। ऑफिस में भी फोन किया किसी को कोई जानकारी नहीं...मन डरा हुआ था, पूरा दिन गुजर गया था, एक बार  भी कोई बात नहीं। मौसम अपने हिसाब ने नर्म-गर्म हो रहा था....उसमें भी बेचैनी थी। मन जानता था क्या चल रहा है...कहीं न कहीं कई सालों से इस बात का अंदाजा था...लेकिन पागल है ना क्या करें मानना ही नहीं चाह रहा था। 
अभी उधेड़बुन में ही थी कि शाम की अजान सुनाई पड़ी। अब मुझसे और नहीं रहा जा रहा था। घर में कोई नहीं था, बार-बार फोन मिलाकर मेरी अंगुलियां भी थक रही थीं। आसमां गहरे नीला रंग ओढ़े फैला हुआ था, अब बाहर अंधेरा था। मेरी नजरें अब भी फोन पर थीं लेकिन फोन ने भी जैसे खामोशी पी ली हो...मन में इतनी बेचैनी, गुस्सा भी..क्या एक फोन नजर नहीं आ रहा? अब मै किताबों से मन बहलाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन एक भी अक्षर पर नजर नहीं ठहर रही थी। दिल की धड़कन इतनी तेज कि मानो अभी बाहर आ जाएगा दिल। फोन बजा...मेरा सीधा सवाल मेरा एक भी फोन नहीं दिखा? शायद उसे मेरा एक शब्द नहीं सुनना था...और कहा...मान जाओ...सब बिखरने से पहले मान जाओ..तुम्हारे अकेले की कोशिश से परंपराएं नहीं टूटेंगी...शाम की खामोशी मुझे अब समझ आ रही थी, एक गहरी बात लिए वो खामोशी मेरे सामने थी...नीला आसमां भी अब सो चुका था...

Monday, July 16, 2012

भीग रही थी यादों में...

clicked by: Mahi S 
तेज़ बारिश मानो मुझे अपने साथ कहीं ले जाना छह रही थी...बहुत दूर कहीं...छाता था साथ में, लेकिन बारिश की बूंदे उन दिनों के एहसास को जीने कह रही थीं. सच ही तो तेज़ हवाओं और आसमान से बरसते पानी ने सब कुछ याद दिला दिया. तुम्हारे साथ बारिश में भीगना।..जानबूझकर तेज़ बारिश में कार से बहार निकलना और मुझे भी बारिश में खींचना...घर की बालकोनी में खड़े होकर उजले आसमान को देखना और एक दुसरे की और देखकर बिना बोले ही मुस्कुराना...तुम्हारे बार बार ऑफिस से निकलने की जिद करना और मेरा कहना की कैसे आऊं बॉस मौसम की भाषा समझता ही नही है...फिर भी तुम्हारा घंटों ऑफिस के बहार मेरे लिए इंतज़ार करना..मेरे आने पर सीसीडी में साथ बैठकर कॉफ़ी पीना...घर लौटे वक़्त इंडिया गेट में हाथों में हाथ डाले टहलना और ठंडी हवा क बीच एक ही भुट्टे को खाना...कुछ ख़ास तो था उन दिनों में.....

और आज....

बारिश भी वहीँ है हम-तुम भी वही लेकिन बारिश की बातें महज़ एक sms से हो जाती है...फोन करके  थोड़ी बात...या फिर मेरे फोन करने पर तुम्हारा कहना थोडा बिजी हूँ अभी तुम्हे फोन करता हूँ।..और बाद में जब तुम्हारा फोन आता भी है तो बारिश की वो ठंडक उमस बन चुकी होती है....न तो वोह बालकोनी है न तुम दिल्ली में...तुम्हारा कहना ठीक है वक़्त क साथ रिश्ता मज़बूत होता है...चीज़ें बदलती हैं, गंभीर होती हैं...लेकिन मेरे लिए तो वक़्त वही था...बारिश.. इंडिया गेट.. कॉफ़ी.. इंतज़ार..भुट्टा...बालकोनी...कुछ तो ख़ास था उन दिनों में...या तो वक़्त ख़ास था या फिर बारिश!!!

Sunday, July 15, 2012

खूबसूरत ख्वाब



Beautiful Venice
कितना खूबसूरत शहर है ना शारिक...बोला था तुमसे कुछ खास है इस जगह में तुम मान ही नहीं रहे थे। ऐसे-ऐसे इसे रोमांटिक शहर नहीं कहा जाता है...गंडोला में बैठकर वेनिस की शाम मानों और खूबसूरत दिख रही थी, एक-दूसरे का साथ वक्त को और खूबसूरत बना रहा था। पानी में तैरता ये शहर न जाने कितनी ही बातें कर रहा था। हम दोनों गंडोला में सवार पता नहीं कितनी ही दूर निकल आए थे...मै बीच-बीच में शहर की जानकारी दे रही थी। अब हम वेनिस का सनसेट देख रहे थे..पानी के ऊपर नाव में डूबते सूरज का नजारा अद्भुत था...समझ आ रहा था इसकी खूबसूरती के इतने चर्चे क्यों है...इस शहर का सबकुछ खास। वेनिस के सफर ने हम दोनों का मानों और करीब कर दिया था...पानी की चादर ओढ़े यह शहर मानों हर प्यार करने वालों के स्वागत के लिए खड़ा था....



तेज रिंग टोन की आवाज कुछ परेशान कर रही थी...दो बार अनसुना किया लेकिन फिर भी...उफ!!! ओह....ये क्या फोन तो शारिक का बज रहा है और मै वेनिस नहीं अपने कमरे में थी...गंडोला में बैठे वेनिस में शाम की ठंडी हवा का लुत्फ नहीं बल्कि मेरे कमरे की एसी की ठंडक थी :P :P.....उठकर इतनी जोर से हंसी आई :) :)...फोन मिलाया साहब को, बताया खूबसूरत ख्वाब और उनका जवाब माही...तुम और तुम्हारे ख्वाबों की दुनिया... मैने आंख बंद की और चुपचाप ऊपरवाले से कहा...छोटा सा ख्वाब है वेनिस का सफर साहब के साथ..... Plzzzzz :D

