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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Tuesday, August 28, 2012

आईने ने कैद किया अक्स


दिन गुजर रहे हैं अपनी रफ्तार से, वक्त है कि मेरे लिए रूक ही नहीं रहा है। आसपास से सब गुजर रहा है लेकिन मेरे लिए सब कुछ जैसे ठहरा है। कुछ खोई चीजों को ढूंढ़ते हुए इतना दूर निकल आई हूं कि रास्ता ही नहीं मिल रहा है बाहर निकलने का । किस्से पूछूं रास्ता? दूर चली जा रही हूं एक रौशनी के पीछे, छलावा है शायद वो, जितना आगे बढ़ रही हूं वो रौशनी उतनी ही आगे जा रही है। हथेली फैलाओ तो हाथ में है और हथेली बंद करो तो बाहर। थक गई हूं अब, और ये रास्ता है तो तय होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दिन ढल रहा है, आज भी रास्ता नहीं मिला बाहर निकलने का! एक जगह लेकर बैठ गई हूं खामोशी से, एक उम्मीद के साथ। लेकिन थकी हुई आंखों को कुछ धुंधला अक्स दिख रहा है, हमारा-तुम्हारा अक्स, मुस्कुराते हुए आइने के सामने, कैद करते हुए कुछ खुश लम्हों को, खिलखिलाते हुए, एक दूसरे के साथ.... शायद आईने ने ही कैद कर लिया वो अक्स....बदमाश कहीं का...तभी तो आज आईने के सामने हूं तो थकी आंखे, खामोश चेहरा और आईने के भीतर वही रौशनी दिख रही है।

Tuesday, August 7, 2012

कहानी लिखने की एक कोशिश...


बन सकती थी मदीहा...

जनाजे के सामने जब वो पीले गुलाब लेकर पहुंचा और उसे रखने लगा तो मानो उसके कान में किसी ने आकर धीरे से कहा "तुम फिर फूल लेकर आए....मना किया था ना, तुम जब फूल लाते हो कुछ बुरा होता है।" कांप गया वो अंदर तक मानो मीहिका ने खुद उसके पास आकर ये शब्द दोहराए हो। वो खामोशी से वहां कुछ पल बैठना चाहता था, अकेले में, माफी मांगना चाहता था उससे, नहीं साथ दे पाया उसका।

 उसकी मां वहां बिलख-बिलखकर रो रही थी, पिताजी भी मां को संभाल रहे थे लेकिन उनके आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भाई पास में खड़े थे, सब उसे ले जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अंजान का दिल कह रहा था 'लौट आओ मीहिका, एक बार, इस बार आओगी तो जाने नहीं दूंगा तुम्हें।' इस गमगीन माहौल में उसका मन भारी हो गया था। रातभर सफर की थकान तो थी ही लेकिन मानसिक थकान उसे अंदर तक मार रही थी। मीहिका को अब उसके अंतिम सफर में ले जाने का वक्त आ गया था। सब उसे लेकर जा रहे थे, वो भी कहीं पीछे चल रहा था, बहुत दूर, सबसे अलग! कदम जैसे बढ़ नहीं रहे हो और आंखों के सामने पुराने दिन की तस्वीर! मीहिका का वही चहकता चेहरा, वही सपने देखती खूबसूरत आंखें, वो ही जिंदादिली...आज अंजान को मीहिका की हर छोटी बात याद आ रही थी, वो उसके हर रंग को थामना चाह रहा था लेकिन आज मीहिका आगे चल रही थी और वो उसके पीछे। वह जितना उसकी तरफ बढ़ रहा था मानो वो और आगे निकल रही थी। 

