बन सकती थी मदीहा...
जनाजे के सामने जब वो पीले गुलाब लेकर पहुंचा और उसे रखने लगा तो मानो उसके कान में किसी ने आकर धीरे से कहा "तुम फिर फूल लेकर आए....मना किया था ना, तुम जब फूल लाते हो कुछ बुरा होता है।" कांप गया वो अंदर तक मानो मीहिका ने खुद उसके पास आकर ये शब्द दोहराए हो। वो खामोशी से वहां कुछ पल बैठना चाहता था, अकेले में, माफी मांगना चाहता था उससे, नहीं साथ दे पाया उसका।
उसकी मां वहां बिलख-बिलखकर रो रही थी, पिताजी भी मां को संभाल रहे थे लेकिन उनके आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भाई पास में खड़े थे, सब उसे ले जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अंजान का दिल कह रहा था 'लौट आओ मीहिका, एक बार, इस बार आओगी तो जाने नहीं दूंगा तुम्हें।' इस गमगीन माहौल में उसका मन भारी हो गया था। रातभर सफर की थकान तो थी ही लेकिन मानसिक थकान उसे अंदर तक मार रही थी। मीहिका को अब उसके अंतिम सफर में ले जाने का वक्त आ गया था। सब उसे लेकर जा रहे थे, वो भी कहीं पीछे चल रहा था, बहुत दूर, सबसे अलग! कदम जैसे बढ़ नहीं रहे हो और आंखों के सामने पुराने दिन की तस्वीर! मीहिका का वही चहकता चेहरा, वही सपने देखती खूबसूरत आंखें, वो ही जिंदादिली...आज अंजान को मीहिका की हर छोटी बात याद आ रही थी, वो उसके हर रंग को थामना चाह रहा था लेकिन आज मीहिका आगे चल रही थी और वो उसके पीछे। वह जितना उसकी तरफ बढ़ रहा था मानो वो और आगे निकल रही थी।
उसकी मां वहां बिलख-बिलखकर रो रही थी, पिताजी भी मां को संभाल रहे थे लेकिन उनके आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भाई पास में खड़े थे, सब उसे ले जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अंजान का दिल कह रहा था 'लौट आओ मीहिका, एक बार, इस बार आओगी तो जाने नहीं दूंगा तुम्हें।' इस गमगीन माहौल में उसका मन भारी हो गया था। रातभर सफर की थकान तो थी ही लेकिन मानसिक थकान उसे अंदर तक मार रही थी। मीहिका को अब उसके अंतिम सफर में ले जाने का वक्त आ गया था। सब उसे लेकर जा रहे थे, वो भी कहीं पीछे चल रहा था, बहुत दूर, सबसे अलग! कदम जैसे बढ़ नहीं रहे हो और आंखों के सामने पुराने दिन की तस्वीर! मीहिका का वही चहकता चेहरा, वही सपने देखती खूबसूरत आंखें, वो ही जिंदादिली...आज अंजान को मीहिका की हर छोटी बात याद आ रही थी, वो उसके हर रंग को थामना चाह रहा था लेकिन आज मीहिका आगे चल रही थी और वो उसके पीछे। वह जितना उसकी तरफ बढ़ रहा था मानो वो और आगे निकल रही थी।
बहुत प्यार था दोनों के बीच में सब जानते थे। मीहिका तो इतना प्यार करती थी कि वो अंजान के लिए कुछ भी कर गुजरे। वक्त बहुत अच्छा चल रहा था। दोनों एक-दूसरे के साथ बहुत खुश भी थे। छोटी-छोटी खुशियों को दोनों ऐसे जीते थे मानो कल जिंदगी नहीं हो। आज अंजान को मीहिका की वो बात बार-बार याद आ रही थी जब वो कहती थी "कुछ मत छोड़ो करने के लिए कल का क्या भरोसा, वक्त से बड़ा धोखेबाज तो और कोई नहीं है। क्या पता आज हमारे पास अच्छे से है और कल वक्त का मन बदल जाए? तो अगर बारिश की बूंद भी आ रही है तो उसका