Friday, July 6, 2012

बर्थ डे :D :D

my cake 
किसी भी छोटे बच्चे की तरह मेरे अंदर भी बर्थडे को लेकर खास एक्साइटमेंट रहता है। बता दूं कि मेरा बर्थडे हाल ही में गया है। 21 जून को Smiling Angel दुनिया में आई थी। :) :)
 एक महीने पहले से बर्थडे की तारीख गिनना, बर्थडे के लिए खास ड्रेस, मेरी पसंद का बर्थडे केक जो घरवाले लाते हैं, मम्मी का बनाया हुआ मेरी पसंद का खाना, एक रात पहले आधी रात को आने वाले सबके फोन और मेरा फोन पर खुश होकर सबको थैंक्यू थैंक्यू कहना....ये सब बचपन से लेकर अब तक चल रहा है और मेरे एक्साइटमेंट में कहीं कोई कमी नहीं आई। :) :) 
@ water park
इस बार भी गिनती उल्टी शुरू की, सब हुआ लेकिन पिछले कुछ सालों की तरह साहब से ठीक बर्थ डे से पहले छोटी बात को लेकर खटपट ने मूड का कबाड़ा कर दिया। बात छोटी थी कि तुम 20 जून को ही दिल्ली आओ और उसका कहना था कि अम्मी-अब्बी आए हैं तो मै 21 को ही आऊंगा उसी दिन साथ रहेंगे। बस अब क्या था आधा एक्साइटमेंट तो चला गया था। गुस्से में मैने 20 की रात को मोबाइल फोन भी बंद कर दिया, लैंड फोन की भी तार निकाल दी। गुस्सा उससे बात किसी से नहीं। :(
खैर रात के 12 बजते ही मेरी नाक को मेरे फेवरेट केक की खुशबू लग गई, हर साल इंतजार करती थी इस साल झगड़े में भूल ही गई कि मेरा केक घर में आ चुका है। खूब हल्ला हंगामे के साथ मां, पापा, भइया और मेरा ममेरा भाई केक के साथ खड़े थे। अचानक चेहरे पर मुस्कान आ गई। फोन बंद ही था, बहुत घंटे बाद जब ऑन किया तो देखा बर्थडे मैसेज के अंबार लग गए थे, उनमें से एक शारिक साहब का भी था, साथ में लिखा था सुबह जल्दी घर से निकलकर गुडग़ांव आ जाना मै वहां पहुंच जाऊंगा। मन तो किया कि ना जाऊं लेकिन दिल को क्या समझाती। ऑफिस से भी छुट्टïी ले ली थी, सुबह घर से जल्दी निकली और कनॉट प्लेस पहुंच गई। वहां मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी पहुंची, उसे भी मैने गुडग़ांव साथ चलने कहा। हम गुडग़ांव पहुंचे, शारिक भी पहुंच चुका था, गुस्से में थी लेकिन उसे देखकर हंसी नहीं रूकी। खैर, जून में बर्थ डे होने की शिकायत शारिक को हमेशा रहती है और मेरा जवाब होता है इसमें मै क्या करूं? :P :P 
my favourite chinese food
तो जून की सड़ी गर्मी में हम लोगों को बर्थ डे सेलिब्रेट करने की सबसे अच्छी जगह वाटर पार्क लगी, हम तीनों थोड़ी देर में फन एंड फूड विलेज पहुंच गए। वहां जाकर कॉस्ट्यूम लिया और थोड़ी देर में वॉटर पूल में उतर गए। तेज म्यूजिक चल रहा था, शारिक ने मुझे अचानक अपनी तरफ खींचा, मेरे कानों के पास आकर बोला माही... हैप्पी बर्थ डे...मै मुस्कुराई...अचानक सोचा रात से न जाने कितने लोग ही फोन कर रहे हैं लेकिन ये एक विश इन कुछ सालों में कितनी खास बन गई है। :) 
शाम तक वहां जमकर मौज मस्ती करने के बाद हम लोग डिनर के लिए एमजीएफ मॉल पहुंचे। डिनर चाइनीज करना था तो हम यो चाइना चले गए, वहां बैठते ही याद आया कि मैने पिछले साल भी डिनर यो चाइना में ही किया था लेकिन जयपुर में...

Tuesday, May 29, 2012

मुझे एक परियों की कहानी दे दो ना


माही परियों की कहानी से बाहर आओ...हकीकत को थोड़ा समझो, सब तुम्हारी परियों की कहानी की तरह हुआ, हम एकदूसरे से मिले, साथ रहे, इतना अच्छा वक्त बिताया, हमने बड़ी कार ली, इतना बड़ा घर लिया लेकिन कुछ चीजें तुम्हारी कहानी के हिसाब से नहीं होंगी। हम दोनों ने इसके लिए भरपूर कोशिश कर ली है, नतीजा तुम देख चुकी हो....कुछ फैसले हमारे हाथ में नहीं होते, कुछ अनचाही बातें जिंदगीभर साथ चलती है...मै खामोशी से उसकी बात सुन रही थी, वो परेशान था, हर दिन मुझे नए तरीके से ना जाने क्या समझाने की कोशिश करता है जो कि मुझे समझना ही नहीं है। मैने चुपचाप सब सुना फोन रख दिया...
उसकी कही एक-एक बात मेरे जहन से नहीं उतर रही थी, ऐसा लग रहा था मानो कह रही हो इस बारे में सोचने को। मुझे बस याद आ रहा था जब गाड़ी छोटी थी, पास में अपना घर नहीं था लेकिन उन दिनों हमारे पास खुशियां बड़ी-बड़ी थी। बारिश की बूंदों में एक दूसरे का इंतजार करने में भी खुशी थी, रूठना-मनाना भी जैसे कितना खास कुछ होता था लेकिन अब...मै पता नहीं क्या सोच रही थी, बाहर तेज धूप थी, गर्म हवाएं चल रही थी, मै अपनी धुन में चल रही थी, उसी सीसीडी की तरफ जहां मै अक्सर जाती हूं, अकेले...थोड़ी देर बाद फोन बजा, शारिक था...तुम बात करो माही, तुम्हारी खामोशी से डर लगता है, तुम चिल्लाओ लेकिन फोन मत रखो। लेकिन मुझे कुछ बात नहीं करनी थी, गुस्सा भी नहीं आ रहा था, मैने फोन नहीं काटा।
वो समझ गया था कि उसकी बात से मेरा मन उदास हो गया है। लेकिन अब वो हंसाने की कोशिश कर रहा था, हमेशा की तरह, पर मेरा मन अब उदास हो गया था। उसकी बातें मेरे दिमाग में चल रही थीं, अचानक शारिक मुझसे पूछा अच्छा माही बताओ मै वीकएंड में आ रहा हूं बोलो तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊं? मै पहले बहुत देर चुप थी लेकिन फिर मै बोली मुझे एक परियों की कहानी दे दो ना!!!

Friday, May 11, 2012

वो दिन...


