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delhi, India
I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me

Wednesday, October 16, 2013

...चंद आखिरी पन्‍ने लिख रही हूं

वॉल्‍वो से ली हुई एक पुरानी तस्‍वीर Delhi-jaipur highway
लग रहा है जैसे कुछ आखिरी पन्‍ने लिख रही हूं, जिंदगी के आखिरी पन्‍ने. हां, अधूरे, बेतरतीब से, सच्‍चे, झूठे...टूटे ख्‍वाबों को समेटते हुए लंबा वक्‍त गुजर गया, लेकिन कसक है कि जाती ही नहीं.
आज सुबह से नजरें फोन पर थी, मुबारकबाद सुनने के लिए, एक सलाम के लिए, एक सलाम का जवाब सुनने के लिए. ईद जो थी, इंतजार अब खत्‍म हुआ, लेकिन मायूसी के साथ क्‍योंकि ना फोन बजा, ना मुबारकबाद आई.

कॉफी का कप लेकर जब शाम को खिड़की के पास बैठी तो कुछ महीने पहले तुमसे हुई मुलाकात याद आई. वो मुलाकात जो आठ महीने बाद हुई, वो मुलाकात जो ना कभी दिल से जाएगी और ना नजरों से. 25 अगस्‍त रात को तुम्‍हारा एक मैसेज आया. 'कल दिल्‍ली आ रहा हूं और तुम्‍हे मुझसे थोड़ी देर के लिए मिलने आना होगा. तुम्‍हारा ज्‍यादा वक्‍त नहीं लूंगा, जरूरी काम है प्‍लीज आ जाना.'

ये मैसेज पढ़कर कुछ देर के लिए सांस ही नहीं आई, हाथ-पैर भी ऐसे कांपे जैसे ना जाने क्‍या सुन लिया. दिल फफक-फफक कर रो रहा था, कह रहा था, 'बिना सोचे समझे चली जा.' लेकिन दिमाग ने मना कर दिया. मैने मैसेज लिखा, नहीं आ पाऊंगी, एक बार फिर तुम्‍हे जाते नहीं देख सकती. माफ कर दो, मै नहीं आऊंगी.' ऊधर से तुम्‍हारा मैसेज आया, मीटिंग के लिए आ रहा हूं, गुड़गांव में है, एमजी रोड मेट्रो स्‍टेशन में शाम 5 बजे.'
तुम जानते थे मै आऊंगी, हमेशा की तरह, बिना सोचे समझे, दौड़कर आऊंगी. दिल और दिमाग की कश्‍मकश में रात आंखों में ही गुजर गई. सुबह 6 बजे ऑफिस के लिए भी निकल गई, मॉर्निंग शिफ्ट थी. पूरा दिन तुम्‍हारा कोई फोन नहीं आया था. शायद तुम जानते थे कि मै जरूर पहुंची.

ऑफिस से निकल गई थी, लेकिन घर का रास्‍ता पकड़ने की बजाय मेट्रो लिया. दिल, दिमाग से जीत चुका था, मै तुम्‍हारे पास आने के लिए निकल पड़ी थी. कुछ देर बाद मै एमजी रोड के मेट्रो स्‍टेशन में थी, तुम्‍हारा फोन आया, 'मुझे आने में थोड़ी देर हो जाएगी. तुम थोड़ा इंतजार करना.' मैने धीरे से पूछा, 'तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह रहे हो कि मै पहुंच गई हूं?' तुमने जवाब दिया, 'क्‍योंकि तुम माही हो.' इतना कहकर तुमने फोन काट दिया.

थोड़ी देर बाद फिर फोन आया, 'किस गेट पर हो?' इतना सुनकर अब मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, क्‍योंकि आठ महीने बाद तुम्‍हारा चेहरा देखूंगी. मैने कहा, 'गेट नंबर 2. मै वहीं ऊपर सीढि़यों पर खड़ी थी, तुम सामने से पैदल चलकर आ रहे थे, अब आखिरी सीढ़ी पर तुम थे और पहली सीढ़ी पर मै. उन चंद सीढि़यों के बीच से गुजरे इतने साल सरसराकर निकल रहे थे. ना तुम ऊपर आ रहे थे और ना मै नीचे. वहीं से हम दोनों एकदूसरे को देख रहे थे, थाड़ी देर बाद मै नीचे आई. दिल कर रहा था एक बार गले लग जाऊं, बिल्‍कुल पहले की तरह पर शायद बहुत कुछ बदल चुका था या शायद मुझे लग रहा था.

