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way to Ajmer...Clicked By: Mahi S |
देखो ना आज खामोश हूं...नहीं पता क्यूं...तुम्हें याद है एक रोज तुम्हें ढलते सूरज के सामने बोला था मैने, 'मुझे याद करना तुम्हारी मजबूरी है, तुम्हारे सामने रहूं या ओझल...' आज सामने नहीं हूं, लेकिन एहसास है मुझे...समझती हूं तुम्हारी मजबूरी को. दिल को संभालने की हर दिन कोशिश कर रही हूं, एक नई कोशिश...मुश्किल है, शायद नामुमकिन...पर मै, 'मै' हूं तुम्हारे अल्फाजों में 'Super woman'. जब कहते थे तब नहीं समझ पाई थी इस बात की गहराई को, लेकिन देखो आज समझ रही हूं. तुम्हारे आखिरी मुलाकात के एहसास को संजोकर रख लिया है ताकि कोई हवा भी उसे ना छुए...मुझे याद है आखिरी बार कार से उतरने से पहले तुमने अपने हाथों से जब मेरे चेहरे को ऊपर उठाया था, आंसू को मुट्टी में बंद किया था...बोले थे तुम, 'ये इसी तरह बहते रहे तो दुनिया के किसी कोने में मुझे सुकून नहीं मिलेगा.' और मैने आखिरी बार भी कहा था तुमसे 'मत जाओ ऐसे...'
वो कहते हैं ना मंजिल मिलने से ज्यादा सफर जरूरी होता है. मुझे कोई शिकायत नहीं है तुमसे, किसी बात का गिला भी नहीं. गिला हो भी क्यों, तुमने सफर को खूबसूरत बनाया...बहुत खूबसूरत. तो क्या हुआ जो आज खामोशी है, अधूरे ख्वाब हैं, बेलुत्फ जिंदगी है...इसमें तुम तो हो...पीछे मुड़ती हूं तो कदमों के निशान दिखते हैं. क्या तुम्हें भी दिखते हैं?
जब इतना सुहाना सफर बीता तो यादें काफी होती हैं उनकी ... पीछे के क़दमों के निशान तो समय की गर्त हल्का कर जाती है ...
ReplyDeleteहमेशा की तरह जबरदस्त ...
Gahre bhao...
ReplyDeleteसफ़र ज़रूरी होता है...!
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