तेज हवा चल रही थी, हम दोनों अपनी पुराने सोसायटी शिप्रा सनसिटी में गाड़ी लगाकर वॉक कर रहे थे। मुझे लगा उसने गाड़ी सोसायटी में लगाई मॉल जाने के लिए क्योंकि उससे पहले बहुत झगड़ा हुआ था। लेकिन उसने गाड़ी सोसायटी में लगाने के बाद मुझे साथ लेकर उसी बिल्डिंग की तरफ चलने लगा जहां हमारा फ्लैट था। दोनों चुपचाप चल रहे थे...खामोशी से... जैसे-जैसे हम सोसायटी में बढ़ रहे थे मेरी आंखों में आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। शारिक बोला जब हम यहां थे तो वक्त कितना अच्छा था, दोनों एक दूसरे से मिलने का इंतजार करते थे, घूमते थे, हंसते थे और आज वक्त कितना बदल गया... आज एक-दूसरे की ओर देखते ही लग जाता है कि फिर एक घंटा झगड़ेंगे। मै चुप थी...कुछ नहीं बोल रही थी...बाहर तेज आंधी थी, तेज हवा चल रही थी, वैसा ही तूफान मेरे अंदर भी  चल रहा था।
दोनों चलते हुए अपने में ही खोए थे, दोनों ही उसके हर कोने को देखकर पुराने दिन याद कर रहे थे, अचानक वो ठिठका, मेरी नजर बिल्डिंग पर पड़ी मौलसिरी 6.... अंदर की हलचल मानो बाहर निकलने के लिए और बढ़ रही थी। हम दोनों ऊपर जाने लगे, ठीक अपने पुराने फ्लैट के पास आकर रूके...उसके दरवाजे को छुआ, फिर छत की तरफ बढऩे लगे। छत पर पहुंचकर उस कोने को देखकर मै खुद को नहीं रोक पाई... वो वही कोना था जहां हम शाम की चाय पीया करते थे, सर्दियों में धूप सेंका करते थे। मै रो रही थी, बुरी तरह से, जैसे पता नहीं मेरी जिंदगी से क्या गया हो...शायद सब कुछ...शारिक भी वहीं था, जब खुद को संभाला तो देखा आंखे उसकी भी नम थी...

Tuesday, April 17, 2012

सही गलत के पार

बस चलती जा रही हूं, सही गलत के पार, ना जाने कौन सी दुनिया में। सब एहसास है लेकिन बेबस हूं, दिल कम्बख्त बहुत खराब है, मानता ही नहीं है, मजबूत होने ही नहीं देता। अब तो सोचना ही छोड़ दिया है, बढ़ रही हूं, कोई ना कोई जगह तो होगी जहां सब मेरे लिए अंत लिखा होगा। बस उसी जगह पहुंचकर देखूंगी क्या पाया क्या खोया। सही-गलत की पार की वो दुनिया कितनी सही होगी इसका हिसाब उसी दिन लगाऊंगी। लेकिन उस जगह पहुंचकर बस एक ख्वाहिश रहेगी मन में कि जिसका-जिसका दिल दुखाया है उन सभी से एक बार माफी मांग लूं। आखिरी बार, फिर बढ़ चलूंगी उस अंधेरी अकेली दुनिया में... 

Thursday, April 12, 2012

मै चाहती हूं क्षितिज को थामे रखना

दिल्ली में बेमौसम बरसात पता नहीं क्या बताना चाह रही थी, ठंडी हवा, रिमझिम बूंदें, चेहरे को छू रही थी तो मानो कोई ख्याल आंखों के सामने से होकर गुजर रहा हो । अजीब हलचल थी मौसम में भी और मेरे अंदर भी... मौसम में हलचल क्या इशारा कर रहे थे नहीं समझ पाई, लेकिन हमेशा से मेरा मन ये मानता है जब भी बारिश होती है या तो ऊपरवाला या बहुत खुश होता है या बहुत उदास। कल पता नहीं किस बात का इशारा था! हलचल के बाद आसमान  साफ़  हो गया था, एकदम उजला,  शाम को ऑटो में बैठी इन्हीं ख्यालों में उलझी थी कि नजर क्षितिज पर पड़ी, सूरज लाल था, अपनी लालिमा से जैसे जिंदादिली का संकेत दे रहा हो, ढल रहा था, मानो क्षितिज से कह रहा हो कि मुझे थामे रखो। सूरज  के साथ  क्षितिज  खूबसूरत दिख  रहा था, शायद अकेले होने पर न क्षितिज खूबसूरत  लगता ना ही सूरज! थामे रखना मै भी चाहती हूं, हर लम्हे को, हर पल को, जिंदगी को! लेकिन खोता हुआ दिख रहा है, मन की हलचल या हकीकत नहीं पता लेकिन फिलहाल तो उसके एक फोन के इंतजार में हूं, देश से बाहर है, बहुत दूर...

Monday, April 2, 2012

मुझे हमेशा बनना है ऐसा FOOL


तीन दिन से कोई बातचीत नहीं, अचानक सनडे शाम फोन आया माही ऑफिस के नीचे चली जाओ, तुम्हारे लिए कुछ भेजा है रिसीव कर लो जाकर। गुस्से में मैने बिना सुने ही बात काट दी, फिर फोन बजा तुम्हें समझ नहीं आ रहा है जाओ ना चला जाएगा वरना कोरियरवाला, फिर मैने फोन काट दिया। फिर फोन और इस बार मै गुस्से में बोली देखो शारिक न तो ये अप्रैल फूल खेलने का मेरा मन है और न ही तुमसे बात करने का फालतू मजाक मत करो और मुझे काम करने दो। शारिक ने फिर फोन घुमाया और बोला ठीक है बात मत करो जाकर तोहफा तो ले आओ, इतनी दूर से भेजा है। मै अभी सीढ़ी से नीचे ही उतर रही थी कि उसने फिर फोन घुमा दिया मै भी चिड़ते हुए बोली, उड़कर नहीं पहुंच जाऊंगी, जा रही हूं और हमेशा की तरह वो मेरे गुस्से को कम करने के लिए बोला जान लिफ्ट से चली जाओ ना। लेकिन मेरा मन उसकी इन प्यारभरी बातों में नहीं आ रहा था। ऑफिस के गेट के बाहर जाकर खड़ी हुई और मै स्तब्ध हो गई, आंखे जैसे जो देख रही थी उसपर यकीन ही नहीं हो रहा था। शारिक खुद गाड़ी के साथ खड़ा था, आंखों से आंसू छलक गए... ऐसा सरप्राइज न जाने कितने वक्त बाद मिला था सही में मै फूल बन गई थी। शारिक सीधा जयपुर से मेरे ऑफिस पहुंचा था, महज तीन घंटे एक दूसरे के साथ बिताए फिर उसने मुझे घर छोड़ा और जयपुर के लिए रवाना हो गया। घर के बाहर गाड़ी से उतरने के बाद भी मुझे यकीन नहीं हो रहा था, वो सिर्फ तीन घंटे के लिए यहां पहुंचा था, मेरे अंदर क्या चल रहा था पता ही नहीं था लेकिन जो भी था बहुत अच्छा था और ऐसा  FOOL मै जिंदगीभर बनना पसंद करूंगी।