तुम्‍हारी आंखों में नमी थी, पूछा तुमने मुझसे, 'कैसी हो माही?' मै देखा नहीं तुम्‍हारी ओर क्‍योंकि जानती थी मै कि नहीं संभाल पाऊंगी खुदको. हम मेट्रो स्‍टेशन पर ही बने कॉफी कैफे डे में गए. तुमने कॉफी ऑर्डर की, मेरी पसंद की कॉफी, ब्‍लैक कॉफी, लेकिन सिर्फ एक कप. तुमने ही कॉफी में शक्‍कर मिलाई, बिल्‍कुल थोड़ी, जैसा मै पीती हूं. फिर कप उठाकर मुझे दिया. मै चाह कर भी खुद को नहीं रोक पाई, मै रो रही थी और आंसू इतने थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

थोड़ी देर बाद तुमने मुझसे कहा, 'माही, मै तुम्‍हारा गुनहगार हूं. मै जानता हूं मैने क्‍या किया है और मुझे जिंदगीभर इस बात का अफसोस रहेगा, लेकिन तुम्‍हे आज देखकर मुझे अपने आप से आज और नफरत हो गई है. क्‍योंकि तुम्‍हारी आंखों में मै वहीं देख रहा हूं जो आठ महीने पहले आखिरी बार मिलते हुए देखा था. मुझे दिल से माफ कर दो माही.' गलती तो हो गई तुमसे, ना अब हम एकदूसरे की जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो सकते.

हम दोनों के दर्मियां सिर्फ खामोशी थी. तुमने मुझसे पूछा, 'क्‍या मै एक सिप कॉफी इससे पी सकता हूं?' मैने हामी में सिर हिलाया, तुमने कॉफी का एक सिप पीया. मै बिना तुम्‍हारी ओर देखे, उठकर चली गई.

Saturday, August 31, 2013

'हाथ में है रेत सा इसक़ तेरा...'

मेरे कैमरे की गुस्‍ताख़ी ने सब संजोकर रखा है
घड़ी के हर सेंकेंड को गुजरते देख रही हूं, रात की खामोशी में घड़ी की टिक-टिक मेरे दिल की धड़कन को और बढ़ा रहे हैं. इतना मजबूर खुद को आज से पहले कभी नहीं देखा. 31 अगस्‍त सही रात के 12 बजे हैं,  मै चाहती हूं तुम्‍हें एक बार गले से लगाना और तुम्‍हें जन्‍मदिन की मुबारकबाद देना. Happy Birthday <3
इतने सालों में यह पहला मौका है जब शायद तुम्‍हारा फोन आधी रात
को मेरे नंबर से बिजी नहीं होगा, शायद तुम्‍हारी दुनिया अब अलग है. मेरे साथ नहीं हो, लेकिन शायद इस खलिश को तुम भी महसूस कर रहे होंगे, पता है क्‍यों? क्‍योंकि आदतों को बदलने में थोड़ा वक्‍़त तो लगता है. मुझे आज किसी ने कहा, 'अब जिंदगी में आगे बढ़ो, तुम्‍हारी मुट्ठी से रेत छूट गई है.' मैने चुपचाप सुना, फिर थोड़ी देर बाद उन्‍हें कहा, मुट्ठी से रेत तो फिसल चुकी है पर हाथ खोलकर देखती हूं तो कुछ चमक हथेली में दिखती है, तो आगे कैसे बढूं?
तुम्‍हारे एक बर्थडे का डिनर, जयपुर
बस इतना अंदाजा लगा पाई हूं कि जिंदगी आसान नहीं है और तुम्‍हारे बिना तो बिल्‍कुल नहीं. पिछले साल आज के दिन जयपुर बस स्‍टॉप पर थी, तुम पहुंचे भी नहीं थे मुझे लेने. झगड़ा भी हुआ था क्‍योंकि देर रात मै अकेले आ रही थी वो भी तुम्‍हें बिना बताए. कितना नाराज हुए थे तुम उस दिन. क्‍योंकि तुम भी शहर से बाहर जाने के लिए निकल पड़े थे और इसलिए सिंधि कैंप बस स्‍टॉप पहुंचने में भी तुम्‍हें वक्‍त लगा. बस स्‍टॉप में इंतजार करते हुए साढ़े ग्‍यारह बजे से रात के दो बज चुके थे. उसके बाद भी ठीक से बात नहीं हुई थी, क्‍या पता था उस रात का अफसोस आज इतनी बुरी तरह होगा. शायद इसलिए कहा जाता है, जब जो वक्‍त हो उसे पूरी तरह जी लेना चाहिए पता नहीं वो वक्‍त दोबारों जिंदगी में आए या नहीं.
बस इस पल एक ही दुआ करती हूं अल्‍लाह तुम्‍हारी हर जायज तम्‍मनाओं को पूरा करें और जिंदगी में नई सरबुलंदियां अता फरमाये...आमीन. 

