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@ Bhangarh |
मेरी बातों को बीच में रोकर तुमने मुझे एक कप चाय बनाने को कहा। मै चाय बनाने चली गयी, चाय लेकर आई तो तुम अख़बार लेकर बैठे थे, मै छह रही थी तुम मुझसे बात करो। मैंने तुम्हे बोला भी "क्या तुम चाय और अख़बार लेकर बैठ गए, मुझसे बात करो, सुनो न ठीक से मैंने पुरे दिन क्या किया।" पर तुम तो बस सिर हिलाकर जवाब दिया। मुझे अच्छा नही लगा, मै उठकर चली गयी। आईने के सामने मई तैयार हो रही थी, काजल उठाकर अभी लगा ही रही थी की आईने में तुम नज़र आये। मैंने भी तुम्हे अनदेखा किया और अपनी आँखों में काजल लगाने लगी। तुम मेरे करीब आये, मुझे धीरे से अपने पास खींचा, मैंने तुम्हारी तरफ नाराज़गी से देखा, फिर तुमने धीरे से मेरे कान में कहा "माही, तुम जब अपनी इन काजल वाली आँखों से मेरी तरफ देखती हो ना तो मुझे साडी बातें समझ आ जाती है...तुम्हारी बातें समझने के लिए मुझे अल्फाजों की ज़रूरत नहीं है।
आज
आज मै आईने के सामने हूँ, काजल लगा रही हूँ लेकिन आज मेरी आँखों की तारीफ करने के लिए ढूँढने पर भी तुम्हारा अक्स आईने में नज़र नहीं आ रहा है। काजल आज भी लगा रही हूँ.... क्यूंकि तुम्हे पसंद है मेरी काजल लगी आँखें....तारीफ करने के लिए तुम नहीं हो, लेकिन काजल से कह रही हूँ "मेरी आँखों में ऐसे रहना की किसी को मेरी सूजी आँखें ना दिखे। आज ना तुम्हारा अक्स है ना तुम्हारे अलफ़ाज़।
वाह बेहद गहन अभियक्ति सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत भाव भीनी पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबढिया अभिव्यक्ति
पहले तो ये बताओ कि कहाँ थीं इत्ते दिन.....
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तुम्हारे काजल में ही तो है वो तुम्हारा "S" ?????
कहीं गलती से रो न पड़ना....
:-)
अनु
कोमल भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनजरों की तारीफ किये बगेर कौन रहा है भला .. यूँ ही नजरों को सजाये रखना ..तारीफ़ करने को वो लौट कर आएंगे ..उनको भी इन नजरों की बड़ी याद आती होगी. बहुत लाजवाब प्रस्तुती।
ReplyDeleteयूँ आसान से लफ्जों में...गहरे भाव |
ReplyDeleteक्या कहूँ, बस......
ReplyDeleteबहुत दर्द है आपके शब्दों में। ऐसा लग रहा है जैसे मेरी भावनाएं उकेर दी हों आपने।
ReplyDeleteकाजल! मान लेना उनकी बातें... सजे रहना आँखों में, पर ख्याल रखना इस बात का कि वे आँखें हंसती हुई हों, सूजी हुई नहीं!
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