Friday, March 23, 2012

मेरी जिंदगी और हरियाली


दिल्ली से जयपुर जाने पर दो काम निश्चित तौर पर होते हैं एक शारिक साहब से झगड़ा और दूसरा जयपुर से शॉपिंग। इन दानों को किए बगैर मै वहां से लौटती ही नहीं हूं। इस बार भी यही हुआ। खैर ये अब आम बात हो गई है, हम दोनों शॉपिंग के लिए निकले घर के जरूरी सामान की खरीदारी करनी थी। सबकुछ लेने के बाद शारिक ने कहा तुम अपने लिए कुछ अच्छे सूट ले लो। सूट इतने ले चुकी थी कि कुछ खास मन नहीं था लेने का लेकिन उसकी रूचि को देखकर मैने मना नहीं किया। दो-चार दुकान घूमे लेकिन कुछ खास पसंद नहीं आया। शारिक का भी होता है लो तो बहुत अच्छा और एक साथ बहुत सारा। बहुत घूमने के बाद बापू बाजार के एक अच्छी दुकान में हम दोनों को सूट पसंद आ गए। हमने भी चार-पांच सूट ले लिए। बिल करवाया और पूरा बाजार खरीदने के बाद सामान गाड़ी में भरने लगे। सूट सभी बहुत खूबसूरत थे, हम रास्ते में भी इन्हें कैसे बनाएंगे यही बातचीत कर रहे थे।
रात घर पहुंचने के बाद शारिक बोला माही निकालना सारे सूट देखते हैं सब कैसे लिए हैं हमने, मै गई और सारे पैकेट निकाल लाई। अरे ये क्या... सारे सूट के कपड़े हरे रंग के, हल्का हरा, गहरा हरा, लाल के साथ हरा, भूरे के साथ हरा, हरा हरा हरा। दोनों  ने एक दूसरे की तरफ देखा और दोनों की ही हंसी छूट गई। :)
असल में शारिक को हरा रंग बहुत पसंद है और मै जब खरीदारी के लिए जाती हूं तो कुछ पसंद नहीं करती, सब उसी की पसंद का। इस बार भी खरीदते समय एक बार भी ध्यान नहीं गया कि हमने ढेर सारे कपड़े हरे रंग में ले लिए है। अब क्या, शारिक बोला कल जाकर बदल लाएंगे एक-दो सूट। फिर बोला माही मैने तुम्हे जो पहला कुर्ता दिलाया था वो भी शायद हरा था ना, मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कुराहट आ गई। :)
सही में शारिक ने मुझे जो पहला कुर्ता दिलाया था वो भी हरे रंग का ही था। मुझे आज भी याद है वो अपने ऑफिस से अचानक कनॉट प्लेस पहुंचा था। मुझे फोन किया और बोला ऑफिस के बाहर आओ। मै बाहर आई और हम दोनों सीपी के गलियारों में टहलने लगे। कुछ देर बाद बोला तुमने एकदम अच्छे कपड़े नहीं पहने हैं, चलो कुछ खरीदते हैं। मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माना। हम वहीं के फैब इंडिया चले गए जहां से मै कुर्ते खरीदती हूं। नए-नए रिश्ते में मुझे थोड़ी झिझक भी हो रही थी। लेकिन उसने दो कुर्ते पसंद किए उस  वक्त भी दोनों कुर्ते हरे थे एक हल्का हरा और दूसरा गहरा हरा। आज भी उस कुर्ते को पहनने के लिए निकालती हूं तो पुरानी सारी बात रील की तरह आंखों के सामने चलने लगती है। आखिर में आकर यही लगता है कि वक्त के साथ या तो रिश्ता मैच्योर हो जाता है या फिर बिखरने लगता है।
पता नहीं इतने बदलाव को क्या कहना ठीक होगा। :(
खैर इस बार भी हरियाली से मैने अपनी पूरी अलमारी को भर लिया है। शारिक की पसंद जो थी कैसे कुछ और पसंद करके ले आती, उसकी जिद पर दोबारा गए हम कपड़े बदलने लेकिन मेरा मन नहीं था, फिर हमने एक नया सूट लिया और एक बदल लिया। लेकिन मै उन्हीं कपड़ो को चाहती थी इसलिए घर आकर मैने बदले हुए कपड़े को वहीं अलमारी में रख दिया, उसे अपने साथ घर नहीं लायी। मुझे सब वैसे ही चाहिए बदला हुआ कुछ भी नहीं...

Wednesday, February 22, 2012

वक्त से पहले किस्मत से ज्यादा कुछ नहीं मिलता

कुछ पुरानी चली आने वाली बात पर तब यकीन होता है जब ये खुद के साथ होती है। कुछ ऐसा ही हुआ इस सप्ताह.. जयपुर मकान की रजिस्ट्री होनी थी, शनिवार छुट्टी होती है तो दो दिन की और छुट्टी ले ली कि मकान की रजिस्ट्री में वहां मौजूद रहूंगी। शारिक के जिंदगी के सबसे बड़े दिन मै उसके पास होंगी।
शनिवार जयपुर पहुंची, रविवार, सोमवार छुट्टी थी तो रजिस्ट्री का काम मंगलवार के दिन होना था। इन छुट्टी के दो दिन नए घर का सारा फर्नीचर खरीदा, एक-एक छोटी-बड़ी चीज। बहुत ही ज्यादा खुशी और इंतजार मकान की रजिस्ट्री का। लेकिन कहते हैं वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। मंगलवार को सारा काम हो गया बस एसडीएम ऑफिस में जाकर होने वाला काम महज एक छोटी-सी बात के कारण बुधवार के लिए टल गया। इतनी मायूसी जिसकी कोई हद नहीं, इसी दिन के लिए छुट्टी ली सब किया और रजिस्ट्री की तारीख बुधवार हो गई। लाख चाहने पर भी मै रजिस्ट्री के वक्त वहां नहीं थी :( :(
आज बुधवार मै जयुपर से दिल्ली पहुंची, अपने डेस्क पर बैठकर ये लिख ही रही थी कि शारिक का फोन आया और बोला मुबारक हो...,.