Sunday, August 18, 2013

नीली खामोशियां...

Jodhpur Palace
वक्‍़त ग़ुज़र रहा है. आज भी हर दिन मन उतना ही बेताब होता है तुमसे एक बार बात करने के लिए...आठ महीने गु़ज़र गए. लेकिन मै भी सिर्फ दिल की सुनती हूं, जब दिल को तुम्‍हारी आवाज सुनने का मन करता है तो झट से ऑफिस का नंबर घुमा देती हूं. जानती हूं कि तुम्‍हारे ऑफिस के फोन में कॉलर आईडी नहीं है और ये भी जानती हूं कि मेरे फोन को मेरे बिना बात करने पर भी तुम समझ जाते हो. 
बहुत याद आए उस दिन तुम... शाम को सब चांद का इंतजार कर रहे थे, चांद आया भी, लेकिन पहली बार ये चांद मेरे लिए नहीं था. चांद अजनबी मालूम पड़ रहा था, दो-तीन बार मोबाइल उठाकर देखा, तुम्‍हारे सबसे पहले 'चांद मुबारक' का मैसेज का इंतजार था. 
इस बार भी ईद की शॉपिंग की फर्क सिर्फ इतना रहा कि सब अकेले खरीदा और तुम्‍हारे लिए खरीदा. सब कुछ भेजा तुम्‍हारे ऑफिस के पते पर, लेकिन नाम नहीं छोडा़. जिंदगी में कुछ रिश्‍ते शायद खामोशी से ही साथ चलते हैं. 
खैर, वक्‍त बदलता है और शायद वक्‍त के साथ लोग भी... मेरे लिए तुम्‍हारा साथ रहना जरूरी नहीं है, बल्कि तुम्‍हारा साथ होना जरूरी है. शायद इसलिए इस ईद तुम्‍हारी आवाज सुने बिना ही गुजरी. लेकिन तुम्‍हे बिना देखे कैसे गुजरती भला. 
ये ईद मीठी सेवइयों के साथ नहीं मनाई मैने, बल्कि पुरानी तस्‍वीरों को बाहर निकाला, हर उस वक्‍त को एक बार फिर से जीया, तुम्‍हारी मौजूदगी को महसूस किया, तुम्‍हारे साथ बिताए लम्‍हों को याद किया. जयपुर की रातें, दिल्‍ली की बातें, देर रात तक बातें करना, ईद की शॉपिंग, हर रंग की चमक का आंखों में दिखना. सब याद आया.
इन्‍हीं यादों के साथ चांद देर रात तक मेरे सिरहाने बैठा रहा, तड़के चांद मुझे मेरी यादों साथ छोड़कर चला गया. इस तरह नीली खामोशियों के आगोश में गुजरी रात, तुम्‍हारे साथ, तुम्‍हारी यादों के साथ...

Friday, August 2, 2013

फिर वही तारीख है, पर तुम नहीं हो- 2 August!

कलेंडर के पन्ने घूम कर फिर उसी तारीख पर आ गए, पर देखो ना तुम आसपास हो ही नहीं, कुछ नहीं कहना आज, चुप रहना है. पर यादें उनका क्या करूँ, हज़ार मना करने पर भी सामने आ जाते है. कभी ये मुबारक दिन होता था और आज तन्हा है. मान गए वक़्त तुमको भी...













आखिरी बार जयपुर जाते वक़्त खिंची हुयी तस्वीर है ये. मन को यकीन हो चला था की फिर नहीं आना होगा यहाँ।
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Thursday, June 20, 2013

बेलुत्‍फ जिंदगी, अधूरे ख्‍वाब और तुम...