बहुत प्यार था दोनों के बीच में सब जानते थे। मीहिका तो इतना प्यार करती थी कि वो अंजान के लिए कुछ भी कर गुजरे। वक्त बहुत अच्छा चल रहा था। दोनों एक-दूसरे के साथ बहुत खुश भी थे। छोटी-छोटी खुशियों को दोनों ऐसे जीते थे मानो कल जिंदगी नहीं हो। आज अंजान को मीहिका की वो बात बार-बार याद आ रही थी जब वो कहती थी "कुछ मत छोड़ो करने के लिए कल का क्या भरोसा, वक्त से बड़ा धोखेबाज तो और कोई नहीं है। क्या पता आज हमारे पास अच्छे से है और कल वक्त का मन बदल जाए? तो अगर बारिश की बूंद भी आ रही है तो उसका जश्न ऐसे मनाओ जैसे करोड़ों की लौटरी लग गई हो। " उसका मन इन बातों को सोच-सोचकर और भारी हो रहा था। अब वो भी सबके साथ उस मैदान में पहुंच गया था जहां मीहिका को अंतिम विदाई दी जा रही थी। उसका दिल फट रहा था वो अब जोर-जोर से रो रहा था, उसके भाई ने अंजान को सहारा दिया और मीहिका के पास तक लेकर गया, उजले कपड़े में उसके चेहरे पर आज भी एक तेज नजर आ रहा था। अंजान उसे निहार रहा था, आखिरी बार, आज के बाद ना ही ये चेहरा दिखेगा ना ही वो चहक। अंतिम संस्कार की सारी विधि अब पूरी हो चुकी थी। सूरज ढल गया था, सब लौट रहे थे, वो उसके घरवालों के साथ नहीं गया। पैदल ही निकल लिया...बहुत दूर कहीं, अपनी मीहिका के यादों को लिए हुए।

देर रात तक इधर-उधर घूमा लेकिन उसे कहीं भी सुकून नहीं मिला। बेचैन मन पता नहीं क्या जानना चाह रहा था। आज उसे धूल के एक कण में भी मीहिका नजर आ रही थी, वही मीहिका जिसे छह महीने पहले छोड़कर वो दिल्ली छोड़कर चला गया था। आज उसे वो दिन भी याद आ रहा था जब उसने मीहिका को एक योजनाबद्घ तरीके से छोड़ा था, उसके घरवालों के साथ मिलकर। उसे याद है जब उसने मीहिका की मां, उसके भाई और पिताजी से बात की थी कि उसके घरवाले इस रिश्ते के लिए नहीं मान रहे हैं। कहीं न कहीं मीहिका के परिवार वाले भी इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे। लेकिन किसी के मन में किसी के लिए कड़वाहट नहीं थी। सब परेशानी समझ रहे थे, सिवाए मीहिका के। वो पहले उसे बहुत समझाने की कोशिश कर चुका था। लेकिन वो कोई बात मानने को तैयार नहीं थी। आखिर उसने मीहिका के घरवालों से बात करना ही ठीक समझा। उसने सबको बताया कि अब आखिरी तरीका है वो शहर छोड़ दे। वही बताने वो उस दिन मीहिका के घरवालों से मिलने गया था। उस दिन वो घर में नहीं थी, घर क्या शहर में ही नहीं थी। ऑफिस के काम के सिलसिले में चंडीगढ़ गई हुई थी। वो वहां पहुंचा और सबको बताया कि वह पुणे शिफ्ट हो रहा है। सबने आपस में बात भी की कि अचानक इस तरह से उसका चला जाना शायद मीहिका बर्दाश्त न कर पाए। लेकिन इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था। उसने कहा कि वो कुछ दिन परेशान होगी लेकिन धीरे-धीरे उसे उसके बगैर रहने की आदत हो जाएगी। वो चला गया था उस दिन हमेशा के लिए शहर छोड़कर, प्यार उसे भी था लेकिन मजबूरी ऐसी कि वो उसका हाथ थाम ही नहीं पाया। 