Friday, February 10, 2012

भगवान ने पूछा क्या चाहिए - मिस्टर राइट या छोटी-छोटी खुशी?

मै हमेशा सोचती थी कि ऊपरवाला सबके लिए जोड़ी भेजता है तो मेरे लिए भी किसी खास को भेजा है। इस खास एहसास के लिए बहुत सारी बातें बुनती, सोचती, मुस्कुराती और मिस्टर राइट का इंतजार करती। एक रात ऊपरवाले ने मुझसे पूछा बोलो तुम्हे क्या चाहिए तुम्हारा मिस्टर राइट या जिंदगी की छोटी-छोटी खुशी? मै सोच में पड़ गई ये कैसा सवाल है? मै भी थोड़ी चालाकी दिखाई, मैने सोचा मिस्टर राइट ही मांगती हूं, मिस्टर राइट साथ होगा तो हर छोटी खुशी को मिल ही जाएगी। मैने ऊपरवाले से कहा मुझे मिस्टर राइट चाहिए। उन्होंने ने भी मुझे मिस्टर राइट दे दिया। लेकिन मिस्टर राइट के साथ इतने साल बिताने के बाद अब पता चलता है कि ये सवाल मुझसे क्यों पूछा गया था।
जब कड़ाके की ठंड में मै शारिक को बोलती हूं शारिक चलो ना रात को वॉक करते हैं तो साहब कहते हैं इतनी ठंड है घर में ही बैठकर कॉफी पीते हैं। मै उत्साहित होकर सुबह चार बजे शारिक को उगता सूरज देखने को कहती हूं तो जवाब आता है तुमने मुझे आज तक कभी आठ बजे सोकर उठते देखा है? तेज झमझमाती बारिश में जब मै सब भूलकर नाचती हूं और उसे आवाज लगाने पर जवाब आता है तुम पागल हो मै नहीं..वापस आओ तबीयत खराब हो जाएगी। कोई बहुत खास दिन होता है मुझे किसी खास सरप्राइज का इंतजार होता है तो साहब को वो खास दिन याद ही नहीं रहता, याद आता है तो सरप्राइज क्या साथ ही चलकर मना लेते हैं खास दिन को.. खैर अब ये बातें मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। सरप्राइज का इंतजार करके अब मै मुझे न मिलने वाले सरप्राइज से सरप्राइज हो जाती हूं। लेकिन इससे मेरा प्यार कहीं से भी कम नहीं हुआ है.. वो कहते हैं ना हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता..

Saturday, January 28, 2012

क्यों डराता है ये ख्याल?

सब खुशी आ रही है, लेकिन सही वक्त का इंतजार अब भी है। पता नहीं वो दिन आएगा भी या नहीं। कल नए घर को सजाने के लिए पूरी तैयारी हो गई। सारा सामान भी नया आ गया। बहुत खुश हुई मै, सब मेरी पसंद का सामान, मेरी पंसद का डबल डोर फ्रिज, जरूरत से ज्यादा बड़ा एलसीडी, वॉशिंग मशीन, बेड, डाइनिंग और सब कुछ। दूसरे सामान की प्लानिंग, घर शिफ्ट करने की तैयारी! अपने घर को सजाने का एहसास ही कुछ खास है, ये इन दिनों मै महसूस कर रही हूं। लेकिन एक डर हमेशा दिल के कोने में घर बनाए है कि जिस घर को इतने चाव से सजा रही हूं इस घर में कभी रह भी पाऊंगी मै? ये ख्याल आते ही सिहर उठती हूं। मेरे मन में चाहते न चाहते हुए भी ये बात आ ही जाती है। पता नहीं वक्त के भरोसे सब छोड़ तो दिया है लेकिन क्या वक्त मेरे लिए कुछ अच्छा लेकर आएगा? क्या मेरे सजाए घर में मै रह पाऊंगी? इस घर की बॉलकोनी में भी हमारी छोटी-छोटी खुशी होगी? कुछ नहीं है सिर्फ ख्वाहिश है, उम्मीद है, सपने है और दुआ है। 

Monday, January 16, 2012

एक ख्वाब जो पूरा हुआ


फ्लैट की पहली तस्वीर
 
माही हो गयी बुकिंग...इतने सालों से जो ख्वाब देख रहा था आज पूरा हो गया है... शारिक के इस फ़ोन को सुनने के बाद मै कुछ बोल ही नहीं पाई, ख़ुशी आँखों से बहार आई... 10 जनवरी की यह तारिख उसकी ज़िन्दगी की सबसे ख़ास तारिख बन गयी है. इस ख़ुशी को बयां कर पाना शायद बहुत मुश्किल है. उसका हर ख्वाब इसी तरह पूरा हो.....Allahamdullilah...

sharique's todays facebook status...
"Falling short of words today... M so happy, the dream I have dreamt for many years came true.. Today I have booked my own flat and feeling of satisfaction is immense.. I thank ALLAH for his mercy... Allahamdullilah..."

Sunday, January 15, 2012

मूव ऑन...

deepika's 2days facebook status for me : 
जब जिंदगी ही ठहर गई है तो मै कैसे आगे बढ़ूं?
" Life is all about moving ahead...but sum ppl find it really difficult...a frend f mine is still trying her best to stay in that phase only. Dear, staying in love with someone even if you know you can't be together in future is like standing in rain... you know you will be sick but still you stand :( Move onnnnnnnnnnnnn...."