 Break up Party का केक 
यूं तो सब खास रहा, लेकिन छूटते हुए लम्‍हों को यूं ही नहीं जाने देना चाहती थी मै... ये मेरे थे...सिर्फ मेरे...आखिरी बार जयपुर का सफर, आखिरी कुछ लम्‍हे, वो पल, वो दर्द, वो चुभन, वो घुटन, वो कसक...सब कुछ मेरा था. मैने हर लम्‍हे को कैद किया, अपने पास हमेशा रखने के लिए. दिल्‍ली लौटने के पहले हमने सब कुछ दोराया,  दोहराया, जयपुर के हर कोने को फिर से जीया और उस आखिरी दिन फैमिली डिनर के लिए भी गए.

 वो डिनर सच में खास लग रहा था
, सब अच्‍छे से तैयार हुए थे, मै, तुम, तुम्‍हरा भाई और हमारा सबसे अजीज Mr. K, जयपुर के Barbeque Nation में था ये खास डिनर. Break up Party...

केक काटते हुए हम..

Barbeque Nation स्‍पेशल
सब कुछ पास रहेगा यादों में भी तस्‍वीरों में भी....











तस्‍वीरें तब और खास हो जाती है जब उसमें दिखने वाले लोग साथ नहीं होते...







ख्‍वाहिशों का क्‍या है, ख्‍वाहिशें तो होती ही हैं अधूरी रह ने के लिए...
Life is strange when happiness makes u sad... :(

Saturday, June 15, 2013

कसक

जयपुर: मानसरोवर का फ्लैट Clicked By: Mahi S
मौसम की पहली बारिश, तुम्‍हें ढूंढ़ रही हूं, हर बूंद में....खिड़की के पास बैठी हूं...सब खामोश है, सिर्फ बूंदें बातें कर रही हैं. चेहरे पर आकर जब छू रही है तो मानो एक बार फिर सब कुछ जी रही हूं. तुम्‍हे जी रही हूं, हमारे रिश्‍ते को जी रही हूं, साथ बिताए हर पल को जी रही हूं.
सच में वक्‍त दगाबाज है. तुम्‍हारे बिना बारिश देख रही हूं.... मौसम की पहली बारिश. हर बारिश के साथ एक याद जो जुड़ती है. इस बारिश के साथ शायद यही याद जुड़ी रह जाएगी कि बिना तुम्‍हारे इन बूंदों को समेट रही हूं. याद है तुम्‍हें बरसातों में शिप्रा के टेरेस पर चाय पीना और बरसते पानी के साथ घंटों बैठे रहना...याद है मुझे चाय तुम ही बनाते थे. सब याद आ रहा है आज इन बरसते बादलों को देखकर...
बारिश में मेरे घर के रास्‍ते में अक्‍सर जाम लग जाया करता था और उन दिनों हम दोनों को उस जाम का इंतजार होता था. घर जाने की जल्‍दी तो होती थी रात को, लेकिन जाम में फंसे होने से कुछ घंटे और मिल जाते थे साथ बिताने को... वो खुशनुमा दिन थे...तुम थे...हम थे...तब
जयपुर के हमारे अपने फ्लैट की बालकॉनी से ली हुई तस्‍वीर..
वक्‍त कम पड़ जाता था.  दिल्‍ली के साथ ही जयपुर की बारिश को भी खूब जिया हमने...साल की इस सबसे खूबसूरत सौगात के लिए मै दिल्‍ली से जयपुर पहुंच जाया करती थी. और मेरा पागलपन देख तुम कहते, 'तुम सच में पागल हो...सिर्फ बारिश के लिए जयपुर आई हो..' मै मुस्‍कुराती, मन में सोचती भी कि तुम्‍हें अंदाजा नहीं है, लेकिन मै क्‍या कर रही हूं, बहुत खूब जानती हूं.
तुम्‍हारे बाद मेरा दूसरा हमसफर मेरा कैमरा भी मेरा पूरा साथ देता...बारिश जयपुर को और खूबसूरत बना देता. बिल्‍कुल उजला, धुला हुआ...तुम बारिश रूकने का इंतजार करते और मै बारिश में बाहर निकलने का...वो वक्‍त याद आ रहा है...शिप्रा की बालकोनी, कनॉट प्‍लेस, दिल्‍ली की हर सड़क, हर कोना, ये बारिश आज तकलीफ दे रही है. सब समेट कर रखूंगी, यादों में, तस्‍वीरों में, एहसास में, अल्‍फाज में... आज मौसम की पहली बारिश है...एक खलिश है... तुम याद रहे हो...कहां हो तुम...

