दिन गुजर रहे हैं अपनी रफ्तार से, वक्त है कि मेरे लिए रूक ही नहीं रहा है। आसपास से सब गुजर रहा है लेकिन मेरे लिए सब कुछ जैसे ठहरा है। कुछ खोई चीजों को ढूंढ़ते हुए इतना दूर निकल आई हूं कि रास्ता ही नहीं मिल रहा है बाहर निकलने का । किस्से पूछूं रास्ता? दूर चली जा रही हूं एक रौशनी के पीछे, छलावा है शायद वो, जितना आगे बढ़ रही हूं वो रौशनी उतनी ही आगे जा रही है। हथेली फैलाओ तो हाथ में है और हथेली बंद करो तो बाहर। थक गई हूं अब, और ये रास्ता है तो तय होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दिन ढल रहा है, आज भी रास्ता नहीं मिला बाहर निकलने का! एक जगह लेकर बैठ गई हूं खामोशी से, एक उम्मीद के साथ। लेकिन थकी हुई आंखों को कुछ धुंधला अक्स दिख रहा है, हमारा-तुम्हारा अक्स, मुस्कुराते हुए आइने के सामने, कैद करते हुए कुछ खुश लम्हों को, खिलखिलाते हुए, एक दूसरे के साथ.... शायद आईने ने ही कैद कर लिया वो अक्स....बदमाश कहीं का...तभी तो आज आईने के सामने हूं तो थकी आंखे, खामोश चेहरा और आईने के भीतर वही रौशनी दिख रही है।
About Me

- Mahi S
- delhi, India
- I m a prsn who is positive abt evry aspect of life. There are many thngs I like 2 do, 2 see N 2 experience. I like 2 read,2 write;2 think,2 dream;2 talk, 2 listen. I like to see d sunrise in the mrng, I like 2 see d moonlight at ngt; I like 2 feel the music flowing on my face. I like 2 look at d clouds in the sky with a blank mind, I like 2 do thought exprimnt when I cannot sleep in the middle of the ngt. I like flowers in spring, rain in summer, leaves in autumn, freezy breez in winter. I like 2 be alone. that’s me
बढिया,
ReplyDeleteशुक्रिया शुक्रिया महेन्द्र जी
Delete...very nice!
ReplyDeletethnk u so much Amit Sir
Deleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया :)
Deleteओह.... लाजवाब
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteमाही जी, रचना आपकी बहुत बढियां है । दिल से लिखा है ,इसलिए ये कविता न होकर गद्य कविता हो गई । बहुत सुंदर । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ,ज्वाइन अस ..........।
ReplyDeleteAksar mai khud bhee yahee dekhtee hun!
ReplyDelete:)
Deleteदिमाग के रास्ते,सीधे मन में उतर गई ये लाइनें...|अतिसुंदर रचना|
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
आभार...|
:) :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..उम्मीद है आपको रास्ता मिल जाएगा..
ReplyDeleteinshallah :)
Deleteआइने भी कभी कभी शरारत कर बैठते हैं ...
ReplyDeleteसच नहीं देख पाते ...
उम्दा लिखा है ...
दिन ढल रहा है तो ढलने दो...कल ये नया सवेरा लाएगा और रौशनी होगी तुम्हारे पीछे.....
ReplyDeleteआईने के अक्स से जी कहाँ भरेगा....
अपने साये के साथ एक साया(S)पाओगी देखना तुम!!!
:-)
khush raho...
much love.
anu
Arrey Waah.. Kyaai likha hai aapne! :)
ReplyDeleteHappy Blogging! :)
आईना मन का अक्स भी पढ़ लेता है शायद!
ReplyDelete