आज मेरी सबसे अच्छी दोस्त दीपिका ने फेसबुक में मेरे लिए मैसेज लिखा... मैसेज उसने इस गुस्से में लिखा कि क्यों मैने एक ऐसा एप्लीकेशन लिया जिसमें मै एक मैसेज छोड़ सकती हूं जो कि मेरे मरने के बाद फेसबुक पब्लिश करेगा। मैने भी उस एप्लीकेशन में एक मैसेज छोड़ा जो कि शायद मेरे मरने के बाद सबके सामने आए...खैर दीपिका के इस मैसेज को देखकर पहले कुछ रिएक्शन नहीं आया, फिर मुझे थोड़ी हंसी आई, फिर लगा जिंदगी के हर एक सच से हर इंसान वाकिफ होता है लेकिन जब उसे दूसरे को समझाना होता है तो आसान और खुद समझना होता है तो नामुमकिन हो जाता है। मूव ऑन बोलना सुनना कितना आसान है... मूव ऑन माही, मूव ऑन बेटा, मूव ऑन दोस्त, मूव ऑन बेबी मूव ऑन..मूव ऑन..मूव ऑन...
मै जानती हूं मुझे मूव ऑन बोलने वाला हर कोई मुझसे बहुत प्यार करता है, सोच रहा है मेरे बारे में कि कैसे मुश्किल जिंदगी हो सकती है मेरी... लेकिन क्या कोई माही को समझ रहा है?
कैसे करूं मूव ऑन...अपने पुराने फोन में मेरे और शारिक के एक दूसरे को जानने से भी पहले के मैसेज, पहली बार मिलने वाला दिन, पहली बार मिलने वाली जगह, पहली बार उसकी कार में बैठना (जो अब मेरी हो चुकी है), पहली बारिश, पहली बार उस फ्लैट में जाना जिसकी बॉलकनी को आज भी महसूस कर सकती हूं मै, पहली लड़ाई, पहली बार रूठना-मनाना, पहली बार बाइक में बैठना, मेट्रो स्टेशनों में शारिक का मेरे लिए इंतजार करना, घंटो मेरे ऑफिस के नीचे खड़े रहना और मेरे देर करने पर उसका अकेले जाकर टी-शर्ट खरीदना, पहली फिल्म, पहला तोहफा, पहली शॉपिंग, पहला बर्थडे, पहली बार मेरी फेवरेट आइक्रीम खाना, पहली बार मेरे लिए फूल, पहली तस्वीर, पहली रोक-टोक, पहला गुस्सा, पहली लांग ड्र्राइव, उसके दोस्तों से पहली बार मिलना, पहली बार मेरा उसे दीपिका को मिलाना, पहली बार उसके घर वालों से मिलना, घर वालों का प्यार, फिर उनका गुस्सा भी, सबकुछ ना जाने कितना कुछ....ना जाने कितनी ही बातें जो कि कागज में एक बार बैठकर उतारना ही संभव नहीं है। कैसे निकलूं? कैसे भूलूं दिल्ली और जयपुर के हर कोने को जहां हम न जाने कितने ही खूबसूरत पल गुजारते हैं, लड़ते हैं, गुस्सा होते हैं लेकिन फिर सारी बातें भूलकर आगे चलते हैं....
दीपिका मेरी जान मूव ऑन शब्द माही के लिए है ही नहीं.... जिंदगी उसके साथ या तो नहीं...

Thursday, January 12, 2012

मै वहीं हूं वक्त गुजर गया...

अभी लगता है कल की ही बात है, लेकिन कैलेंडर के पन्नों को उलट कर देखा तो अहसास हुआ कि बहुत वक्त गुजर चुका है। कल का पूरा दिन ऐसे ही गुजरा, उदास सुबह, उदास शाम। पता नहीं  क्या चल रहा था मेरे अंदर, कुछ लिखने का भी मन नहीं हुआ। दो-तीन बार लिखने के लिए बैठी। मन बुझा हुआ था, बुरा लग रहा था। ऑफिस के बाद जब कॉफी डे में अकेले जाकर बैठी तो लगा वो खलिश आज भी है और शायद कभी जाएगी भी नहीं, मै किसी से बात नहीं करना चाहती थी, शारिक से भी नहीं, उसने भी मुझे कोई फोन नहीं किया। मुझे लगा कि शायद साढ़े आठ बजे तक उसका फोन आए, मै बैठी थी कॉफी और किताब के साथ, तभी फोन बजा मां थीं, मां क फोन की घंटी से लगा कि देर हो चुकी है। घर जाने का भी मन नहीं था लेकिन जाती भी कहां..... पीछे मुड़कर देखती हूं तो लगता है मै वहीं खड़ी हूं और मेरे आस-पास से सब गुजर गया है, पता नहीं क्या चाहती है ये जिंदगी...खैर जिंदगी है, शायद एकदम सपाट गुजरे तो उसके होने का अहसास ही न हो...

Sunday, January 8, 2012

वे टू मून : 4


1 जनवरी 2012
सरिसका टाइगर रिसर्व

way to Sariska 
नील गाय
साल के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर को रामगढ़ और भानगढ़ के एडवेंचर ट्रिप के बाद 1 जनवरी 2012 को हम सब सरिसका की सफारी के लिए चले। सरिसका राजस्थान के अलवर जिले में पड़ता है। सरिसका की दोबारा बुकिंग करवा ली गई थी। अब बस हमें समय से वहां पहुंचना था लेकिन इतने सारे एक जैसे लोगों के साथ सही समय में घर से निकलना और सही समय में वहां पहुंचना थोड़ा मुश्किल काम है। खैर सब तैयार होकर थोड़ा बहुत खाने का सामान गाड़ी में रखकर, अपने आईडी कार्ड रखकर हम लोग सरिसका के लिए चल पड़े। जयपुर से सरिसका पहुंचने में भी करीब ढाई घंटा लगना था। :)
बस सरिसका पहुंचने के कुछ दूर पहले हम लोगों ने ढाबे में खाना खाया। इतना लजीज ढाबे का खाना एक अर्से बाद खाया था। क्या स्वाद था, मसालेदार मटर पनीर, तड़का दाल, सेव टमाटर, रोटी, छाज और सलाद....एकदम लाजवाब स्वाद। सबने खूब छककर खाया। यहां से भी सरिसका तक थोड़ा वक्त लगता। खाकर दोबारा सब गाड़ी में बैठ और निकले। लेकिन अभी थोड़ी ही दूर चले थे कि आमिर की तबीयत खराब हो गई। उसे थोड़ा आराम देने के लिए गाड़ी को किनारे लगाया गया। इतने में शारिक ने आवाज दी, देखा जहां गाड़ी रूकी है उसकी दूसरी तरफ सरसों के लहलहाते खेत, शारिक बोला माही फोटो लेते हैं, बस फिर क्या था हम लोगों ने खूब फोटो शूट किया। सरसों के खेत में दिलवाले दुल्हनियां के पोज में खूब फोटो खिंचवाई। :) :) अभी फोटो सेशन में व्यस्त ही थे कि अचानक घड़ी पर नजर पड़ी देखा अब हमें बहुत देर हो गई है। फटाफट गाड़ी में बैठे और सरिसका के रास्ते चले, रास्ता इतना खराब कि लग्जरी कार में बैठकर भी कमर जवाब देने लगी थी। अब हमें सरिसका का बोर्ड नजर आया और हमने गाड़ी लगाई।
me and sharique 