Saturday, June 8, 2013

...और पीछे कदमों के निशान हैं

way to Ajmer...Clicked By: Mahi S
तुम डरते थे मेरी खामोशी से, मुझे याद है, हमेशा कहते थे, 'तुम खामोश होती हो तो लगता है कुछ होने वाला है, जो सिर्फ तुम जानती हो.' पता नहीं क्‍या मतलब होता था तुम्‍हारी इस बात का, लेकिन तुम ये हमेशा कहते थे.
देखो ना आज खामोश हूं...नहीं पता क्‍यूं...तुम्‍हें याद है एक रोज तुम्‍हें ढलते सूरज के सामने बोला था मैने, 'मुझे याद करना तुम्‍हारी मजबूरी है, तुम्‍हारे सामने रहूं या ओझल...' आज सामने नहीं हूं, लेकिन एहसास है मुझे...समझती हूं तुम्‍हारी मजबूरी को. दिल को संभालने की हर दिन कोशिश कर रही हूं, एक नई कोशिश...मुश्किल है, शायद नामुमकिन...पर मै, 'मै' हूं तुम्‍हारे अल्‍फाजों में 'Super woman'. जब कहते थे तब नहीं समझ पाई थी इस बात की गहराई को, लेकिन देखो आज समझ रही हूं. तुम्‍हारे आखिरी मुलाकात के एहसास को संजोकर रख लिया है ताकि कोई हवा भी उसे ना छुए...मुझे याद है आखिरी बार कार से उतरने से पहले तुमने अपने हाथों से जब मेरे चेहरे को ऊपर उठाया था, आंसू को मुट्टी में बंद किया था...बोले थे तुम, 'ये इसी तरह बहते रहे तो दुनिया के किसी कोने में मुझे सुकून नहीं मिलेगा.' और मैने आखिरी बार भी कहा था तुमसे 'मत जाओ ऐसे...' 
वो कहते हैं ना मंजिल मिलने से ज्‍यादा सफर जरूरी होता है. मुझे कोई शिकायत नहीं है तुमसे, किसी बात का गिला भी नहीं. गिला हो भी क्‍यों, तुमने सफर को खूबसूरत बनाया...बहुत खूबसूरत. तो क्‍या हुआ जो आज खामोशी है, अधूरे ख्‍वाब हैं, बेलुत्‍फ जिंदगी है...इसमें तुम तो हो...पीछे मुड़ती हूं तो कदमों के निशान दिखते हैं. क्‍या तुम्‍हें भी दिखते हैं?  

