About Me

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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Thursday, June 20, 2013

बेलुत्‍फ जिंदगी, अधूरे ख्‍वाब और तुम...

 Break up Party का केक 
यूं तो सब खास रहा, लेकिन छूटते हुए लम्‍हों को यूं ही नहीं जाने देना चाहती थी मै... ये मेरे थे...सिर्फ मेरे...आखिरी बार जयपुर का सफर, आखिरी कुछ लम्‍हे, वो पल, वो दर्द, वो चुभन, वो घुटन, वो कसक...सब कुछ मेरा था. मैने हर लम्‍हे को कैद किया, अपने पास हमेशा रखने के लिए. दिल्‍ली लौटने के पहले हमने सब कुछ दोराया,  दोहराया, जयपुर के हर कोने को फिर से जीया और उस आखिरी दिन फैमिली डिनर के लिए भी गए.

 वो डिनर सच में खास लग रहा था
, सब अच्‍छे से तैयार हुए थे, मै, तुम, तुम्‍हरा भाई और हमारा सबसे अजीज Mr. K, जयपुर के Barbeque Nation में था ये खास डिनर. Break up Party...

केक काटते हुए हम..

Barbeque Nation स्‍पेशल
सब कुछ पास रहेगा यादों में भी तस्‍वीरों में भी....











तस्‍वीरें तब और खास हो जाती है जब उसमें दिखने वाले लोग साथ नहीं होते...







ख्‍वाहिशों का क्‍या है, ख्‍वाहिशें तो होती ही हैं अधूरी रह ने के लिए...
Life is strange when happiness makes u sad... :(

Saturday, June 15, 2013

कसक

जयपुर: मानसरोवर का फ्लैट Clicked By: Mahi S
मौसम की पहली बारिश, तुम्‍हें ढूंढ़ रही हूं, हर बूंद में....खिड़की के पास बैठी हूं...सब खामोश है, सिर्फ बूंदें बातें कर रही हैं. चेहरे पर आकर जब छू रही है तो मानो एक बार फिर सब कुछ जी रही हूं. तुम्‍हे जी रही हूं, हमारे रिश्‍ते को जी रही हूं, साथ बिताए हर पल को जी रही हूं.
सच में वक्‍त दगाबाज है. तुम्‍हारे बिना बारिश देख रही हूं.... मौसम की पहली बारिश. हर बारिश के साथ एक याद जो जुड़ती है. इस बारिश के साथ शायद यही याद जुड़ी रह जाएगी कि बिना तुम्‍हारे इन बूंदों को समेट रही हूं. याद है तुम्‍हें बरसातों में शिप्रा के टेरेस पर चाय पीना और बरसते पानी के साथ घंटों बैठे रहना...याद है मुझे चाय तुम ही बनाते थे. सब याद आ रहा है आज इन बरसते बादलों को देखकर...
बारिश में मेरे घर के रास्‍ते में अक्‍सर जाम लग जाया करता था और उन दिनों हम दोनों को उस जाम का इंतजार होता था. घर जाने की जल्‍दी तो होती थी रात को, लेकिन जाम में फंसे होने से कुछ घंटे और मिल जाते थे साथ बिताने को... वो खुशनुमा दिन थे...तुम थे...हम थे...तब
जयपुर के हमारे अपने फ्लैट की बालकॉनी से ली हुई तस्‍वीर..
वक्‍त कम पड़ जाता था.  दिल्‍ली के साथ ही जयपुर की बारिश को भी खूब जिया हमने...साल की इस सबसे खूबसूरत सौगात के लिए मै दिल्‍ली से जयपुर पहुंच जाया करती थी. और मेरा पागलपन देख तुम कहते, 'तुम सच में पागल हो...सिर्फ बारिश के लिए जयपुर आई हो..' मै मुस्‍कुराती, मन में सोचती भी कि तुम्‍हें अंदाजा नहीं है, लेकिन मै क्‍या कर रही हूं, बहुत खूब जानती हूं.
तुम्‍हारे बाद मेरा दूसरा हमसफर मेरा कैमरा भी मेरा पूरा साथ देता...बारिश जयपुर को और खूबसूरत बना देता. बिल्‍कुल उजला, धुला हुआ...तुम बारिश रूकने का इंतजार करते और मै बारिश में बाहर निकलने का...वो वक्‍त याद आ रहा है...शिप्रा की बालकोनी, कनॉट प्‍लेस, दिल्‍ली की हर सड़क, हर कोना, ये बारिश आज तकलीफ दे रही है. सब समेट कर रखूंगी, यादों में, तस्‍वीरों में, एहसास में, अल्‍फाज में... आज मौसम की पहली बारिश है...एक खलिश है... तुम याद रहे हो...कहां हो तुम...

Saturday, June 8, 2013

...और पीछे कदमों के निशान हैं

way to Ajmer...Clicked By: Mahi S
तुम डरते थे मेरी खामोशी से, मुझे याद है, हमेशा कहते थे, 'तुम खामोश होती हो तो लगता है कुछ होने वाला है, जो सिर्फ तुम जानती हो.' पता नहीं क्‍या मतलब होता था तुम्‍हारी इस बात का, लेकिन तुम ये हमेशा कहते थे.
देखो ना आज खामोश हूं...नहीं पता क्‍यूं...तुम्‍हें याद है एक रोज तुम्‍हें ढलते सूरज के सामने बोला था मैने, 'मुझे याद करना तुम्‍हारी मजबूरी है, तुम्‍हारे सामने रहूं या ओझल...' आज सामने नहीं हूं, लेकिन एहसास है मुझे...समझती हूं तुम्‍हारी मजबूरी को. दिल को संभालने की हर दिन कोशिश कर रही हूं, एक नई कोशिश...मुश्किल है, शायद नामुमकिन...पर मै, 'मै' हूं तुम्‍हारे अल्‍फाजों में 'Super woman'. जब कहते थे तब नहीं समझ पाई थी इस बात की गहराई को, लेकिन देखो आज समझ रही हूं. तुम्‍हारे आखिरी मुलाकात के एहसास को संजोकर रख लिया है ताकि कोई हवा भी उसे ना छुए...मुझे याद है आखिरी बार कार से उतरने से पहले तुमने अपने हाथों से जब मेरे चेहरे को ऊपर उठाया था, आंसू को मुट्टी में बंद किया था...बोले थे तुम, 'ये इसी तरह बहते रहे तो दुनिया के किसी कोने में मुझे सुकून नहीं मिलेगा.' और मैने आखिरी बार भी कहा था तुमसे 'मत जाओ ऐसे...' 
वो कहते हैं ना मंजिल मिलने से ज्‍यादा सफर जरूरी होता है. मुझे कोई शिकायत नहीं है तुमसे, किसी बात का गिला भी नहीं. गिला हो भी क्‍यों, तुमने सफर को खूबसूरत बनाया...बहुत खूबसूरत. तो क्‍या हुआ जो आज खामोशी है, अधूरे ख्‍वाब हैं, बेलुत्‍फ जिंदगी है...इसमें तुम तो हो...पीछे मुड़ती हूं तो कदमों के निशान दिखते हैं. क्‍या तुम्‍हें भी दिखते हैं?