kashif 
लेकिन इस न्यू ईयर शायद सबकुछ बहुत आसान नहीं था। पहले से बुकिंग कराने के बाद भी वहां से हमें जीप देने से इंकार कर दिया गया। मै भी सीधा ऑफिसर के पास गई और नियम कायदों की किताब खाल दी, उसने भी अपनी गलती मानते हुए हमें जीप देने के लिए रसीद दे दी। शारिक लोग भी ऑफिसर से मेरे बेहस के एपीसोड को देखर इंप्रेस हो गए। जीप में चढ़कर सबके चेहरे पर मुस्कार आ गई। लेकिन जीप हमें दोपहर 3 बजे मिली जो कि डेढ़ बजे ही मिलनी चाहिए थी। अब हम लोग सरिसका के जंगल के लिए चले। मुझे पहले लग रहा था कि जू के जैसे तैयार किया हुआ कोई जंगल होगा लेकिन जैसे ही जीप लेकर उबड़-खाबड़ रास्ते से ड्राइवर चला तो मेरे होश उड़ गए। कुछ ही देर बाद हम एक बीहड़ जंगल में थे, जीप के आस पास से जंगली जानवर निकल रहे थे, हिरण, नील गाय, जंगली सूअर और तमाम तरह के जानवर अपनी गतिविधियों में मशगूल थे। हम लोगों को जीप से नीचे उतरना एकदम मना था, यहां तक कि शोर मचाना भी मना था जिससे जानवर डर के छिप न जाए। इतनी खूबसूरती देखकर मन खुशी से भर गया। जंगल के संकरे रास्ते से जब जीप चल रही थी और दूसरी तरफ गहरी खाई तो रोमांच के साथ ही डर भी लग रहा था। अब हम लोग टाइगर को देखने के लिए बेताब हो रहे थे, ड्राइवर ने बताया कि सुबह से एक भी ट्रिप के लोगों को टाइगर नजर नहीं आया है। लेकिन टाइगर गया इसी रास्ते से है क्योंकि उसके पैरों के निशान देखने को मिले। उस बीहड़ जंगल में छोटे-छोटे गांव भी थे जहां रहने वाले लोग आज के इस जमाने में भी उसी जंगल में रहकर अपना गुजारा चलाते हैं। वहां रहने वाले लोग शिक्षित नहीं है यहां तक कि छोटे बच्चे भी नहीं पढ़ते हैं। पढऩे जाए भी तो कहां?
शाम तक जंगल में खूब घूमे, जैसे-जैसे शाम ढल रही थी टाइगर की एक झलक देखने को मन और बेताब हो रहा था। लग रहा था कि टाइगर देखने के लिए ही इतनी मुश्किल से पहुंचे हैं और टाइगर ही नहीं दिखे तो कैसा लगे। लेकिन जब एकदम शाम हुई तो ड्राइवर बोला कि अभी खबर आई है कि टाइगर का लोकेशन उस पहाड़ों के पीछे हैं जो कि अभी यहां नहीं उतरेंगे। हमारे पूछने पर कि उन लोगों को कैसे पता चला तो बोला टाइगर के पैरों में सेंसर लगा है जिसे उसके मूवमेंट पता चलती है। अब हम उस जंगल से बाहर निकल रहे थे लग रहा था कि एक दूसरी ही दुनिया से निकलकर फिर अपनी शोर-शराबे वाली दुनिया में जा रहे थे। जंगल कितना अच्छा लग रहा था, चिडिय़ों की आवाज, खेलते जानवर, अपने आप में मस्त हिरण, खेलते बंदर, सफारी और जू के इस बड़े अंतर को देखकर बहुत ही अच्छा लगा।
अब हम जंगल से बाहर थे और शहर की तरफ निकल पड़े। हम तीन लोग को दिल्ली के लिए निकला था और शारिक, काशिफ और जामी को जयपुर लौटना था। हमने पाओटा के पास से बस ली   और दिल्ली के लिए रवाना हुए। रात के तीन बजे आमिर, सुहेब और और मै दिल्ली पहुंचे और इस तरह साल का पहला दिन सब लोगों के साथ एक यादगार दिन बना।

Tuesday, January 3, 2012

वे टू मून : 3

 भानगढ़ का भूतहा रास्ता
भानगढ़
bhangarh, me in centre with sharique n kashif

exploring cave
bhoot calling

Words just cant express what it is – three words, two people, one feeling.

रामगढ़ में फोटोग्राफी सेशन करने के बाद हम लोग वहां से करीब 70 कि.मी. दूर भानगढ़ के लिए निकल पड़े। भानगढ़ को भूतों का गांव कहा जाता है। सही में वहां के रास्तों को देखकर कुछ ऐसा ही लगा। सूनसान सड़कों पर कुछ नहीं, सिर्फ फैले खेत, पेड़ और बीच में पडऩे वाले कुछ गांव जहां बहुत थोड़े ही घर थे। रास्ता तो बहुत ही मस्त लग रहा था, नाम के मुताबिक ही हांटेड भी दिख रहा था। बीच-बीच में कुछ एक गांव के लोग नजर आते। रास्ते में ढेरों सरसों के खेत, एक छोटा गांव भी पड़ा जहां के लोग अपने ही काम में लगे हुए नजर आए। रास्ता पूछने पर गांव के लोग पूरे इत्मीनान से रास्ता भी बताते साथ ही ये भी कहते कि वो भूतों का गांव है, शाम होने से पहले लौट आना।
गांव के लोगों की इस तरह की बातें हमारे एक्साइटमेंट को और बढ़ा रही थी।जैसे-जैसे रास्ता कम हो रहा था लग रहा जल्द ही भूतों की नगरी वाले भानगढ़ पहुंचे।
आखिरी बहुत ड्राइव करने के बाद भानगढ़ आ ही गया। बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ इसका किला, दूर-दूर तक जंगल और बड़ी घाटियां। देखकर लग रहा था पता नहीं लोग इसे भूतहा क्यों कहते हैं? इतनी सुंदर जगह में अगर रहने को मिल जाए तो मजा आ जाए। लेकिन वहां कुछ बात तो थी, रानी रत्नावती की कहानी और उसके किस्से मुझे उस जगह के हर कोने में नजर आ रहे थे। यही नहीं लोग सही में वहां भूत-प्रेत की पूजा में लगे थे। एक जगह तो तांत्रिक लोग ऐसे भजन औ किर्तन कर रहे थे कि मानों सही में भूत अभी आकर यहां खड़ा हो जाएगा। एक-एक गुफा में लग रहा था जैसे कितनी ही कहानियां हैं, टूटी हुई दिवारों में आज भी उन कहानियों को देखा जा सकता है। पूरे किले में जगह बोर्ड में उस समय की बातें लिखी थी। एक जगह तो ऐसी बनी थी जो कि उस समय वहां का बाजार था। जो भी कुल मिलाकर जगह बहुत ही अच्छी थी, हां शाम के बाद डरावनी जरूर हो गई थी। सूरज ढलने के बाद वैसे भी वहां जाना मना है।
खैर हमें भूत तो कहीं नहीं मिला लेकिन राजस्थान की इस खूबसूरती हम सब को बहुत ही अच्छी लग रही थी। किले की सबसे ऊंची जगह पर जब मै और शारिक बैठे और वहां से पूरी घाटी और भानगढ़ दिखा तो लगा जैसे इसी तरह घंटों बैठे रहें। इस तरह कुछ देर के लिए जब हम दोनों अकेले बैठे तो 31 दिसंबर की शाम बहुत ही अच्छी लग रही थी। मन ही नहीं कर रहा था कि वहां से लौटकर दोबारा जयपुर के लिए निकलें। शारिक से मैने कहा आखिरकर हम 31 दिसंबर को साथ में ही है। हर बार की साथ न होने की लड़ाई से इस बार हम बच गए। :P दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्काराए, तभी पीछे से जामी की आवाज आई, सुनिए जैसे ही मै पीछे मुड़ी तो उसने ये फोटो खींची। इस तरह 31 दिसंबर का दिन एक्साइटमेंट और एडवेंचर के साथ पूरा हुआ। रात का वापस जयपुर पहुंचे तब तक उसके दोनों भाई भी पहुंच गए थे। सब लोग साथ में खाना खाने गए। फिर देर रात तक बाहर रहे, आकर सब अगले दिन सरिसका जाने के लिए सो गए।