Saturday, February 9, 2013

....मुझे याद करोगे ना, इस रिश्‍ते पर नाज करोगे ना


खालीपन है, एकदम खाली...दिल, दिमाग और जिंदगी. इस खालीपन के साथ जिंदगी जीने की हर रोज एक नई कोशिश करती हूं और शाम होते-होते हार जाती हूं. क्‍या तुम भी ऐसी कोशिश कर रहे हो, क्‍या खालीपन तुम्‍हारे जेहन में भी दस्‍तक देता होगा? पता नहीं इतनी दूर हूं ना तुमसे अब....
अब तक तुम्‍हारे साथ थी लेकिन अभी तुम्‍हें जी रही हूं मै...हर दिन, हर घंटे, हर पल...कभी समझने का मौका ही नहीं मिला कि जिंदगी तुम्‍हारे बिना भी जीनी होगी, खुद को बहलाने के लिए हर खुशनुमा पल को याद करती हूं.
 तुम्‍हें याद है एक दिन रात खाने के बाद हम सब बैठे थे, हमारा सबसे अजीज Mr. K भी हमारे साथ ही था. बातों-बातों में उसने पूछा माही तुम्‍हें दोबारा जिंदगी मिली तो तुम्‍हें क्‍या चाहोगी? तुम मेरी ओर देखकर मुस्‍कुराए....यही सवाल उसने तुमसे भी पूछा....तुमने एकदम कॉरपोरेट जगत के किसी बड़े नाम की तरह एक जवाब दिया...अब बारी मेरी थी...Mr. K ने दो बार कहा, बोलो ना माही अल्‍लाहताला ने दोबारा इंसानी जिंदगी दी तो तुम क्‍या जीना चाहोगी.
.....और मै बोली....मै माही ही बनकर आना चाहूंगी, हर वो गलती दोबारा दोहराना चाहूंगी, तुम्‍हें इतना ही प्‍यार करूंगी, तुम्‍हारे साथ जिंदगीभर साथ रहने के लिए इसी तरह अल्‍लाह से लड़ूंगी, तुम्‍हारी हर छोटी-बड़ी बात का ख्‍याल रखूंगी, अपने मां-पापा की खिदमत करूंगी. मै तुमसे इसी तरह टूट कर प्‍यार करूंगी...जिंदगीभर, जिंदगी रहते तक और जिंदगी के बाद भी...इंशाल्‍लाह...ये सुनकर मेरा गला रूंध गया था...तुम दोनों की आंख भी नम थी.... Mr. K उठकर पानी लेने गए....तुम मेरे पास आए और पूछा इतना प्‍यार क्‍यों करती हो मुझसे...शायद तुम्‍हें कुछ नहीं दे पाऊंगा....
तुम्‍हारे ही ख्‍यालों से बात करते हुए उसी जगह आ खड़ी हूं जहां तुमने मुझे आखिरी बार छोड़ा था....न्‍यू फ्रेंड्स कॉलोनी का ये बस स्‍टैंड....तुम नहीं हो लेकिन मेरा दिल पूछना चाहता है तुमसे ''....मुझे याद करोगे ना, इस रिश्‍ते पर नाज करोगे ना?


रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ.......अहमद फ़राज़

Sunday, January 27, 2013

...क्‍यों मुमकिन न हो सका

clicked by: Mahi S

उन पांच दिनों की हर रात न जाने कैसी लग रही थी.....कभी ज़हन से नहीं जाएगी.....और क्यूँ नहीं रहेगी मेरी यादों में, आखिरी कुछ दिन जो थे तुम्हारे साथ, उस घर में, उसकी बालकनी में. मै बदहवास सी होकर पूरे घर में घूम रही थी. उसके हर कोने को छू रही थी. दोनों रो रोकर बेजार थे लेकिन कोई साथ में नहीं था, वक़्त ने तो साथ ना जाने कब से छोड़ दिया था. तुमने कहा माही यही वक़्त है, चलो सब भूल जाते हैं, किस्मत अपना फैसला सुना चुकी है पर ये कुछ वक्‍त हमारा है. इस पर तो खुदा का भी जोर नहीं....मेरे मन में आया खुदा? जाने कौन है ये खुदा?
हम दोनों हाल में बैठ गए, तुमने फिल्म बर्फी लगायी....हम दोनों फिल्‍म देखने लगे. खूबसूरत फिल्‍म, एक खूबसूरत संदेश लिए हुए. मोहब्‍बत का कोई मजहब, कोई भाषा नहीं होती. वो तो मोहब्‍बत है जिससे होती है बेलौस हो जाती है. लेकिन हम अलग हो रहे थे इसी मजहब के लिए....आखिरी कुछ पल एक दूसरे के साथ...
हम दोनों सिर्फ वो गाना सुनने के लिए पूरी फिल्‍म देख रहे थे.....सच बेहद खूबसूरत गाना.... 'इतनी सी हंसी..इतनी सी खुशी..इतना सा टुकड़ा चांद का.......वो गाना आया स्‍क्रीन पर, नहीं रोक पाई अपने आंसू, तुमने भी नहीं पोंछा आंसूओं को. तुम बोले जितना हो सके रो लो...मत रोको खुद को....
मैने तुमसे एक सवाल किया....जिस खुदा की तुम बात करते हो क्‍यों उन्‍होंने मेरी छोटी सी दुनिया को मुक्‍कमल नहीं किया? मैने तो एक दुनिया बनाई, मेरी दुनिया लेकिन क्‍यों आज मै तिनके भी समेट नहीं पा रही हूं, क्‍यों? क्‍यों मुमकिन नहीं हुआ जिंदगीभर एक दूसरे का साथ?