
रात घर पहुंचने के बाद शारिक बोला माही निकालना सारे सूट देखते हैं सब कैसे लिए हैं हमने, मै गई और सारे पैकेट निकाल लाई। अरे ये क्या... सारे सूट के कपड़े हरे रंग के, हल्का हरा, गहरा हरा, लाल के साथ हरा, भूरे के साथ हरा, हरा हरा हरा। दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और दोनों की ही हंसी छूट गई। :)
असल में शारिक को हरा रंग बहुत पसंद है और मै जब खरीदारी के लिए जाती हूं तो कुछ पसंद नहीं करती, सब उसी की पसंद का। इस बार भी खरीदते समय एक बार भी ध्यान नहीं गया कि हमने ढेर सारे कपड़े हरे रंग में ले लिए है। अब क्या, शारिक बोला कल जाकर बदल लाएंगे एक-दो सूट। फिर बोला माही मैने तुम्हे जो पहला कुर्ता दिलाया था वो भी शायद हरा था ना, मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कुराहट आ गई। :)
सही में शारिक ने मुझे जो पहला कुर्ता दिलाया था वो भी हरे रंग का ही था। मुझे आज भी याद है वो अपने ऑफिस से अचानक कनॉट प्लेस पहुंचा था। मुझे फोन किया और बोला ऑफिस के बाहर आओ। मै बाहर आई और हम दोनों सीपी के गलियारों में टहलने लगे। कुछ देर बाद बोला तुमने एकदम अच्छे कपड़े नहीं पहने हैं, चलो कुछ खरीदते हैं। मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माना। हम वहीं के फैब इंडिया चले गए जहां से मै कुर्ते खरीदती हूं। नए-नए रिश्ते में मुझे थोड़ी झिझक भी हो रही थी। लेकिन उसने दो कुर्ते पसंद किए उस वक्त भी दोनों कुर्ते हरे थे एक हल्का हरा और दूसरा गहरा हरा। आज भी उस कुर्ते को पहनने के लिए निकालती हूं तो पुरानी सारी बात रील की तरह आंखों के सामने चलने लगती है। आखिर में आकर यही लगता है कि वक्त के साथ या तो रिश्ता मैच्योर हो जाता है या फिर बिखरने लगता है।
पता नहीं इतने बदलाव को क्या कहना ठीक होगा। :(
खैर इस बार भी हरियाली से मैने अपनी पूरी अलमारी को भर लिया है। शारिक की पसंद जो थी कैसे कुछ और पसंद करके ले आती, उसकी जिद पर दोबारा गए हम कपड़े बदलने लेकिन मेरा मन नहीं था, फिर हमने एक नया सूट लिया और एक बदल लिया। लेकिन मै उन्हीं कपड़ो को चाहती थी इसलिए घर आकर मैने बदले हुए कपड़े को वहीं अलमारी में रख दिया, उसे अपने साथ घर नहीं लायी। मुझे सब वैसे ही चाहिए बदला हुआ कुछ भी नहीं...