पुणे पहुंचकर उसने मीहिका से एक दो दिन बात की लेकिन बातचीत धीरे-धीरे कम होती गई। दूरियों का मतलब वो भी समझ रही थी। इस तरह से दिन बीतने लगे थे। अंजान मीहिका की खैर-खैरियत किसी न किसी से ले ही लेता लेकिन उसने उस तक पहुंचने के सारे दरवाजे बंद कर लिए थे। नेटवर्किंग साइट में भी अब वो नहीं था। इन्हीं सब बातों को अभी सोच कि झटके से उसकी टैक्सी रूकी। वो एकदम चौंक कर उठा और देखा घर आ गया है। टैक्सी वाले को पैसे देकर घर की ओर चला। घर की घंटी बजाई तो उसकी मां ने दरवाजा खोला, मां कुछ पूछती उसके पहले ही वो  तेजी से अपने कमरे की तरफ चला गया। कमरा भी आज उसे काट रहा था, कमरे के हर कोने में मीहिका थी, खिड़की खुली थी और वहां से आ रही हवा से खिड़की पर लगा विंडचाइम बज रहा था। उसकी हल्की झनकार से उसकी धड़कनें और तेज हो रही थी। वो थका हुआ था लेकिन नींद नहीं आ रही थी उसे। वो उन सब चीजों को निकालकर बैठा था जो उसे मीहिका ने दी थी। उसने अपना लैपटॉप खोला और फेसबुक में जाकर मीहिका का प्रोफाइल देखने लगा। उसने उसकी एल्बम देखी और सब तस्वरों को एक-एककर देखने लगा। इतनी तस्वीरें कि देखते-देखते सुबह हो आई थी। थकान के कारण अब उसकी आंख लग आई थी। नींद से तब जागा जब उसकी मां कॉफी लेकर पहुंची। उसने तुरंत घड़ी देखी, साढ़े दस बज चुके थे। मां फिर बात करना चाह रही थी लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और तैयार होकर मीहिका की घर की तरफ निकल गया। 

उसके घर में पैर रखते ही उसके हाथ-पैर फिर ठंडे पडऩे लगे, घर के बागीचे में लगे फूलों को देखकर सोचने लगा कि ये सभी फूल मीहिका के लगाए हुए हैं लेकिन मेरी उसकी वजह से मीहिका को फूलों से ही डर लगने लगा था। शहर छोड़कर जाने के दिन भी मैने कोरियर से मीहिका के लिए फूल ही भिजवाए थे, उस दिन भी बहुत नाराज हुई थी वो फूलों को देखकर। वो ये मान बैठी थी कि जब मै उसे फूल देता हूं तो कुछ बुरा होता है। उस दिन भी तो उसके लिए बुरा ही था फूल के साथ उसे संदेश मिला था कि मै पुणे चला गया हूं। वो अभी बाहर खड़ा होकर फूलों को देख ही रहा था कि मीहिका के भाई ने उससे अंदर आने का आग्रह किया। उसने पूछा आंटी कहां है तो भाई ने ऊपर कमरे की ओर इशारा किया। वो कमरे की तरफ बढऩे लगा। अंदर पहुंचा तो देखा मीहिका की मां उसकी एक हंसती हुई तस्वीर लेकर बैठी हुई है। उन्होंने उसे बैठने के लिए कहा। अजीब सी खामोशी थी कमरे में, वो रो रही थीं। उसने कहा "मुस्कुराना बहुत पसंद था उसे, खुद को स्माइलिंग एंजेल कहती थी।" अब दोनों ही रो रहे थे। अंजान बोला आंटी आपने मुझे उसकी तबीयत को लेकर पहले क्यों नहीं बताया? कब से हुआ ये सब? उन्होंने कहा तुम्हारे जाने के बाद से ही वो खामोश रहने लगी थी, हंसना चहकना तो जैसे भूल ही गई थी। लेकिन बहुत समझाने पर सब धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। हम उसकी शादी के लिए लड़का भी देख रहे थे, उसने भी शादी के लिए हां कर दी थी। लेकिन अचानक उसकी तबीयत बिगडऩे लगी। 