जश्न ऐसे मनाओ जैसे करोड़ों की लौटरी लग गई हो। " उसका मन इन बातों को सोच-सोचकर और भारी हो रहा था। अब वो भी सबके साथ उस मैदान में पहुंच गया था जहां मीहिका को अंतिम विदाई दी जा रही थी। उसका दिल फट रहा था वो अब जोर-जोर से रो रहा था, उसके भाई ने अंजान को सहारा दिया और मीहिका के पास तक लेकर गया, उजले कपड़े में उसके चेहरे पर आज भी एक तेज नजर आ रहा था। अंजान उसे निहार रहा था, आखिरी बार, आज के बाद ना ही ये चेहरा दिखेगा ना ही वो चहक। अंतिम संस्कार की सारी विधि अब पूरी हो चुकी थी। सूरज ढल गया था, सब लौट रहे थे, वो उसके घरवालों के साथ नहीं गया। पैदल ही निकल लिया...बहुत दूर कहीं, अपनी मीहिका के यादों को लिए हुए।
देर रात तक इधर-उधर घूमा लेकिन उसे कहीं भी सुकून नहीं मिला। बेचैन मन पता नहीं क्या जानना चाह रहा था। आज उसे धूल के एक कण में भी मीहिका नजर आ रही थी, वही मीहिका जिसे छह महीने पहले छोड़कर वो दिल्ली छोड़कर चला गया था। आज उसे वो दिन भी याद आ रहा था जब उसने मीहिका को एक योजनाबद्घ तरीके से छोड़ा था, उसके घरवालों के साथ मिलकर। उसे याद है जब उसने मीहिका की मां, उसके भाई और पिताजी से बात की थी कि उसके घरवाले इस रिश्ते के लिए नहीं मान रहे हैं। कहीं न कहीं मीहिका के परिवार वाले भी इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे। लेकिन किसी के मन में किसी के लिए कड़वाहट नहीं थी। सब परेशानी समझ रहे थे, सिवाए मीहिका के। वो पहले उसे बहुत समझाने की कोशिश कर चुका था। लेकिन वो कोई बात मानने को तैयार नहीं थी। आखिर उसने मीहिका के घरवालों से बात करना ही ठीक समझा। उसने सबको बताया कि अब आखिरी तरीका है वो शहर छोड़ दे। वही बताने वो उस दिन मीहिका के घरवालों से मिलने गया था। उस दिन वो घर में नहीं थी, घर क्या शहर में ही नहीं थी। ऑफिस के काम के सिलसिले में चंडीगढ़ गई हुई थी। वो वहां पहुंचा और सबको बताया कि वह पुणे शिफ्ट हो रहा है। सबने आपस में बात भी की कि अचानक इस तरह से उसका चला जाना शायद मीहिका बर्दाश्त न कर पाए। लेकिन इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था। उसने कहा कि वो कुछ दिन परेशान होगी लेकिन धीरे-धीरे उसे उसके बगैर रहने की आदत हो जाएगी। वो चला गया था उस दिन हमेशा के लिए शहर छोड़कर, प्यार उसे भी था लेकिन मजबूरी ऐसी कि वो उसका हाथ थाम ही नहीं पाया।
पुणे पहुंचकर उसने मीहिका से एक दो दिन बात की लेकिन बातचीत धीरे-धीरे कम होती गई। दूरियों का मतलब वो भी समझ रही थी। इस तरह से दिन बीतने लगे थे। अंजान मीहिका की खैर-खैरियत किसी न किसी से ले ही लेता लेकिन उसने उस तक पहुंचने के सारे दरवाजे बंद कर लिए थे। नेटवर्किंग साइट में भी अब वो नहीं था। इन्हीं सब बातों को अभी सोच कि झटके से उसकी टैक्सी रूकी। वो एकदम चौंक कर उठा और देखा घर आ गया है। टैक्सी वाले को पैसे देकर घर की ओर चला। घर की घंटी बजाई तो उसकी मां ने दरवाजा खोला, मां कुछ पूछती उसके पहले ही वो तेजी से अपने कमरे की तरफ चला गया। कमरा भी आज उसे काट रहा था, कमरे के हर कोने में मीहिका थी, खिड़की खुली थी और वहां से आ रही हवा