Monday, January 2, 2012

वे टू मून : 2

31 दिसंबर : रामगढ़ और भानगढ़ 
way to Ramgarh

my sahab
अब शुक्रवार रात यानी 30 दिसंबर को  सरिसका की बुकिंग की गई। दिल्ली से जाने वाले शारिक के दोनों भाइयों को बोला गया कि वे जयपुर नहीं पहुंचकर अलवर आए, हम भी सुबह यहां से निकलेंगे और रास्ते में मिल जाएंगे। रात को ये प्लान बना हम सो गए... ये क्या? सुबह निकलने के लिए सुबह जब तैयार हुए तो पता चला कि दोनों भाई अभी तक दिल्ली में ही है, दिल्ली जयपुर हाइवे में इतना जाम कि शाम से पहले वो पहुंच ही नहीं सकते। मेरा तो मूड खराब होना शुरू हो गया था। फिर भी हम लोग घर से निकले और उनसे बात करते रहे। आखिर करीब बारह बजे बात साफ हो ही गई कि दोनों किसी भी कीमत पर अलवर टाइम से नहीं  पहुंच पाएंगे।
इतनी प्लानिंग और फोन से मै अब झल्लाने लगी थी।  अब कार साइड में लगाकर हमने सरिसका की बुकिंग कैंसिल की। फिर शारिक ने कहा कोई बात नहीं हम रामगढ़ और भानगढ़ जो कि भूतों की नगरी कहलायी जाती है वहां चलते हैं। हम रामगढ़ और भानगढ़ के रास्ते निकल पड़े। मूड मेरा अब बहुत ज्यादा उखड़ गया था, हम लोग अब रामगढ़ के रास्ते मुड़ गए थे। रास्ते इतने खूबसूरत कि मानों सारी खूबसूरती राजस्थान को ही मिली हो। पहाड़ों के बीच से संकरे रास्ते से हमारी गाड़ी चलती है। इस रास्ते में ढेरों बंदर वहां आने-जाने वाली गाडिय़ों के साथ-साथ चलते हैं, कुछ खाने को दो तो खाते हैं। हम रामगढ़ पहुंचते हैं, गाड़ी से उतरने के बाद पीछे मुड़ते ही बड़ा पहाड़ और वहां से निकलती सूरज की किरण जब चेहरे पर पड़ती है तो मेरा सारा गुस्सा कहीं छू हो जाता है। :) :)
वहां उतरने के बाद खूब सारी फोटोग्राफी हुई, अब मुझे अच्छा लग रहा था, शहरों में रहकर इस तरह की खूबसूरती देखने को ही नहीं मिलती है। मै बहुत खुश थी, साल के आखिरी दिन हम इस तरह राजस्थान की खूबसूरती देखने के लिए निकले थे।

वे टू मून : 1

29 दिसंबर 2011 से 1 जनवरी 2012
my journey on roadways bus 
प्लानिंग के मुताबिक मै न्यू मनाने के लिए 29 तारीख को ही जयपुर के लिए निकल गई। शारिक को बताया भी नहीं था कि मै आ रही हूं। इस बार सफर में थोड़ा एक्साइटमेंट देने के लिए मैने वॉल्वो नहीं रोडवेज की बस में सफर किया। इस बस का भी एक्सपीरियंस हुआ और पैसे भी बचे :P
बस फिर क्या बस में एक बार नए तरीके से जयपुर के लिए निकल पड़ी। रोडवेज की बस का सफर पर बहुत नहीं सुहाया। खैर...सफर जैसा भी हो मै अपनी मंजिल में शाम के छह बजे पहुंच ही गई। इस बीच शारिक का दो बार फोन आया लेकिन मैने उसे बताया नहीं कि मै रास्ते में हूं। अचानक जयपुर उतरने के बाद उसे फोन किया थोड़ा गुस्सा होने के बाद बोला, क्रिस्टल पाम मॉल के पास आओ, मै वहीं से लेता हूं तुमको। बस मैने ऑटो किया और पहुंच गई क्रिस्टल पाम, शारिक आया और हम घर चले गए। :)
अगले दिन सुबह नींद खुली तो देखा दोनों ही ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे। शारिक के लिए टिफिन तैयार किया। जनाब को मटर-आलू बहुत पसंद है तो सोचा सुबह मटर-आलू ही बना देते हैं। चाय पीने के बाद दोनों निकल गए और मै हमेशा की तरह बड़े से मकान को घर बनाने में लग गई। पूरा दिन निकल गया घर ठीक करते-करते। इस बीच दोनों को फोन भी किया, लेकिन काशिफ साहब अपनी मीटिंग में और ये साहब अपनी मीटिंग में। :(
मै भी अकेले कहीं बाहर जाने के मूड में नहीं थी। शाम में देखा तो शारिक का भाई भी पहुंचा। फिर सब मिलकर शनिवार को सरिसका जाने का प्लान बनाने लगे। शारिक और काशिफ के भाई भी शनिवार को जयपुर पहुंचने वाले थे और सबका मिलकर घूमने जाने का प्लान बना। इस बीच रात को खाना बनाने के बाद मै और शारिक घर के पास ही टहलने के लिए निकल पड़े, थोड़ा झगड़ा भी किया और खूब सारी आइसक्रीम भी खाई जिसके बाद आज तक गला खराब है।