उस दिन बारिश से भीग कर आई थी, बहुत देर रात को, रो भी रही थी। बस अगले दिन से जो बुखार ने पकड़ा 20 दिन के अंदर वो अपने साथ ही ले गया। बेटा लेकिन आखिरी वक्त में उसने तुम्हें बहुत याद किया, हम तुम्हें बुलवाना चाह रहे थे लेकिन उसके पिताजी ने मना कर दिया और जिस दिन तुम्हें खबर दी  तब तक बहुत देर हो गई थी। लेकिन तुम्हारे लिए कुछ छोड़कर गई है वो, उसने कहा था कि तुम जरूर आओगे। उसकी मां उठकर गई और किताबों की शेल्फ के पास रखे पीले गुलाबों का गुच्छा ले आई, पीले गुलाब अब मुरझा गए थे। मीहिका को पीले गुलाब बहुत पसंद थे, उनके हाथ में एक लिफाफा भी था उसमें लिखा था छोटी सी ये जिंदगी...(वो हमेशा कहती थी एक किताब लिखेगी और उसका नाम होगा "छोटी सी ये जिंदगी") लिफाफे में एक खत था और एक पेन ड्राइव। उसने पेन ड्राइव निकाली और वहां कंप्यूटर टेबल पर जाकर कंप्यूटर पर चलाकर देखने लगा। उसमें इतने सालों की सब तस्वीरें थीं, करीब दो-तीन हजार तस्वीरें। वो बहुत जोर-जोर से रोने लगा, वो अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। मीहिका की मां खड़ी थी, उसे हौसला दे रही थीं लेकिन दोनों के ही आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। आज फूल मीहिका ने दिए थे लेकिन खराब आज भी हुआ था, अब नहीं थी वो, हमेशा के लिए जा चुकी थी, बहुत दूर कहीं...अब वो मीहिका के डर को समझ पाया था क्यों फूलों से डरने लगी थी वो। उसने अब वो खत खोला उसमें लिखा था-

इसमें मेरी कोई गलती नहीं है कि मै एक मुस्लमान लड़की नहीं हूं। लेकिन मै सिर्फ तुम्हारे साथ एक खुशहाल जिंदगी चाहती थी, मै मीहिका से मदीहा भी बन सकती थी...लेकिन तुमने कोशिश नहीं की, जा रही हूं बहुत दूर....दुआ करूंगी अगले जन्म एक मुसलमान लड़की बनकर आऊं!


Sunday, August 5, 2012

इंशाल्लाह...

clicked by: Mahi S
Mahi : सुनो ना एक राइटिंग कॉम्पीटीशन है, उसमें लव स्टोरी लिखनी है, आखिरी तारीख अभी कुछ दिन में ही है प्लीज तुम लिखो ना हमारी कहानी...प्लीज...
S : हां हां ठीक है...मै कोशिश करूंगा...लेकिन अच्छा लिख पाऊंगा या नहीं ये नहीं पता।
Mahi :  तुम लिखो तो सही हमारी लव स्टोरी सबसे अच्छी होगी।
S : सबको ऐसा लगता है कि उनकी लव स्टोरी बेस्ट है। तुम भी ना...
Mahi :  मुझे नहीं पता तुम लिखकर जल्दी से मेल कर दो।
S : क्या लिखूं कि कहानी की हीरोइन ये मानने को ही तैयार नहीं है कि कुछ रिश्ते साथ रहने के लिए नहीं बनते??
Mahi : नहीं...वहीं से शुरू करो तुम्हारा ऑफिस..दीदी का डेस्क...उसकी शादी की तस्वीर और तस्वीर देखकर तुम्हारा मुझे एक अंजान बनकर फोन करना। :)
S : फिर परियों की दुनिया में दोनों का रहना और हकीकत सामने आने उसे न मानने की जिद करना...
Mahi : काश ऐसा हो कि जैसे-जैसे तुम्हारा पेन चले और कहानी सच में वैसी ही चले। और कहानी का अंत हो कबूल है..कबूल है...कबूल है... :) :)
बोलो ना अब इंशाल्लाह...अब तो तुम जल्दी से नहीं बोल रहे हो ;)

Thursday, August 2, 2012

Yes!! Its 2 August

I wish a bad life with you forever
 rather than a life like a queen with someone else 
So many beautiful years of togetherness