से खिड़की पर लगा विंडचाइम बज रहा था। उसकी हल्की झनकार से उसकी धड़कनें और तेज हो रही थी। वो थका हुआ था लेकिन नींद नहीं आ रही थी उसे। वो उन सब चीजों को निकालकर बैठा था जो उसे मीहिका ने दी थी। उसने अपना लैपटॉप खोला और फेसबुक में जाकर मीहिका का प्रोफाइल देखने लगा। उसने उसकी एल्बम देखी और सब तस्वरों को एक-एककर देखने लगा। इतनी तस्वीरें कि देखते-देखते सुबह हो आई थी। थकान के कारण अब उसकी आंख लग आई थी। नींद से तब जागा जब उसकी मां कॉफी लेकर पहुंची। उसने तुरंत घड़ी देखी, साढ़े दस बज चुके थे। मां फिर बात करना चाह रही थी लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और तैयार होकर मीहिका की घर की तरफ निकल गया।
उसके घर में पैर रखते ही उसके हाथ-पैर फिर ठंडे पडऩे लगे, घर के बागीचे में लगे फूलों को देखकर सोचने लगा कि ये सभी फूल मीहिका के लगाए हुए हैं लेकिन मेरी उसकी वजह से मीहिका को फूलों से ही डर लगने लगा था। शहर छोड़कर जाने के दिन भी मैने कोरियर से मीहिका के लिए फूल ही भिजवाए थे, उस दिन भी बहुत नाराज हुई थी वो फूलों को देखकर। वो ये मान बैठी थी कि जब मै उसे फूल देता हूं तो कुछ बुरा होता है। उस दिन भी तो उसके लिए बुरा ही था फूल के साथ उसे संदेश मिला था कि मै पुणे चला गया हूं। वो अभी बाहर खड़ा होकर फूलों को देख ही रहा था कि मीहिका के भाई ने उससे अंदर आने का आग्रह किया। उसने पूछा आंटी कहां है तो भाई ने ऊपर कमरे की ओर इशारा किया। वो कमरे की तरफ बढऩे लगा। अंदर पहुंचा तो देखा मीहिका की मां उसकी एक हंसती हुई तस्वीर लेकर बैठी हुई है। उन्होंने उसे बैठने के लिए कहा। अजीब सी खामोशी थी कमरे में, वो रो रही थीं। उसने कहा "मुस्कुराना बहुत पसंद था उसे, खुद को स्माइलिंग एंजेल कहती थी।" अब दोनों ही रो रहे थे। अंजान बोला आंटी आपने मुझे उसकी तबीयत को लेकर पहले क्यों नहीं बताया? कब से हुआ ये सब? उन्होंने कहा तुम्हारे जाने के बाद से ही वो खामोश रहने लगी थी, हंसना चहकना तो जैसे भूल ही गई थी। लेकिन बहुत समझाने पर सब धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। हम उसकी शादी के लिए लड़का भी देख रहे थे, उसने भी शादी के लिए हां कर दी थी। लेकिन अचानक उसकी तबीयत बिगडऩे लगी।
उस दिन बारिश से भीग कर आई थी, बहुत देर रात को, रो भी रही थी। बस अगले दिन से जो बुखार ने पकड़ा 20 दिन के अंदर वो अपने साथ ही ले गया। बेटा लेकिन आखिरी वक्त में उसने तुम्हें बहुत याद किया, हम तुम्हें बुलवाना चाह रहे थे लेकिन उसके पिताजी ने मना कर दिया और जिस दिन तुम्हें खबर दी तब तक बहुत देर हो गई थी। लेकिन तुम्हारे लिए कुछ छोड़कर गई है वो, उसने कहा था कि तुम जरूर आओगे। उसकी मां उठकर गई और किताबों की शेल्फ के पास रखे पीले गुलाबों का गुच्छा ले आई, पीले गुलाब अब मुरझा गए थे। मीहिका को पीले गुलाब बहुत पसंद थे, उनके हाथ में एक लिफाफा भी था उसमें लिखा था छोटी सी ये जिंदगी...(वो हमेशा कहती थी एक किताब लिखेगी और उसका नाम होगा "छोटी सी ये जिंदगी") लिफाफे में एक खत था और एक पेन ड्राइव। उसने पेन ड्राइव निकाली और वहां कंप्यूटर टेबल पर जाकर कंप्यूटर पर चलाकर देखने लगा। उसमें इतने सालों की सब तस्वीरें थीं, करीब दो-तीन हजार तस्वीरें। वो बहुत जोर-जोर से रोने लगा, वो अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। मीहिका की मां खड़ी थी, उसे हौसला दे रही थीं लेकिन दोनों के ही आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। आज फूल मीहिका ने दिए थे लेकिन खराब आज भी हुआ था, अब नहीं थी वो, हमेशा के लिए जा चुकी थी, बहुत दूर कहीं...अब वो मीहिका के डर को समझ पाया था क्यों फूलों से डरने लगी थी वो। उसने अब वो खत खोला उसमें लिखा था-
उस दिन बारिश से भीग कर आई थी, बहुत देर रात को, रो भी रही थी। बस अगले दिन से जो बुखार ने पकड़ा 20 दिन के अंदर वो अपने साथ ही ले गया। बेटा लेकिन आखिरी वक्त में उसने तुम्हें बहुत याद किया, हम तुम्हें बुलवाना चाह रहे थे लेकिन उसके पिताजी ने मना कर दिया और जिस दिन तुम्हें खबर दी तब तक बहुत देर हो गई थी। लेकिन तुम्हारे लिए कुछ छोड़कर गई है वो, उसने कहा था कि तुम जरूर आओगे। उसकी मां उठकर गई और किताबों की शेल्फ के पास रखे पीले गुलाबों का गुच्छा ले आई, पीले गुलाब अब मुरझा गए थे। मीहिका को पीले गुलाब बहुत पसंद थे, उनके हाथ में एक लिफाफा भी था उसमें लिखा था छोटी सी ये जिंदगी...(वो हमेशा कहती थी एक किताब लिखेगी और उसका नाम होगा "छोटी सी ये जिंदगी") लिफाफे में एक खत था और एक पेन ड्राइव। उसने पेन ड्राइव निकाली और वहां कंप्यूटर टेबल पर जाकर कंप्यूटर पर चलाकर देखने लगा। उसमें इतने सालों की सब तस्वीरें थीं, करीब दो-तीन हजार तस्वीरें। वो बहुत जोर-जोर से रोने लगा, वो अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। मीहिका की मां खड़ी थी, उसे हौसला दे रही थीं लेकिन दोनों के ही आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। आज फूल मीहिका ने दिए थे लेकिन खराब आज भी हुआ था, अब नहीं थी वो, हमेशा के लिए जा चुकी थी, बहुत दूर कहीं...अब वो मीहिका के डर को समझ पाया था क्यों फूलों से डरने लगी थी वो। उसने अब वो खत खोला उसमें लिखा था-
इसमें मेरी कोई गलती नहीं है कि मै एक मुस्लमान लड़की नहीं हूं। लेकिन मै सिर्फ तुम्हारे साथ एक खुशहाल जिंदगी चाहती थी, मै मीहिका से मदीहा भी बन सकती थी...लेकिन तुमने कोशिश नहीं की, जा रही हूं बहुत दूर....दुआ करूंगी अगले जन्म एक मुसलमान लड़की बनकर आऊं!
खोये हुए लम्हों का नाम जिन्दगी है...
ReplyDeleteधोखेबाज वक़्त में .....छोटी सी ये जिन्दगी...
बहुत अच्छा लिखा आपने माही...........
Shuqriya Rahul ji
Deleteनहीं मिहिका.....तुम मदीहा मत बनना...
ReplyDeleteकौन जाने अंजान,अंजनी या अंजल बन कर जन्म ले....तब????
मोहब्बतों को मजहब की दीवारें तोडनी ही होंगी...
माही.............बहुत सुन्दर,बस फूलों के साथ नाइंसाफी की है तुमने.
दुआ है कि तुम्हे पुरस्कार मिले.
ढेर सा प्यार
अनु
बहुत बहुत शुक्रिया अनु जी.....लेकिन नामुमकिन सा मालूम पड़ता है जाने कब मोहब्बत मज़हब की दीवार तोड़ पाएगी...दुआ करते हैं अब जब कायनात बने मज़हब नाम की बीमारी खूबसूरत दुनिया में आये ही नहीं...
Deletewaqayee me deewaaren pata nahee kab tootengee!
ReplyDeleteइंशाल्लाह ज़रूर टूटेंगी एक दिन :)
Deletebahut bagyaoday purn kahani hai.jarur aapki finger ki dhar hame salo sal dekhne ko mile .khub kahaniya sujhe aapko.
ReplyDeletemera blog "khotej.blogspot.com"
ufff...!!
ReplyDelete:-) ९९ के चक्कर से निकालने का शुक्रिया !!!
ReplyDeleteतुम्हे जिंदगी से भरपूर ...खुशियाँ नसीब हों !!
येही दुआ है मेरी !
shuqriya Ashok ji :)
Deleteवक्त धोखेबाज़ निकला, दोनों को धोखा दे गया. धर्म की दीवारें यूँ ही ज़िंदगी को बाँट देती है और कई घर तबाह हो जाते हैं. बहुत मार्मिक कहानी. आपकी कहानी पुरस्कृत हो, बहुत शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जेन्नी जी... :)
Deleteशायद सादादिल खुशगवार फूल को किसी ऐसे बंधन में नहीं बाँधना चाहिए और न ही बदलना चाहिए ...... शब्द -शब्द बेहद मार्मिक है !!!
ReplyDeleteशुक्रिया निवेदिता जी...
Deleteइंसान धर्म को जाने कब समझेगा ... इंसान प्रकृति के धर्म को समझ सकता तो ये दुनिया कितनी हसीं होती ..
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ..
इंसान धर्म को शायद कभी नहीं समझेगा :( ये दुर्भाग्य है...
Deleteबहुत शुक्रिया
bhavuk kar diya aapne ...bahut achha likhati hai maano jindagi se ek panna nikaal kar likh diya hao ..aapki likhi khani ka ant kisi ki bhi hakikat na bane kyunki sachha pyaar bhagwan ka ashish hota hai sabko sachaa pyaar aur aapko puraskaar mile yahi dua hai....
ReplyDelete:)
Deleteबहुत शुक्रिया भावना जी
बहुत ही मार्मिक कहानी है माही जी...
ReplyDeleteमुझे बहुत पसंद आई...आपको कहानी लेखन प्रतियोगिता के लिए शुभकामनायें!!
Thnk u :)
Deleteक्या कहूं इस पूरी कथा पर समझ से परे हैं...बस ऐसा यथार्थ के धरातल पर न हो...सशक्त प्रस्तुतिकरण!!!!
ReplyDelete:)
Deleteओह, ऐसी कहानी कभी कभी ही पढने को मिलती है।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया महेंद्र जी :) :)
Deletea very touching story indeed ....all the best :)
ReplyDeleteThnk u Saumya :)
ReplyDeleteजाने वाले नहीं आते ... धर्म मजहब की दीवारें मोहरा बनाती हैं प्रेम करने वालों को ...
ReplyDeleteदिल के करीब से गुज़रती है आपकी कहानी ...
शुक्रिया दिगम्बर जी..
Deleteमन को छू गई यह कहानी ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...
ReplyDeleteशुभकामनाएं आपके लिए
शुक्रिया सदा...
DeleteBeautiful story :)
ReplyDeletehttp://apparitionofmine.blogspot.in/
Thnk u Noopur :)
Deleteअच्छा लगा आपका लेखन।
ReplyDeleteमैं अगर कुछ कह सकूँ तो वो ये के,:
"किस्सागो कहता रहा रात भर सच्ची बातें,
नींद उनको आ गई तलाश जिन्हें तिलिस्म की थी!"
शुक्रिया :)
DeleteTouching Story.
ReplyDeleteRead my first post about Flight of Freindship
http://udaari.blogspot.in/
bahut khoob mahi ji... bahut kareeb lagti hai khud se apki har rachna
ReplyDeleteकहानी हो या जीवन... जाने क्यूँ, विडम्बनाएं पीछा नहीं छोड़तीं!
ReplyDeleteआशा है कहानी लेखन प्रतियोगिता का परिणाम आपके पक्ष में रहा होगा:)